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थिएटर युवाओं के लिए मुम्बई जाने की सीढ़ी :सुरेश शर्मा - नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा

ईटीवी भारत ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर सुरेश शर्मा से बातचीत की. उन्होंने कहा कि आज के जो युवा मायानगरी मुंबई जाना चाहते हैं वो थिएटर की तरफ आकर्षित हो रहे हैं.

ईटीवी भारत ने सुरेश शर्मा से की बातचीत.
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Published : Jun 30, 2019, 6:53 PM IST

लखनऊ: थिएटर को कला प्रेमी और रंगकर्मी अपने जीवन का अहम हिस्सा मानते हैं. इसको बढ़ाने के लिए कई इंस्टीट्यूट और स्कूल भी अब खुल रहे हैं. वहीं इन सभी स्कूलों और इंस्टीट्यूट के बीच नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा आज भी रंगकर्मियों का पसंदीदा बना हुआ है. वहीं ईटीवी भारत ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर सुरेश शर्मा के साथ बातचीत की.

ईटीवी भारत ने सुरेश शर्मा से की बातचीत.
ईटीवी भारत के साथ सुरेश शर्मा ने की बातचीत-
  • पिछले कई वर्षों के बजाय अब थिएटर में काफी बदलाव आ चुके हैं.
  • मुंबई जाने के लिए युवा थिएटर की तरफ आकर्षित हो रहे हैं.
  • पहले लोगों का झुकाव थिएटर की तरफ ही रहता था पर अब वह हर तरफ सोचते हैं.
  • पुरानी यादों को साझा करते कहा कि लखनऊ आना घर वापसी समझता हूं.
  • नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा अभी युवाओं की पहली पसंद बना हुआ है.
  • एनएसडी में एक चार्म है जिसकी वजह से सभी रंगकर्मी इससे जुड़े रहना चाहते हैं.

थिएटर आर्टिस्ट के साथ-साथ लोगों से भी अपील करना चाहता हूं कि थिएटर को फिल्मी पर्दे के बराबर न माने. थिएटर की अपनी महत्ता है और फिल्मों की अपनी महत्ता है. थिएटर आर्टिस्ट जरूर फिल्मी पर्दे पर जाते हैं और अपना नाम कमाते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि आप थिएटर की तुलना फिल्मों से करें.
-सुरेश शर्मा, डायरेक्टर, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा

लखनऊ: थिएटर को कला प्रेमी और रंगकर्मी अपने जीवन का अहम हिस्सा मानते हैं. इसको बढ़ाने के लिए कई इंस्टीट्यूट और स्कूल भी अब खुल रहे हैं. वहीं इन सभी स्कूलों और इंस्टीट्यूट के बीच नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा आज भी रंगकर्मियों का पसंदीदा बना हुआ है. वहीं ईटीवी भारत ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर सुरेश शर्मा के साथ बातचीत की.

ईटीवी भारत ने सुरेश शर्मा से की बातचीत.
ईटीवी भारत के साथ सुरेश शर्मा ने की बातचीत-
  • पिछले कई वर्षों के बजाय अब थिएटर में काफी बदलाव आ चुके हैं.
  • मुंबई जाने के लिए युवा थिएटर की तरफ आकर्षित हो रहे हैं.
  • पहले लोगों का झुकाव थिएटर की तरफ ही रहता था पर अब वह हर तरफ सोचते हैं.
  • पुरानी यादों को साझा करते कहा कि लखनऊ आना घर वापसी समझता हूं.
  • नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा अभी युवाओं की पहली पसंद बना हुआ है.
  • एनएसडी में एक चार्म है जिसकी वजह से सभी रंगकर्मी इससे जुड़े रहना चाहते हैं.

