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आईपीएस अधिकारी ने बताई गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी, शौर्य गाथा पर लिखी पुस्तक

पश्चिम में तैनात एडीसीपी चिरंजीव नाथ सिन्हा ने 75 ऐसे गुमनाम सेनानियों पर किताब लिखी है जिनके नाम शायद ही आपने सुने होंगे. उन्होंने पहली पुस्तक "रक्त का कण कण समर्पित" व दूसरी पुस्तक जिसका नाम "जरा याद उन्हें भी कर लो" लिखी है.

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Published : Aug 15, 2023, 6:07 AM IST

संवाददाता मो. मारूफ की खास रिपोर्ट

लखनऊ : पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा हुआ है, सभी लोग आजादी के दीवानों को याद कर शौर्य गाथाओं का गुणगान कर रहे हैं. वहीं राजधानी में तैनात एक आईपीएस अधिकारी ने देश के उन गुमनाम 150 शहीदों के बलिदान पर किताब लिखी है, जिनका योगदान देश को आजादी दिलाने में रहा है. उनका मुख्य उद्देश्य वर्तमान समय की युवा पीढ़ी इन बलिदानियों के बलिदान को समझ सके और उनके देशभक्ति की भावना से रूबरू होकर एक नई अलख जगा सके.

राजधानी के पश्चिम में तैनात एडीसीपी चिरंजीव नाथ सिन्हा ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि 'आजादी का अमृत महोत्सव एक ऐसा स्वर्णिम युग है, जिसमें हम अपने देश के प्रति प्राण न्यौछावर करने वालों को हम याद करते है, लेकिन कहीं न कहीं इसमें लोगों की संख्या कम है, जिनको हम जानते हैं कि उन लोगों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. संख्या इससे कई गुना ज्यादा है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी, मगर वह लोग मेन स्ट्रीम में नहीं आए. उनका लक्ष्य भी नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने जान की बाजी लगा दी. हमारा दायित्व बनता है कि ऐसे महान विभूतियों के गुमनाम किस्सों को हम लोग आजकल के युवाओं को बताएं. ऐसे ही महान विभूतियों को लेकर दो किताबों की रचना की है. पहली पुस्तक है उसका नाम है "रक्त का कण कण समर्पित" जिसमें उत्तर प्रदेश के 75 स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिनका योगदान हमको पता नहीं है, जो गुमनाम हो गए. इसी तरह दूसरी पुस्तक जिसका नाम "जरा याद उन्हें भी कर लो" इसमें ऐसे 75 स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताया गया है जिन्होंने पूरब से लेकर पश्चिम तक उत्तर से लेकर दक्षिण तक उन लोगो ने राष्ट्र के प्रति जो भावना थी उसको जगाया है.





उन्होंने कहा कि 'अमूमन हम यह सोचते हैं कि फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया 1857 की क्रांति से, लेकिन जब हमने रिसर्च किया तो हमने पाया कि सवा तीन सौ वर्ष पूर्व जब मुगल लोग अपने पैर जमा रहे थे, तभी लोगों के मन में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग रही थी. तभी 1525 में कर्नाटक की एक रानी थी, जिनका नाम था "रानी अबक्का चौटा" जो चौटा घराने की थीं. उस समय यूरोपीय शक्तियां यहां पर आ चुकी थीं और यूरोपियों शक्तियों में कई ने रानी घराने की अबक्का चौटा को यह जानते हुए की यह एक महिला है, यह हम लोगों को कैसे रोक पाएंगी उन लोगों ने रानी के राज्य के ऊपर एक भारी कर लगा दिया और कहा, आपको यह कर (टैक्स) देना होगा नहीं तो आपके राज्य पर कब्जा करेंगे. तभी रानी समझ गईं कि वह उनके राज्य का पैसा किसी भी तरह से जाने नहीं देंगी और उसका विरोध किया, जिसमें उस समय कई समुदाय जिसमें हिन्दू, मुस्लिम व अन्य लोगों ने रानी का साथ दिया औऱ उन सभी लोगो ने अपने जीते जी उन यूरोपीय शक्तियों को कर्नाटक में काबिज नहीं होने दिया. सबसे जरूरी बात यह है की रानी अबक्का भारत मे पहली और आखिरी महिला योद्धा थीं जिनको पौराणिक कथाओं में सभी अग्निबाण कहते हैं. जिसको मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी ने प्रयोग किया था. इसी कारण रानी अबक्का चौटा के नाम पर एक पोत का नाम "अबक्का" रखा गया है.'




