लखनऊ: देश की पहली कॉफी चेन 'कैफे कॉफी डे' के संस्थापक वीजी सिद्धार्थ कहा करते थे 'अलॉट कैन हैपन ओवर कॉफी' यानी कॉफी के दौरान जिंदगी में काफी कुछ हो सकता है. आज चाय पर चर्चा के साथ ही कॉफी भी एक परंपरा और पहचान का रूप ले चुकी है. इंटरनेशनल कॉफी डे के मौके पर देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट.
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1960 में कैसा था लखनऊ का इंडियन कॉफी हाउस
इंडियन कॉफी हाउस कई मायनों में लखनऊ के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण मंच रहा है. प्रयागराज से आए डॉ मोहम्मद हारून सिद्दीकी कहते हैं कि 1960 के दशक के आसपास जब हम लखनऊ में कॉलेज में पढ़ा करते थे, तो हमारा रूटीन था कि हम दिन में कुछ घंटे जरूर इंडियन कॉफी हाउस में बिताएं. इंडियन कॉफी हाउस एक ऐसी जगह होती थी, जहां देर रात तक चहल-पहल कम नहीं होती थी.
- यहां तमाम बड़े राजनीतिज्ञ नेता और कई अन्य लोग आते थे.
- घंटों बैठने के बावजूद कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था.
- राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षिक जैसी तमाम बातें एक जगह पर सुनने को मिल जाती थी.
- यहां पर सिर्फ पुराने लोग ही आते हैं क्योंकि युवा कैफे कॉफी डे, नेस्कैफे और बरिस्ता जैसी जगहों पर जाने लगे हैं.
- पहले इंडियन कॉफी हाउस में आकर राजनीति के तमाम पहलुओं पर कुछ न कुछ सीखने को मिलता था.
लोग ऑथेंटिक टेस्ट के लिए आते थे इंडियन कॉफी हाउस
इंडियन कॉफी हाउस के संचालक केके सिंह कहते हैं कि पहले यहां पर लोग ऑथेंटिक कॉफी के टेस्ट के लिए आते थे. आज भी अन्य कॉफी हाउस की अपेक्षा इंडियन कॉफी हाउस में कॉफी बेहतरीन और किफायती दामों पर मिलती है.
इंटरनेशनल कॉफी डे पर नवाबों की नगरी के इंडियन कॉफी हाउस की कहानी यह बयां कर रही है कि भले ही कॉफी हाउस इसके मिजाज बदल गए हो, लेकिन आज भी कॉफी पर किस्से कहानियों का दौर जारी है.