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लखनऊ: पिछली पांच पीढ़ियों से हिंदू-मुस्लिम एक साथ करते आ रहे हैं इस इमामबाड़े में अजादारी - hindu muslim unity in lucknow

यूपी के लखनऊ में एक हिंदू घराना पिछली पांच पीढ़ियों से गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रहा है. किष्नु खलीफा का इमामबाड़ा में हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोग मजलिस और मातम करते हैं. इमामबाड़े में इलाके के हिंदू मोहर्रम के महीने में ताजिया भी रखते हैं.

हिंदू-मुस्लिम करते हैं इस इमामबाड़े में अजादारी.
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Published : Sep 9, 2019, 9:59 PM IST

लखनऊ: हजरत इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों की याद में पूरी दुनिया में मोहर्रम मनाया जा रहा है. वहीं अजादारी का केंद्र कहे जाने वाले अदब के शहर लखनऊ में एक घराना ऐसा भी है जो धर्म से तो हिंदू हैं, लेकिन अजादारी में किसी मुसलमान से कम अकीदत नहीं रखता.

हिंदू-मुस्लिम करते हैं इस इमामबाड़े में अजादारी.


किष्नु खलीफा का इमामबाड़ा हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल-
140 साल पहले बना किष्नु खलीफा का इमामबाड़ा आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता का परचम बुलंद कर रहा है. यहां पर मुसलमानों के साथ हिंदू समुदाय के लोग मजलिस और मातम करते हैं. किष्नु नाम के शख्स ने इस इमामबाड़े को बनवाया था, जो हिन्दू धर्म से थे. इमाम हुसैन से उनकी मोहब्बत किसी मुसलमान से कम नहीं थी. तब से आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी इस इमामबाड़े में मातम और नौहाख्वानी होती रही है. इसके साथ ही इस इमामबाड़े में इलाके के हिंदू मोहर्रम के महीने में ताजिया भी रखते हैं.

किष्नु की पांचवी पीढ़ी और परिवार के मुखिया हरीश चंद्र धानुक की इमाम हुसैन के लिए मोहब्बत देखते ही बनती है. उनका कहना है कि मौला ने दिल को रोशन किया है. सब धर्म के मालिक एक हैं. हरीश कहते हैं कि भगवान-अल्लाह सब एक ही है और हम सब उनके बंदे हैं. हमें आपस मे मिलकर रहना चाहिए.


इस इमामबाड़े में खत्म होता है हिंदू-मुस्लिम के बीच फर्क-
अजादार मीना ने बताया कि बचपन से इस इमामबाड़े में अजादारी करती आ रही हैं. इमाम हुसैन में अकीदत रखती हैं. मेरा पूरा परिवार यहां से जुड़ा है. मुझे कभी यहां अलग मजहब महसूस नहीं हुआ.

पढ़ें:- गोरखपुर: सैकड़ों वर्ष पुराने सोने और चांदी के ताजिए का लोग करेंगे दीदार

वहीं इस इमामबाड़े में आने वाले मुस्लिम मजहब अबुल हसन हुसैनी ने बताया कि वह 21 साल से इस इमामबाड़े में आ रहे हैं. प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी यहां आते रहे हैं. इस इमामबाड़े में हिंदू-मुस्लिम के बीच का फर्क खत्म हो जाता है. देश में हिंदू-मुस्लिम दंगे कई बार हुए, लेकिन इस इमामबाड़े ने हमेशा हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की.

लखनऊ: हजरत इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों की याद में पूरी दुनिया में मोहर्रम मनाया जा रहा है. वहीं अजादारी का केंद्र कहे जाने वाले अदब के शहर लखनऊ में एक घराना ऐसा भी है जो धर्म से तो हिंदू हैं, लेकिन अजादारी में किसी मुसलमान से कम अकीदत नहीं रखता.

हिंदू-मुस्लिम करते हैं इस इमामबाड़े में अजादारी.


किष्नु खलीफा का इमामबाड़ा हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल-
140 साल पहले बना किष्नु खलीफा का इमामबाड़ा आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता का परचम बुलंद कर रहा है. यहां पर मुसलमानों के साथ हिंदू समुदाय के लोग मजलिस और मातम करते हैं. किष्नु नाम के शख्स ने इस इमामबाड़े को बनवाया था, जो हिन्दू धर्म से थे. इमाम हुसैन से उनकी मोहब्बत किसी मुसलमान से कम नहीं थी. तब से आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी इस इमामबाड़े में मातम और नौहाख्वानी होती रही है. इसके साथ ही इस इमामबाड़े में इलाके के हिंदू मोहर्रम के महीने में ताजिया भी रखते हैं.