चिरंजीव नाथ सिंहा बताते हैं कि 'उन्होंने उत्तर प्रदेश के सभी राज्यों लखनऊ हो, गाजीपुर हो या फिर इटावा के महापुरुष जिन्होंने योगदान दिया. लखनऊ के छात्रों को भी जानने का हक है कि स्वतंत्रता की जो अलख जगी थी वह किसी एक जगह से नहीं बल्कि पूरे देश के लोगों के योगदान से हुआ था. लखनऊ के ही एक महापुरुष हैं जिनका नाम संत कुमार था. जिनकी उम्र उस समय लगभग 13 य 14 वर्ष रही होगी. संत कुमार राय उस समय जो क्रांतिकारी थे उनके लिए काम करते थे. एक बार की बात है कि लखनऊ के आईटी चौराहे के पास से जा रहे थे, जिनके पास कुछ पम्पप्लेट्स व कुछ जरूरी डॉक्यूमेंट्स थे, जिनके आधार पर क्रांतिकारियों द्वारा आगे की कार्यवाही होनी थी. तभी इंस्पेक्टर ने उनको रोका तो उनके पास से क्रांतिकारियों को लेकर महत्वपूर्ण दस्तावेज प्राप्त हुए, जिसके बाद उस समय 13 साल के बच्चे के ऊपर अंग्रेजों ने बहुत ज़ुल्म किया. उनको नंगा कर बर्फ की सिल्ली पर लिटा दिया. उनके हाथों में कीलें ठोक दीं, लेकिन उन्होंने क्रांतिकारियों के बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी और जो क्रांतिकारियों का मिशन था वह कामयाब हो गया.'

चिरंजीव नाथ सिंहा बताते हैं कि 'इसी तरह अनेक क्रांतिकारी हैं उनको लेकर मैं यही बताना चाहूंगा कि देश के योगदान में पुरुषों के साथ महिलाओं का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है. सभी ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम सुना होगा. उसी तरह "नैना देवी" व "अजीजन बाई" का भी योगदान है. नैना देवी एक 12 वर्ष की बच्ची थी जो नाना साहब की दत्तक पुत्री थी, जो कानपुर के बिठूर में रहती थी. नाना साहब को अपने फोर्ट के तहत वहां से छोड़कर जाना था, तभी नैना देवी ने सोचा कि अगर वह अपने पिता के साथ जाएंगी तो पिता को उनकी सुरक्षा की चिंता रहेगी और राष्ट्र के प्रति उनका जो कर्तव्य है, वह पूरा नहीं कर सकेंगे. नैना देवी ने कहा कि 'पिता जी आप जाइये मैं इसी फोर्ट में रहूंगी. मैं जब तक यहां रहूंगी अंग्रेजों को यही लगेगा कि आप भी यही हैं और इसी तरह आप अंग्रेजों को चकमा देकर बहुत दूर जा चुके होंगे और अपनी सेना इकट्ठे कर चुके होंगे.'

यह भी पढ़ें : स्वतंत्रता दिवस 2023: यूपी में चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बलों की नजर, आतंकी हमले को लेकर अलर्ट

संवाददाता मो. मारूफ की खास रिपोर्ट

लखनऊ : पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा हुआ है, सभी लोग आजादी के दीवानों को याद कर शौर्य गाथाओं का गुणगान कर रहे हैं. वहीं राजधानी में तैनात एक आईपीएस अधिकारी ने देश के उन गुमनाम 150 शहीदों के बलिदान पर किताब लिखी है, जिनका योगदान देश को आजादी दिलाने में रहा है. उनका मुख्य उद्देश्य वर्तमान समय की युवा पीढ़ी इन बलिदानियों के बलिदान को समझ सके और उनके देशभक्ति की भावना से रूबरू होकर एक नई अलख जगा सके.

राजधानी के पश्चिम में तैनात एडीसीपी चिरंजीव नाथ सिन्हा ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि 'आजादी का अमृत महोत्सव एक ऐसा स्वर्णिम युग है, जिसमें हम अपने देश के प्रति प्राण न्यौछावर करने वालों को हम याद करते है, लेकिन कहीं न कहीं इसमें लोगों की संख्या कम है, जिनको हम जानते हैं कि उन लोगों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. संख्या इससे कई गुना ज्यादा है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी, मगर वह लोग मेन स्ट्रीम में नहीं आए. उनका लक्ष्य भी नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने जान की बाजी लगा दी. हमारा दायित्व बनता है कि ऐसे महान विभूतियों के गुमनाम किस्सों को हम लोग आजकल के युवाओं को बताएं. ऐसे ही महान विभूतियों को लेकर दो किताबों की रचना की है. पहली पुस्तक है उसका नाम है "रक्त का कण कण समर्पित" जिसमें उत्तर प्रदेश के 75 स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिनका योगदान हमको पता नहीं है, जो गुमनाम हो गए. इसी तरह दूसरी पुस्तक जिसका नाम "जरा याद उन्हें भी कर लो" इसमें ऐसे 75 स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताया गया है जिन्होंने पूरब से लेकर पश्चिम तक उत्तर से लेकर दक्षिण तक उन लोगो ने राष्ट्र के प्रति जो भावना थी उसको जगाया है.





