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ईरानी डेलिगेशन ने मौलाना कल्बे सादिक के परिवार से की मुलाकात

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Published : Dec 2, 2020, 10:20 PM IST

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना डॉ. कल्बे सादिक के निधन से देश के साथ विदेशों में भी शोक की लहर है. जिसके चलते ईरान ने भी शोक व्यक्त किया है. ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह खामेनई के भेजे डेलिगेशन ने बुधवार को लखनऊ पहुंचकर कल्बे सादिक के परिवार से मुलाकात की और शोक व्यक्त किया.

ईरानी डेलिगेशन ने कल्बे सादिक के परिवार से मुलाकात की.
ईरानी डेलिगेशन ने कल्बे सादिक के परिवार से मुलाकात की.

लखनऊः ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह सैयद अली खामेनई ने मौलाना कल्बे सादिक के निधन पर अपनी ताजियत पेश की. आयतुल्लाह खामेनई का पैगाम लेकर हिंदुस्तान में उनके नुमाइंदे मौलाना आगा मेहदवीपुर बुधवार को यूनिटी कॉलेज पहुंचे और परिवार से मुलाकात कर उनका पैगाम दिया.

कल्बे सादिक के इंतकाल पर ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह सैयद अली खामेनई ने दुख जताते हुए एक डेलिगेशन लखनऊ भेजा. इस दौरान डेलिगेशन ने कल्बे सादिक के निधन पर दुख जताते हुए कहा कि ईरान के मौलाना आयतुल्लाह सैयद अली खामेनई के संबंध कल्बे सादिक से अच्छे थे. उनके इंतकाल पर उन्हें बेहद दुख हुआ. ईरान और भारत के रिश्ते और अच्छे हो उसके लिए हम दुआ करते हैं.

हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता की करते थे बात
22 जून 1939 को जन्मे कल्बे सादिक ने सर्वधर्म संभाव की रीत पर चलते हुए सभी मजहबों की इज्जत और उनके कार्यक्रमों में शरीक होकर एकता की आवाज बुलंद की. देश के सबसे विवादित मुद्दे राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर उन्होंने कहा था कि अगर फैसला मुस्लिम पक्ष में भी आ जाए तो वह जगह हिंदुओं को दे देनी चाहिए. जिससे दोनों धर्मों के बीच आपसी सुलह कायम रहे. तीन तलाक पर बने कानून पर जहां AIMPLB विरोध में था. वहीं मौलाना कल्बे सादिक ने तीन तलाक का व्यक्तिगत विरोध किया था.

विदेशों में भी हैं मौलाना के चाहने वाले
मौलाना कल्बे सादिक वैसे तो अजादारी का मरकज कहे जाने वाले लखनऊ से ताल्लुक रखते थे, लेकिन वह विदेशों में मजलिस पढ़ाने वाले पहले मौलाना भी थे. वर्ष 1969 में उन्होंने विदेश जा कर पहली बार मोहर्रम के मौके पर मजलिस कराई. जिससे दूसरे मुल्कों में भी उनके चाहने वाले बढ़ते चले गए. मौलाना लंदन, कनाडा, यूएई, ऑस्ट्रेलिया, अमरीका, जर्मनी जैसे तकरीबन 10 से अधिक मुल्कों में जाकर अजादारी की और मोहर्रम के मौके पर मजलिसें पढ़ाईं.

लखनऊः ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह सैयद अली खामेनई ने मौलाना कल्बे सादिक के निधन पर अपनी ताजियत पेश की. आयतुल्लाह खामेनई का पैगाम लेकर हिंदुस्तान में उनके नुमाइंदे मौलाना आगा मेहदवीपुर बुधवार को यूनिटी कॉलेज पहुंचे और परिवार से मुलाकात कर उनका पैगाम दिया.

कल्बे सादिक के इंतकाल पर ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह सैयद अली खामेनई ने दुख जताते हुए एक डेलिगेशन लखनऊ भेजा. इस दौरान डेलिगेशन ने कल्बे सादिक के निधन पर दुख जताते हुए कहा कि ईरान के मौलाना आयतुल्लाह सैयद अली खामेनई के संबंध कल्बे सादिक से अच्छे थे. उनके इंतकाल पर उन्हें बेहद दुख हुआ. ईरान और भारत के रिश्ते और अच्छे हो उसके लिए हम दुआ करते हैं.

हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता की करते थे बात
22 जून 1939 को जन्मे कल्बे सादिक ने सर्वधर्म संभाव की रीत पर चलते हुए सभी मजहबों की इज्जत और उनके कार्यक्रमों में शरीक होकर एकता की आवाज बुलंद की. देश के सबसे विवादित मुद्दे राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर उन्होंने कहा था कि अगर फैसला मुस्लिम पक्ष में भी आ जाए तो वह जगह हिंदुओं को दे देनी चाहिए. जिससे दोनों धर्मों के बीच आपसी सुलह कायम रहे. तीन तलाक पर बने कानून पर जहां AIMPLB विरोध में था. वहीं मौलाना कल्बे सादिक ने तीन तलाक का व्यक्तिगत विरोध किया था.

विदेशों में भी हैं मौलाना के चाहने वाले
मौलाना कल्बे सादिक वैसे तो अजादारी का मरकज कहे जाने वाले लखनऊ से ताल्लुक रखते थे, लेकिन वह विदेशों में मजलिस पढ़ाने वाले पहले मौलाना भी थे. वर्ष 1969 में उन्होंने विदेश जा कर पहली बार मोहर्रम के मौके पर मजलिस कराई. जिससे दूसरे मुल्कों में भी उनके चाहने वाले बढ़ते चले गए. मौलाना लंदन, कनाडा, यूएई, ऑस्ट्रेलिया, अमरीका, जर्मनी जैसे तकरीबन 10 से अधिक मुल्कों में जाकर अजादारी की और मोहर्रम के मौके पर मजलिसें पढ़ाईं.

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