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विनय पाठक के कार्यकाल में कई निजी बैंकों में हुआ निवेश, पीएनबी हाउसिंग को भेजे गए 425 करोड़ - डीएलएफ

छत्रपति शाहूजी महाराज विवि के कुलपति रहे प्रो. विनय पाठक के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2019 में यूपीपीसीएल के कर्मचारियों और अधिकारियों के पीएफ फंड नियम विरुद्ध तरीके से डीएलएफ में निवेश किया गया था. पाठक के कार्यकाल में ही विवि का पैसा पीएनबी हाउसिंग (PNB Housing), एचडीएफसी हाउसिंग (HDFC Housing) से लेकर एस बैंक और काॅरपोरेशन बैंक (YES Bank and Corporation Bank) में अलग-अलग मद के नाम पर निवेश किया गया.

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Published : Nov 24, 2022, 3:25 PM IST

Updated : Nov 24, 2022, 4:10 PM IST

लखनऊ : छत्रपति शाहूजी महाराज विवि के कुलपति रहे प्रो. विनय पाठक के खिलाफ कमीशन सहित भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद उनके कारनामे परत दर परत खुलते जा रहे हैं. वर्ष 2019 में यूपीपीसीएल के कर्मचारियों और अधिकारियों के पीएफ फंड नियम विरुद्ध तरीके से डीएलएफ (DLF) में निवेश किया गया था. कुछ इसी तरह से एकेटीयू में प्रो पाठक के कार्यकाल में सिर्फ कमीशन के चक्कर में इसे अंजाम तक ले जाया गया. पाठक के कार्यकाल में विवि का पैसा पीएनबी हाउसिंग (PNB Housing), एचडीएफसी हाउसिंग (HDFC Housing) से लेकर एस बैंक और काॅरपोरेशन बैंक (YES Bank and Corporation Bank) में अलग-अलग मद के नाम पर निवेश किया गया.

विश्वविद्यालय सूत्रों का कहना है कि यूपीपीसीएल में जो फंड निवेश किए गए, वे अधिकारियों और कर्मचारियों के पीएफ के पैसे थे. वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2021 तक एकेटीयू के पूर्व कुलपति रहे प्रो. पाठक ने अपने कार्यकाल के दौरान विश्वविद्यालय का पैसा नियम को दरकिनार कर न केवल निजी बैंकों में निवेश कराया, बल्कि से मनमुताबिक कार्यों को अंजाम भी दिया. सूत्रों का कहना है कि वित्त समिति की बैठकों के जरिए इसको अनुमोदित भी कराया गया, जबकि विश्वविद्यालय के प्रथम रेगुलेशन के बिंदु संख्या 4.23 के नियमानुसार अनुरक्षित धनराशि राष्ट्रीय बैंक में ही रखने का प्राविधान है. इसके बावजूद प्रो. पाठक के कार्यकाल में नॉन शेड्यूल बैंकों में विवि का पैसा जमा कराया गया.

विवि रेगुलेशन (university regulation) के अनुसार वित्त समिति के निर्णय में निवेश के लिए उस दौरान प्रो. पाठक ही समिति के अध्यक्ष थे. इनके अधीन संस्थाओं के निदेशक और सदस्य होते हैं, इसलिए इस कार्य में केवल वित्त अधिकारी की सहभागिता जरूरी थी. लिहाजा इस कार्य को करने की राह में उनके सामने कोई रुकावट नहीं आई. दस्तावेजों पर नजर डालें तो 5 दिसंबर 2017 को वित्त समिति की बैठक हुई. 49वीं बैठक में पीएनबी हाउसिंग फाइनेंस में 25 करोड़ रुपए के निवेश को अनुमोदन प्रदान किया गया. 24 मार्च 2018 को वित्त समिति की 50वीं बैठक में पीएनबी हाउसिंग फंड (PNB Housing Finance) के नाम पर 400 करोड़ और एचडीएफसी हाउसिंग फंड के नाम पर 50 करोड़ रुपए के निवेश को अनुमोदन दिया गया. इस बैठक में बैंकों से प्राप्त दरों के आधार पर 200 करोड़ रुपए के निवेश की मंजूरी दी गई.



सूत्रों का कहना है कि करोड़ों रुपए कहां निवेश किए गए, यह जांच का विषय है, लेकिन यह कार्य सिर्फ मोटे कमीशन को लेकर किया गया. जानकारों का कहना है कि निजी बैंकों और हाउसिंग संस्थाओं की तरफ से निवेश पर मोटा कमीशन दिया जाता है. इसलिए यह सारे कार्य किए गए. पहली अप्रैल 2019 से लेकर 31 मार्च 2020 की बैलेंस शीट को देखें तो प्रो. पाठक के कार्यकाल में न केवल पीएनबी हाउसिंग में निवेश किए गए, बल्कि आईसीआईसीआई बैंक, काॅरपोरेशन बैंक, एस बैंक में निवेश किए जाने से लेकर ट्रांजेक्शन किए जाने का जिक्र है. इनमें कुछ बैंकों का तो कई बार जिक्र किया गया है. कुल मिलाकर 2018-19 के दौरान अलग अलग बैंकों में विवि का जहां 93.47 करोड़ रुपए का निवेश था. वहीं 19-20 में यह रकम 3. 11 अरब पहुंच गई. विवि के खाते में आर्थिक वृद्धि तो देखी गई, पर जिन कारणों से ये बढ़ोतरी हुई उसका कोई लेखा-जोखा नहीं है. विश्वविद्यालय के पास आय को लेकर अलग-अलग फंड होते हैं. जिनकों सिर्फ नेशनल बैंक में ही जमा या निवेश हो सकता है. पर उनके कार्यकाल में रिकार्ड निजी बैंकों में निवेश कर दिया.

