लखनऊ: दीपावली के समय पटाखों से होने वाले प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट गंभीर है. सुप्रीम कोर्ट ने जब से पटाखों पर बैन की बात की है तभी से इनका विकल्प तलाशा जा रहा है. इन्हीं विकल्पों के बीच इस समय ग्रीन पटाखे बाजार में धूम मचा रहे हैं. ग्रीन पटाखे क्या होते हैं, ये कैसे नॉर्मल पटाखे से अलग हैं. इसके बारे में आइये जानते हैं.
केन्द्रीय विद्यालय अलीगंज के विज्ञान के शिक्षक सुशील द्विवेदी बताते हैं कि ये 'ग्रीन पटाखे' भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अंतर्गत राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान नागपुर (एनईईआरआई) व केंद्रीय विद्युत रासायनिक अनुसंधान संस्थान (सीईसीआरआई) कराइकुडी, तमिलनाडु की संयुक्त खोज हैं. इन्हें सीएसआईआर-राष्ट्रीय इंजीनियरिंग एवं पर्यावरण शोध संस्थान (एनईईआरआई) की मान्यता प्राप्त एनएबीएल प्रयोगशालाओं में परखा गया है.
विशेषज्ञ सुशील द्विवेदी ने बताया कि ग्रीन पटाखे दिखने, जलने और आवाज में सामान्य पारंपरिक पटाखों की तरह ही होते हैं. इनमें अनार, पेंसिल, चकरी, फुलझड़ी, फ्लावर पॉट, स्काई शॉट और सुतली बम, आदि हैं. अन्य पटाखों की तरह ही ग्रीन पटाखों को माचिस से जलाया जाता है. ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले अलग मसाले बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होते हैं, जिससे पटाखे जलने के बाद कम हानिकारक गैसें बनेगी एवं रासायनिक अभिक्रिया से पानी बनेगा जिसमें हानिकारक गेसें घुल जायेंगी. इन पटाखों को जलाने से ना केवल कम हानिकारक गैस पैदा होगी बल्कि वातावरण में बेहतर खुशबू भी बिखरेगी.
विशेषज्ञ सुशील द्विवेदी ने बताया कि इन पटाखे में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है अर्थात ऐसे ग्रीन पटाखों के जलने से वातावरण में कम एल्यूमीनियम के कण मुक्त होंगे. इन क्रैकर्स में ऑक्सीडाइजिंग एजेंट का उपयोग होता है जिससे जलने के बाद सल्फर और नाइट्रोजन के हानिकारक ऑक्साइड कम मात्रा में पैदा होते हैं. इसके लिए खास तरह के केमिकल का इस्तेमाल होता है. आजकल ऑनलाइन भी इन पटाखों की खूब बिक्री होती है जिसे आप अलग अलग प्लेटफॉर्म से खरीद सकते हैं .
इसे भी पढ़ें-'हुनर के दीयों' से घरों को रोशन कर रहे प्रयागराज के दिव्यांग कलाकार