लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022)की तारीखों की घोषणा के साथ ही भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) ने कोरोना के बढ़ते संकट को देखते हुए डिजिटल माध्यम से चुनाव प्रचार करने की गाइड लाइन जारी की है. इसके बाद राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी चुनावी तैयारियों को वर्चुअल प्लेटफार्म के माध्यम से आगे बढ़ाना भी शुरू कर दिया है. भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी सहित क्षेत्रीय छोटे दलों ने व्हाट्सएप, फेसबुक सहित अन्य सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म के माध्यम से अपनी बात जनता तक पहुंचाना शुरू कर दिया है. ऐसे में वर्चुअल और डिजिटल तकनीक के माध्यम से चुनाव प्रचार से किस राजनीतिक दल को कितना नफा नुकसान होगा. इसको लेकर ईटीवी भारत ने राजनीतिक विश्लेषकों से बात की.
राजनीतिक विश्लेषकों का यह मानना है कि जो राजनीतिक दल डिजिटल तकनीक के मामले में ज्यादा दक्ष हैं, उसे स्वाभाविक अधिक फायदा मिल सकता है, लेकिन चुनाव में जनता किसे सिर माथे पर बिठाएगी, तो इसका फैसला तो जनता को ही करना है. लेकिन चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ाने में जरूर राजनीतिक दल तेजी से काम कर सकते हैं डिजिटल तकनीक का उपयोग करते हुए. राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि संवैधानिक और प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए चुनाव अपरिहार्य होते हैं. लेकिन जन जीवन का अपना महत्व है, इसकी कीमत पर कोई कार्य नहीं किया जा सकता. कोरोना आपदा के चलते परिस्थियां बदली हैं. पांच राज्यों में चुनावों की घोषणा के पहले ही कोरोना की तीसरी लहर दस्तक दे चुकी है. ऐसे में चुनाव आयोग ने अपने दायित्व का उचित निर्वहन किया है. नियत समय पर चुनाव और चुनावी सभाओं व रैलियों पर प्रतिबंध भी लगाया गया है.
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री का कहना है कि चुनाव प्रजातंत्र के उत्सव होते हैं लेकिन आपदा काल में इसका स्वरूप बदला है. कुछ राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग के वर्चुअल रैली और प्रचार-प्रसार निर्णय की आलोचना की है. भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है और उसके पास वर्चुअल माध्यम से प्रचार के संसाधन है, लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों के पास ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है. उन्होंने कहा कि इस प्रकार की आलोचना से कई प्रश्न उठे हैं. पहला यह कि यदि पर्याप्त साधन नहीं है, तो क्या इस समय रैलियों के माध्यम से जन सामान्य की जिंदगी दांव पर लगा देनी चाहिए. कोरोना से बचाव के लिए फिजिकल दूरी का विशेष महत्व है. दूसरा प्रश्न यह कि संसाधन ना होने की जिम्मेदारी किसकी है, यह कहना सही नहीं होगा कि सत्ता में रह चुके दलों के पास धन संसाधन की कमी है. सत्ता में रहते हुए अपने संगठन व सरकार में डिजिटल माध्यमों को उचित प्रोत्साहन ही नहीं दिया.
कोरोना आपदा में डिजिटल व्यवस्था सार्थक
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री ने कहा कि वर्तमान सरकार ने डिजिटल इंडिया अभियान चलाया. चालीस करोड़ लोगों के जनधन खाते खोले गए. शत प्रतिशत भुगतान सुनिश्चित किया गया. कोरोना आपदा के दौरान यह व्यवस्था बहुत सार्थक रही. वर्चुअल माध्यम से विद्यार्थियों की पढ़ाई जारी रखने का प्रयास किया गया. वस्तुतः यह सब एक ईमानदार प्रयास के अनुरूप संभव हुआ. जिन लोगों ने सरकार में रहते हुए डिजिटल इंडिया अभियान शुरू किया. अपने संगठन को भी डिजिटल माध्यम से लैस किया. यह केवल तकनीक से संभव नहीं था. ऐसा होता तो अन्य पार्टियों को भी ऐसा करने में किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती, लेकिन यह विचारधारा का विषय था. राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि जरूरतमंदों तक शत प्रतिशत सहायता पहुंचाने का विचार संगठन तक विस्तारित हुआ है. यह सच्चाई व अंतर भी आमजन को दिखाई दे रहा है. अब गरीबों के पास बैंक अकाउंट से लेकर मोबाइल फोन तक है. कोरोना आपदा के दौरान आमजन से संवाद का यह कारगर माध्यम साबित हुआ है.जो पार्टियां ऐसा करने में अपने को असमर्थ समझ रही है, उन्हें आत्मचिंतन करना चाहिए.
बीजेपी का आईटी सेल बहुत मजबूत
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि डिजिटल रैली के लिए जो चुनाव आयोग ने सिफारिश की है वह इस समय को ध्यान में रखते हुए ठीक पहल है. क्योंकि कोरोना का संकट इस समय है, लेकिन डिजिटल रैलियां करने में एक पार्टी ज्यादा सक्षम है और बाकी पार्टियों को थोड़ा मुश्किल होगी. भारतीय जनता पार्टी खास करके नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सोशल मीडिया से लेकर के तमाम डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उन्होंने अपनी पार्टी के प्रचार और खुद की ब्रांडिंग में इन माध्यमों का बहुत इस्तेमाल किया था. आज भी बीजेपी का आईटी सेल बहुत मजबूत है और उनके पास काम करने वाले लोग हैं.
भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि यह भी माना जाता है कि भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है. कार्यकर्ताओं के लिहाज से और भारत में सबसे ज्यादा समृद्ध पार्टी भी है इसलिए निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी को डिजिटल रैलियां करने में सहूलियत होगी और सफलता भी मिलेगी. लेकिन इसके सपा-बसपा यह जो सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाली पार्टियां हैं उनके पास न तो इतने संसाधन है और ना ही उनके पास इस तरह के प्रशिक्षक कार्यकर्ता हैं. कांग्रेस पार्टी में जरूर ठीक-ठाक टीम इस तरह की है. उन्होंने कहा कि फिलहाल डिजिटल माध्यम से चुनाव प्रचार में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी को बढ़त मिलेगी. लेकिन उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी दल के खिलाफ माहौल है, ऐसे में बीजेपी की डिजिटल रैलियां क्या लोगों के गुस्से को दूर कर पाएंगी?