लखनऊ : केजीएमयू में पहला 'लिविंग डोनेशन' (किडनी डोनेशन ट्रांसप्लांट) (living donation transplant) सफल रहा. मरीज और डोनर दोनों के स्वस्थ होने के बाद सोमवार को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. करीब 18 दिन अस्पताल में रहने के बाद मां और बेटे दोनों घर जा सके हैं. इसके साथ ही दूसरे प्रत्यारोपण की तैयारी शुरू कर दी गई है.
दरअसल, केजीएमयू में नवंबर महीने में ही किडनी प्रत्यारोपण शुरू हुआ था. पहला प्रत्यारोपण ब्रेन डेड मरीज की मदद से हुआ था, ब्रेन डेड मरीज के परिजनों ने अंगदान किया था, जबकि बीते 26 नवंबर को दूसरा किडनी प्रत्यारोपण हुआ था. यह केजीएमयू का पहला लिविंग प्रत्यारोपण बताया जा रहा है जिसमें मां ने अपने 34 वर्षीय बेटे को किडनी देकर उसकी जान बचाई है.
हरदोई के संडीला निवासी 34 वर्षीय युवक को किडनी की गंभीर बीमारी थी. मरीज को लेकर परिजन केजीएमयू पहुंचे. केजीएमयू के नेफ्रोलॉजी विभाग में जांच के बाद चिकित्सकों ने गुर्दा प्रत्यारोपण की जरूरत बताई, जिसके बाद मां ने बेटे को किडनी देने का फैसला किया. डोनर की उम्र करीब 49 साल बताई जा रही है. बीते 26 नवंबर को करीब 6 घंटे चले लंबे ऑपरेशन के बाद चिकित्सकों की टीम ने गुर्दा प्रत्यारोपण में सफलता हासिल की थी. मरीज और डोनर के स्वास्थ्य में सुधार होने के बाद छुट्टी दे दी गई.
गुर्दा प्रत्यारोपित करने वाली टीम में केजीएमयू सीएमएस डॉ. एसएन शंखवार, प्रो. विश्वजीत सिंह, डॉ. विवेक, डॉ. मनोज, डॉ. उदय नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉ. लक्ष्य, डॉ. मेघावी. गैस्ट्रोसर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अभिजीत चंद्रा एसजीपीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. नारायण प्रसाद समेत कई चिकित्सक शामिल रहे.
नेफ्रोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. नारायण प्रसाद ने बताया कि जिंदा व्यक्ति की तरफ से किया गया अंगदान और वह भी उस अंग का जो शरीर में दो हों या फिर जिस अंग को देने से व्यक्ति के जीवन को कोई दिक्कत न हो इसे 'लिविंग डोनेशन' कहा जाता है. उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि शरीर में किडनी दो होती हैं. उसमें से एक किडनी स्वस्थ व्यक्ति दे सकता है.
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