लखनऊ : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव उनके बेटे प्रतीक यादव को आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने फैसले में कहा है कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में अब सुनवाई करने का कोई आधार नहीं है और उन्होंने याचिकाकर्ता वरिष्ठ अधिवक्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी की अपील को खारिज कर दिया है. जिसमें उन्होंने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट की कॉपी की मांग की थी. ईटीवी भारत आज आपको बताएगा कि समाजवादी पार्टी के संरक्षक रहे पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और प्रतीक यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला कब और कैसे दर्ज हुआ और अब तक इस पूरे मामले में क्या कुछ घटनाक्रम रहा है.
वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे विश्वनाथ चतुर्वेदी ने 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव उनके बेटे अखिलेश यादव बहू डिंपल यादव व दूसरे बेटे प्रतीक यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने को लेकर एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी. याचिका में मुलायम परिवार पर 100 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति अर्जित करने के आरोप लगाए गए थे. उन्होंने कहा था कि 1999 से लेकर 2005 तक भ्रष्टाचार करके और गलत तरीके से 100 करोड़ रुपए कमाए गए. इस पूरे मामले में कुछ दिन बाद सुप्रीम कोर्ट से नोटिस मुलायम व अन्य पक्षकारों को जारी हुई थी. करीब डेढ़ साल तक इस मामले में एक ही नोटिस जारी होने का काम हुआ और मामला पूरी तरह से ठंडे बस्ते में ही पड़ा रहा. इसके बाद मार्च 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के इस मामले में सीबीआई को जांच करने का आदेश दिया था. अक्टूबर 2007 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के सामने हलफनामा देते हुए यह कहा था कि यह पूरा मामला आय से अधिक संपत्ति का बनता है और मुकदमा दर्ज करने के पर्याप्त सबूत और साक्ष्य मिले हैं और सीबीआई ने अपनी जांच को आगे बढ़ाने का क्रम शुरू कर दिया था.
सीबीआई ने याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी से तमाम दस्तावेज भी लिए और कैसे यह पूरा धन अर्जित किया गया था, इसके बारे में सारे तथ्य लिए. याचिकाकर्ता के मुताबिक, मुलायम सिंह यादव ने 100 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति अर्जित की थी. उन्होंने कोर्ट के सामने कहा था कि वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को जांच से बाहर कर दिया था. क्योंकि इस मामले में सीबीआई के पास डिंपल यादव के द्वारा संपत्ति अर्जित करने के सबूत नहीं मिले थे, लेकिन मुलायम सिंह यादव व अखिलेश यादव और दूसरे बेटे प्रतीक यादव पर मामला चलता रहा. करीब एक साल बाद अगस्त 2013 को सीबीआई ने कोर्ट के सामने यह कहा कि इस पूरे मामले में आय से अधिक संपत्ति के आरोपों को साबित नहीं किया जा सका है और 7 अगस्त 2013 को प्रारंभिक जांच बंद कर दी थी. इसके बाद याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई कि सीबीआई इस पूरे मामले को लटकाने का प्रयास कर रही है. इसके बाद कोर्ट ने सीबीआई को नोटिस जारी करके पूरी वस्तु स्थिति से कोर्ट को अवगत कराने की बात कही थी.
मुलायम सिंह यादव परिवार की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई द्वारा कोई साक्ष्य मिलने की बात कहे जाने के बाद यह अपील की थी कि इस पूरे मामले को अब बंद कर दिया जाए, क्योंकि सीबीआई ने कहा है कि अब आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का कोई मामला प्रकाश में नहीं आया है. 2019 में ही सीबीआई ने हलफनामा दाखिल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इस पूरे केस में कोई साक्ष्य प्रकाश में नहीं आए हैं. संपत्ति कैसे अर्जित की गई है इसकी जानकारी नहीं है. ऐसे में सीबीआई ने इस मुकदमे को पूरी तरह से बंद कर दिया है, लेकिन याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि सीबीआई के मैनुअल के खिलाफ है वह ऐसे नहीं कर सकती इसके बाद कोर्ट ने सीबीआई से पूरी रिपोर्ट तलब की थी.
इसके बाद मामला फिर कुछ दिन सीबीआई के पास था, लेकिन इस पूरे मामले में कोई जांच-पड़ताल आगे नहीं बढ़ पाई. दिसंबर 2022 में एक बार फिर मुलायम परिवार की तरफ से इस मुकदमे को बंद करने की बात कही गई. मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि क्योंकि मुलायम सिंह यादव अब जीवित नहीं हैं और सीबीआई ने इस मुकदमे को पहले ही बंद कर दिया है. ऐसी स्थिति में इस पूरे मुकदमे को बंद कर देना चाहिए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को बंद करने से मना कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोर्ट जनवरी में इस मामले की सुनवाई करेगा, जिसमें यह तय किया जाएगा कि इस पूरे मामले में सुनवाई को बंद किया जाए या नहीं. याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने कोर्ट से कहा था कि सीबीआई का कहना है कि उसने आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के इस मामले को बंद करने की जानकारी मुख्य सतर्कता आयुक्त को दे दी है, लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई. इस पूरे मामले में राजनीतिक लाभ के लिए उचित तरीके से साक्ष्य एकत्रित नहीं किए गए और राजनीतिक परिवार को इसका लाभ देने की कोशिश की गई है.
याचिकाकर्ता के इस तर्क से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 'मुलायम सिंह यादव भले अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन परिवार के दूसरे सदस्यों पर यह पूरा मामला बनता है.' याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के सामने एक नई याचिका दाखिल की गई और यह मांग की गई कि सीबीआई ने जो क्लोजर रिपोर्ट लगाई है उसकी एक प्रति उन्हें भी दी जाए, जिससे वह देखें कि आखिर सीबीआई ने इस मुकदमे को कैसे बंद किया है और उसके पास साक्ष्य नहीं मिले हैं, लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह निर्णय दिया है कि अब यह मामला सुनने योग्य नहीं है और न ही सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट की कॉपी याचिकाकर्ता को दी जाएगी. जिससे अखिलेश यादव परिवार को इससे बड़ी राहत मिली है.
याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में कहा कि 'सुप्रीम कोर्ट ने कैसे और किन परिस्थितियों में सुनवाई नहीं किए जाने की बात कही है यह उनके समझ से परे है. आखिर सीबीआई ने जब क्लोजर रिपोर्ट लगाई है तो याचिकाकर्ता और वादी होने के कारण इसकी एक प्रति मुझे जरूर मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि एक राजनीतिक परिवार को लाभ देने के उद्देश्य से शायद ऐसा किया गया है, जिसकी प्रति मुझे नहीं दी गई है. उन्होंने कहा कि मुझे आज तक क्लोजर रिपोर्ट की प्रति नहीं मिली है और सीआरपीसी की धारा 173 (2) और धारा 157 (2) के अनुसार याचिकाकर्ता को क्लोजर रिपोर्ट देना अनिवार्य है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया.
यह भी पढ़ें : Relief to Akhilesh Yadav : आय से अधिक संपत्ति मामले में अखिलेश यादव को मिली बड़ी राहत