उन्होंने कहा कि 'अमूमन हम यह सोचते हैं कि फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया 1857 की क्रांति से, लेकिन जब हमने रिसर्च किया तो हमने पाया कि सवा तीन सौ वर्ष पूर्व जब मुगल लोग अपने पैर जमा रहे थे, तभी लोगों के मन में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग रही थी. तभी 1525 में कर्नाटक की एक रानी थी, जिनका नाम था "रानी अबक्का चौटा" जो चौटा घराने की थीं. उस समय यूरोपीय शक्तियां यहां पर आ चुकी थीं और यूरोपियों शक्तियों में कई ने रानी घराने की अबक्का चौटा को यह जानते हुए की यह एक महिला है, यह हम लोगों को कैसे रोक पाएंगी उन लोगों ने रानी के राज्य के ऊपर एक भारी कर लगा दिया और कहा, आपको यह कर (टैक्स) देना होगा नहीं तो आपके राज्य पर कब्जा करेंगे. तभी रानी समझ गईं कि वह उनके राज्य का पैसा किसी भी तरह से जाने नहीं देंगी और उसका विरोध किया, जिसमें उस समय कई समुदाय जिसमें हिन्दू, मुस्लिम व अन्य लोगों ने रानी का साथ दिया औऱ उन सभी लोगो ने अपने जीते जी उन यूरोपीय शक्तियों को कर्नाटक में काबिज नहीं होने दिया. सबसे जरूरी बात यह है की रानी अबक्का भारत मे पहली और आखिरी महिला योद्धा थीं जिनको पौराणिक कथाओं में सभी अग्निबाण कहते हैं. जिसको मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी ने प्रयोग किया था. इसी कारण रानी अबक्का चौटा के नाम पर एक पोत का नाम "अबक्का" रखा गया है.'




चिरंजीव नाथ सिंहा बताते हैं कि 'उन्होंने उत्तर प्रदेश के सभी राज्यों लखनऊ हो, गाजीपुर हो या फिर इटावा के महापुरुष जिन्होंने योगदान दिया. लखनऊ के छात्रों को भी जानने का हक है कि स्वतंत्रता की जो अलख जगी थी वह किसी एक जगह से नहीं बल्कि पूरे देश के लोगों के योगदान से हुआ था. लखनऊ के ही एक महापुरुष हैं जिनका नाम संत कुमार था. जिनकी उम्र उस समय लगभग 13 य 14 वर्ष रही होगी. संत कुमार राय उस समय जो क्रांतिकारी थे उनके लिए काम करते थे. एक बार की बात है कि लखनऊ के आईटी चौराहे के पास से जा रहे थे, जिनके पास कुछ पम्पप्लेट्स व कुछ जरूरी डॉक्यूमेंट्स थे, जिनके आधार पर क्रांतिकारियों द्वारा आगे की कार्यवाही होनी थी. तभी इंस्पेक्टर ने उनको रोका तो उनके पास से क्रांतिकारियों को लेकर महत्वपूर्ण दस्तावेज प्राप्त हुए, जिसके बाद उस समय 13 साल के बच्चे के ऊपर अंग्रेजों ने बहुत ज़ुल्म किया. उनको नंगा कर बर्फ की सिल्ली पर लिटा दिया. उनके हाथों में कीलें ठोक दीं, लेकिन उन्होंने क्रांतिकारियों के बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी और जो क्रांतिकारियों का मिशन था वह कामयाब हो गया.'

चिरंजीव नाथ सिंहा बताते हैं कि 'इसी तरह अनेक क्रांतिकारी हैं उनको लेकर मैं यही बताना चाहूंगा कि देश के योगदान में पुरुषों के साथ महिलाओं का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है. सभी ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम सुना होगा. उसी तरह "नैना देवी" व "अजीजन बाई" का भी योगदान है. नैना देवी एक 12 वर्ष की बच्ची थी जो नाना साहब की दत्तक पुत्री थी, जो कानपुर के बिठूर में रहती थी. नाना साहब को अपने फोर्ट के तहत वहां से छोड़कर जाना था, तभी नैना देवी ने सोचा कि अगर वह अपने पिता के साथ जाएंगी तो पिता को उनकी सुरक्षा की चिंता रहेगी और राष्ट्र के प्रति उनका जो कर्तव्य है, वह पूरा नहीं कर सकेंगे. नैना देवी ने कहा कि 'पिता जी आप जाइये मैं इसी फोर्ट में रहूंगी. मैं जब तक यहां रहूंगी अंग्रेजों को यही लगेगा कि आप भी यही हैं और इसी तरह आप अंग्रेजों को चकमा देकर बहुत दूर जा चुके होंगे और अपनी सेना इकट्ठे कर चुके होंगे.'

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