लखनऊ: हजरत इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों की याद में पूरी दुनिया में मोहर्रम मनाया जा रहा है. वहीं अजादारी का केंद्र कहे जाने वाले अदब के शहर लखनऊ में एक घराना ऐसा भी है जो धर्म से तो हिंदू हैं, लेकिन अजादारी में किसी मुसलमान से कम अकीदत नहीं रखता.
किष्नु खलीफा का इमामबाड़ा हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल-
140 साल पहले बना किष्नु खलीफा का इमामबाड़ा आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता का परचम बुलंद कर रहा है. यहां पर मुसलमानों के साथ हिंदू समुदाय के लोग मजलिस और मातम करते हैं. किष्नु नाम के शख्स ने इस इमामबाड़े को बनवाया था, जो हिन्दू धर्म से थे. इमाम हुसैन से उनकी मोहब्बत किसी मुसलमान से कम नहीं थी. तब से आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी इस इमामबाड़े में मातम और नौहाख्वानी होती रही है. इसके साथ ही इस इमामबाड़े में इलाके के हिंदू मोहर्रम के महीने में ताजिया भी रखते हैं.
किष्नु की पांचवी पीढ़ी और परिवार के मुखिया हरीश चंद्र धानुक की इमाम हुसैन के लिए मोहब्बत देखते ही बनती है. उनका कहना है कि मौला ने दिल को रोशन किया है. सब धर्म के मालिक एक हैं. हरीश कहते हैं कि भगवान-अल्लाह सब एक ही है और हम सब उनके बंदे हैं. हमें आपस मे मिलकर रहना चाहिए.
इस इमामबाड़े में खत्म होता है हिंदू-मुस्लिम के बीच फर्क-
अजादार मीना ने बताया कि बचपन से इस इमामबाड़े में अजादारी करती आ रही हैं. इमाम हुसैन में अकीदत रखती हैं. मेरा पूरा परिवार यहां से जुड़ा है. मुझे कभी यहां अलग मजहब महसूस नहीं हुआ.
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वहीं इस इमामबाड़े में आने वाले मुस्लिम मजहब अबुल हसन हुसैनी ने बताया कि वह 21 साल से इस इमामबाड़े में आ रहे हैं. प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी यहां आते रहे हैं. इस इमामबाड़े में हिंदू-मुस्लिम के बीच का फर्क खत्म हो जाता है. देश में हिंदू-मुस्लिम दंगे कई बार हुए, लेकिन इस इमामबाड़े ने हमेशा हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की.