थिएटर आर्टिस्ट के साथ-साथ लोगों से भी अपील करना चाहता हूं कि थिएटर को फिल्मी पर्दे के बराबर न माने. थिएटर की अपनी महत्ता है और फिल्मों की अपनी महत्ता है. थिएटर आर्टिस्ट जरूर फिल्मी पर्दे पर जाते हैं और अपना नाम कमाते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि आप थिएटर की तुलना फिल्मों से करें.
-सुरेश शर्मा, डायरेक्टर, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा

Intro:

लखनऊ। थिएटर को जहां एक तरफ कला प्रेमी या रंगकर्मी अपने जीवन का अहम हिस्सा मानते हैं वहीं इसको बढ़ाने के लिए कई इंस्टिट्यूट और स्कूल भी अब खुलते जा रहे हैं। लेकिन इन सभी स्कूलों और इंस्टीट्यूट के बीच नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा आज भी रंग कर्मियों का पसंदीदा बना हुआ है नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से तमाम अभिनेता बड़े पर्दे पर जा चुके हैं और अपना नाम कमा चुके हैं तो वही थिएटर आर्टिस्ट भी इससे जुड़ने का ख्वाब देखते हैं नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर सुरेश शर्मा पिछले दिनों लखनऊ में थे जिनसे ईटीवी भारत में बातचीत की।


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राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक सुरेश शर्मा थिएटर में पहले की अपेक्षा काफी बदलाव देखते हैं। वह कहते हैं कि पिछली वर्षों के बजाय अब थिएटर में काफी बदलाव आ चुके हैं। मैं समझता हूं कि अब युवा थिएटर की तरफ आकर्षित होते हैं लेकिन उनमें यह उम्मीद कहीं ना कहीं रहती है कि वह थिएटर की बदौलत मुंबई की रवाना हो सकेंगे। शर्मा कहते हैं कि मैं इसे गलत नहीं मानता हूं क्योंकि हर किसी को अपनी जिंदगी को बेहतर तरीके से जीने का हक है लेकिन इससे कहीं ना कहीं थिएटर को नुकसान हो रहा है और युवाओं में भी एकाग्रता की कमी हो रही है पहले लोगों का झुकाव थिएटर की तरफ ही रहता था पर अब वह हर तरफ सोचते हैं।

अपने पुराने दिनों को याद करते हुए शर्मा कहते हैं कि मुझे याद है कि मेरी शुरुआत लखनऊ से हुई है लखनऊ आना मैं अपने घर वापसी समझता हूं भारतेंदु नाट्य अकादमी के पहले डिप्लोमा बैच का में विद्यार्थी रहा हूं यहां पर अनिल रस्तोगी सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ समेत कई ऐसे लोगों बीच रहकर मैंने अपने जीवन के कई यादगार पल बिताए हैं जिसके बाद में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर के पद तक पहुंचा हूं।

शर्मा कहते हैं कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा अभी युवाओं की पहली पसंद बना हुआ है और थियेटर आर्टिस्ट एनएसडी का एक हिस्सा बनना चाहते हैं पर मैं बताना चाहता हूं कि आज के युग में एनर्जी के साथ-साथ कई ऐसे भी इंस्टीट्यूट और अकादमी अब खुल गए हैं जो काफी बेहतर है। एनएसडी भी उनमें से एक है। मैं मानता हूं कि एन एस डी में एक चार्म है है जिसकी वजह से सभी रंगकर्मी इससे जुड़े रहना चाहते हैं।

भारतेंदु नाट्य अकादमी में हुए ग्रीष्मकालीन नाट्य समारोह में एनएसडी की तरफ से कई नाटक किए थे जिसमें नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के ही रंग कर्मियों ने प्रतिभाग किया था। सुरेश शर्मा भी नाटक के रंग कर्मियों का हिस्सा बने थे। इस बाबत वह कहते हैं कि मैं नाटक के बीच अपने सभी विद्यार्थियों के बीच का ही एक हिस्सा बनना चाहता हूं ताकि उन्हें बेहतर तरीके से समझ सकूं।


Conclusion:नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर सुरेश शर्मा कहते हैं कि मैं अपने थिएटर आर्टिस्ट के साथ साथ लोगों से भी अपील करना चाहता हूं कि थिएटर को फिल्मी पर्दे के बराबर न माने। थिएटर की अपनी महत्ता है और फिल्मों की अपनी महत्ता है। हां, थिएटर आर्टिस्ट जरूर फिल्मी पर्दे पर जाते हैं और अपना नाम कमाते हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि आप थिएटर की तुलना फिल्मों से करें।

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर सुरेश शर्मा की ईटीवी भारत के साथ बातचीत का वन टू वन।

रामांशी मिश्रा
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