लखनऊ: कोरोना वायरस के संक्रमण और रोकथाम के नए उपाय खोजने के लिए सीडीआरआई (सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट) की प्रयोगशाला कुछ नए शोध करने जा रही है. इस सिलसिले में सीडीआरआई ने किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के साथ 15 अप्रैल को एक एमओयू पर भी हस्ताक्षर किए हैं. सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के बीच हुए एमओयू से दोनों संस्थान साथ मिलकर कोरोना वायरस के उपचार के बारे में नई बातें सामने ला सकते हैं.
KGMU और CDRI मेंं हुआ एमओयू साइन
इस एमओयू के अनुसार किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा सीडीआरआई को कोरोना के एक्टिव सैंपल्स दिए जाएंगे, जिनके आरएनए और अन्य पहलुओं पर सीडीआरआई शोध करेगा. केजीएमयू के मीडिया प्रवक्ता के अनुसार इस एमओयू के तहत दोनों संस्थान आपसी समन्वय से कोविड-19 संक्रमण के लिए एक प्रोजेक्ट पर काम करेंगे. इसका मुख्य उद्देश्य कोरोना संक्रमण पर और अधिक जानकारी और इसके रोकथाम के लिए सभी संभावनाओं पर शोध प्रारंभ करना है. ताकि कोरोना के उपचार की संभावनाएं तलाशी जा सकें.
सीडीआरआई के मीडिया प्रभारी और वैज्ञानिक डॉ. संजीव यादव के अनुसार, केजीएमयू के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर कर हमने कोरोना वायरस के नए आयामों और पहलुओं पर शोध करने का निर्णय लिया है. साथ ही इसके तहत केजीएमयू की माइक्रोबायोलॉजी लैब हमें कोरोनावायरस के एक्टिव सैंपल से एक्सट्रेक्टड आरएनए निकाल कर देगी, जिस पर हम शोध करेंगे.
RNA सैंपलिंग से कोरोना वायरस के इन पहलुओं को जाना जाएगा
डॉक्टर संजीव ने बताया कि आरएनए सैंपलिंग से हम कोरोना वायरस के तीन पहलुओं को जानने में सफल हो सकते हैं. पहला हमारे नए सैंपल इन से यह पता कर सकते हैं कि इस वायरस में कोई म्यूटेशन तो नहीं है. साथ ही इसके अलावा इस तरह की बातें भी सामने आ रही हैं कि भारत में कोरोना वायरस के जीन अमेरिका और अन्य देशों के मुकाबले कमजोर हैं हैं या नहीं. ऐसे में हम इस बात के बारे में पता लगा सकते हैं कि कोरोना वायरस के किस तरह के जीन भारत के मरीजों में सामने आ रहे हैं. साथ ही वह संक्रमण फैलाने में किस तरह से तेजी कर रहे हैं.
मॉलिक्यूल इंटरेक्शन की होगी जांच
डॉक्टर संजीव ने बताया कि इसके साथ ही हम कोरोना वायरस की इनसिलिको एनालिसिस कर सकते हैं. इससे शोध के परिणाम काफी जल्दी आ जाते हैं और इस लिहाज से हम आगे बढ़ पाने में सक्षम हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि इसका दूसरा पहलू यह होगा कि इस शोध के तहत आरएनए से हमें प्रोटीन सीक्वेंस का भी पता चल जाता है. ऐसे में मॉलिक्यूल इंटरेक्शन की जांच कर हमारे पास मौजूद पहले की दवाइयों को कोरोना के इलाज में ला सकते हैं. तीसरा पहलू यह है कि इस रिसर्च के माध्यम से हम कोरोना वायरस की रिपरपजिंग कर सकते हैं. इससे हम अलग-अलग तरह के डायग्नोस्टिक किट का निर्माण कर सकते हैं.
कोरोना के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन है असरदार
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाई के बारे में पूछने पर डॉक्टर संजीव ने बताया कि यह दवाई कोरोनावायरस को शरीर में फैलने से काफी हद तक रोक देती है. शरीर में कोरोना वायरस के मल्टीप्लिकेशन को यह ड्रग काफी हद तक रोक देती है. इस लिहाज से इलाज करने में हमें सहायता मिल सकती है. इसलिए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन ड्रग की मांग पूरी दुनिया में इतनी तेजी से हो रही है.
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