यह भी पढ़ें : पुलिसकर्मी की बाइक से बंदरों ने निकाली शराब की बोतल, देखें फिर क्या हुआ

लखनऊ : छत्रपति शाहूजी महाराज विवि के कुलपति रहे प्रो. विनय पाठक के खिलाफ कमीशन सहित भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद उनके कारनामे परत दर परत खुलते जा रहे हैं. वर्ष 2019 में यूपीपीसीएल के कर्मचारियों और अधिकारियों के पीएफ फंड नियम विरुद्ध तरीके से डीएलएफ (DLF) में निवेश किया गया था. कुछ इसी तरह से एकेटीयू में प्रो पाठक के कार्यकाल में सिर्फ कमीशन के चक्कर में इसे अंजाम तक ले जाया गया. पाठक के कार्यकाल में विवि का पैसा पीएनबी हाउसिंग (PNB Housing), एचडीएफसी हाउसिंग (HDFC Housing) से लेकर एस बैंक और काॅरपोरेशन बैंक (YES Bank and Corporation Bank) में अलग-अलग मद के नाम पर निवेश किया गया.

विश्वविद्यालय सूत्रों का कहना है कि यूपीपीसीएल में जो फंड निवेश किए गए, वे अधिकारियों और कर्मचारियों के पीएफ के पैसे थे. वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2021 तक एकेटीयू के पूर्व कुलपति रहे प्रो. पाठक ने अपने कार्यकाल के दौरान विश्वविद्यालय का पैसा नियम को दरकिनार कर न केवल निजी बैंकों में निवेश कराया, बल्कि से मनमुताबिक कार्यों को अंजाम भी दिया. सूत्रों का कहना है कि वित्त समिति की बैठकों के जरिए इसको अनुमोदित भी कराया गया, जबकि विश्वविद्यालय के प्रथम रेगुलेशन के बिंदु संख्या 4.23 के नियमानुसार अनुरक्षित धनराशि राष्ट्रीय बैंक में ही रखने का प्राविधान है. इसके बावजूद प्रो. पाठक के कार्यकाल में नॉन शेड्यूल बैंकों में विवि का पैसा जमा कराया गया.

विवि रेगुलेशन (university regulation) के अनुसार वित्त समिति के निर्णय में निवेश के लिए उस दौरान प्रो. पाठक ही समिति के अध्यक्ष थे. इनके अधीन संस्थाओं के निदेशक और सदस्य होते हैं, इसलिए इस कार्य में केवल वित्त अधिकारी की सहभागिता जरूरी थी. लिहाजा इस कार्य को करने की राह में उनके सामने कोई रुकावट नहीं आई. दस्तावेजों पर नजर डालें तो 5 दिसंबर 2017 को वित्त समिति की बैठक हुई. 49वीं बैठक में पीएनबी हाउसिंग फाइनेंस में 25 करोड़ रुपए के निवेश को अनुमोदन प्रदान किया गया. 24 मार्च 2018 को वित्त समिति की 50वीं बैठक में पीएनबी हाउसिंग फंड (PNB Housing Finance) के नाम पर 400 करोड़ और एचडीएफसी हाउसिंग फंड के नाम पर 50 करोड़ रुपए के निवेश को अनुमोदन दिया गया. इस बैठक में बैंकों से प्राप्त दरों के आधार पर 200 करोड़ रुपए के निवेश की मंजूरी दी गई.



सूत्रों का कहना है कि करोड़ों रुपए कहां निवेश किए गए, यह जांच का विषय है, लेकिन यह कार्य सिर्फ मोटे कमीशन को लेकर किया गया. जानकारों का कहना है कि निजी बैंकों और हाउसिंग संस्थाओं की तरफ से निवेश पर मोटा कमीशन दिया जाता है. इसलिए यह सारे कार्य किए गए. पहली अप्रैल 2019 से लेकर 31 मार्च 2020 की बैलेंस शीट को देखें तो प्रो. पाठक के कार्यकाल में न केवल पीएनबी हाउसिंग में निवेश किए गए, बल्कि आईसीआईसीआई बैंक, काॅरपोरेशन बैंक, एस बैंक में निवेश किए जाने से लेकर ट्रांजेक्शन किए जाने का जिक्र है. इनमें कुछ बैंकों का तो कई बार जिक्र किया गया है. कुल मिलाकर 2018-19 के दौरान अलग अलग बैंकों में विवि का जहां 93.47 करोड़ रुपए का निवेश था. वहीं 19-20 में यह रकम 3. 11 अरब पहुंच गई. विवि के खाते में आर्थिक वृद्धि तो देखी गई, पर जिन कारणों से ये बढ़ोतरी हुई उसका कोई लेखा-जोखा नहीं है. विश्वविद्यालय के पास आय को लेकर अलग-अलग फंड होते हैं. जिनकों सिर्फ नेशनल बैंक में ही जमा या निवेश हो सकता है. पर उनके कार्यकाल में रिकार्ड निजी बैंकों में निवेश कर दिया.

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Last Updated : Nov 24, 2022, 4:10 PM IST
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