किष्नु की पांचवी पीढ़ी और परिवार के मुखिया हरीश चंद्र धानुक की इमाम हुसैन के लिए मोहब्बत देखते ही बनती है. उनका कहना है कि मौला ने दिल को रोशन किया है. सब धर्म के मालिक एक हैं. हरीश कहते हैं कि भगवान-अल्लाह सब एक ही है और हम सब उनके बंदे हैं. हमें आपस मे मिलकर रहना चाहिए.


इस इमामबाड़े में खत्म होता है हिंदू-मुस्लिम के बीच फर्क-
अजादार मीना ने बताया कि बचपन से इस इमामबाड़े में अजादारी करती आ रही हैं. इमाम हुसैन में अकीदत रखती हैं. मेरा पूरा परिवार यहां से जुड़ा है. मुझे कभी यहां अलग मजहब महसूस नहीं हुआ.

पढ़ें:- गोरखपुर: सैकड़ों वर्ष पुराने सोने और चांदी के ताजिए का लोग करेंगे दीदार

वहीं इस इमामबाड़े में आने वाले मुस्लिम मजहब अबुल हसन हुसैनी ने बताया कि वह 21 साल से इस इमामबाड़े में आ रहे हैं. प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी यहां आते रहे हैं. इस इमामबाड़े में हिंदू-मुस्लिम के बीच का फर्क खत्म हो जाता है. देश में हिंदू-मुस्लिम दंगे कई बार हुए, लेकिन इस इमामबाड़े ने हमेशा हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की.

Intro:हजरत इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों की याद में वैसे तो पूरी दुनिया में मोहर्रम मनाया जा रहा है लेकिन अजादारी का केंद्र कहे जाने वाले अदब के शहर लखनऊ में एक घराना ऐसा भी है जो धर्म से तो हिंदू है लेकिन अजादारी में किसी मुसलमान से कम अकीदत नहीं रखता।


Body:लखनऊ में आज से 140 साल पहले बना किष्नु खलीफा का इमामबाड़ा आज भी हिन्दू मुस्लिम एकता का परचम बुलन्द करता है और यहाँ पर मुसलमानों के साथ हिन्दू समुदाय के लोग मजलिस और मातम करते है। किष्नु नाम के शख्स ने इस इमामबाड़े को बनवाया था जो हिन्दू धर्म से तालुख रखते थे लेकिन इमाम हुसैन से उनकी मोहब्बत किसी मुसलमान से कम नही थी, तब से आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी इस इमामबाड़े में मातम और नौहाख्वानी होती रही है इसके साथ ही इस इमामबाड़े में इलाके के हिंदुओ द्वारा मोहर्रम के महीने में ताज़िया भी रखते है। किष्नु कि पांचवी पीढ़ी और परिवार के मुखिया हरीश चंद्र धानुक की इमाम हुसैन के लिए मोहब्बत देखते ही बनती है उनका कहना है कि मौला ने हमारे दिल को रौशन किया है और सब धर्म का मालिक एक है, हरीश कहते है कि भगवान अल्लाह सब एक ही है और हम सब उनके बन्दे है जिन्हें आपस मे मिलकर रहना चाहिए।

इस इमामबाड़े में आने वाली महिला मीना बताती है कि बचपने से इस इमामबाड़े में अज़ादारी करती आ रही है और इमाम हुसैन में अक़ीदत रखती है। साथ ही मिना कहती है कि मेरा पूरा परिवार यहाँ से जुड़ा है मुझे कभी यहाँ अलग मज़हब का महसूस नही हुआ।

वहीं इस इमामबाड़े में मुस्लिम मज़हब से आने वाले अबुल हसन हुसैनी बताते है कि वह 21 साल से ओस इमामबाड़े में आ रहे है और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी यहाँ आते रहे है। अबुल हसन का कहना है कि जब इस इमामबाड़े में वह आते है तो हिन्दू मुस्लिम के बीच का फर्क खत्म हो जाता है। देश मे हिन्दू मुस्लिम दंगे कई बार हुए लेकिन इस इमामबाड़े ने हमेशा हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की और सबकों जोड़े रखा।

बाइट1- हरीश चंद्र धानुक, हिन्दू अज़ादार
बाइट2- मीना, हिन्दू अज़ादार
बाइट3- अबुल हसन, मुस्लिम अज़ादार


Conclusion:ग़ौरतलब है कि एक तरफ जहाँ राजनीतिक पार्टियां और नेताओं के बयान से मज़हबी मुद्दों पर आए दिन विवाद सुर्खियों में रहते है वहीं गंगा जमुनी तहजीब की इस जमीन पर एक हिन्दू घराना पिछली 5 पीढ़ियों से हिन्दू मुस्लिम एकता और भाई चारे की मिसाल पेश कर रहा है।
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