लखनऊ: तीन जून को कानपुर में हिंसा होने के 7 दिन बाद 10 जून को दोपहर डेढ़ बजे जुमे की नमाज के लिए लोग इकट्ठा हुए. नमाज खत्म होने के 30 मिनट बाद 9 शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए. नारेबाजी, पत्थरबाजी और आगजनी की. तब यूपी की पुलिस, प्रशासन और इंटेलिजेंस क्या कर रहा था? जब 7 दिन पहले हिंसा हो चुकी थी तो इंटेलिजेंस ने क्यों नही इनपुट दिया. वैसी ही हिंसा एक बार फिर हो गई. ऐसे में इंटेलिजेंस की सक्रियता को लेकर सवाल उठना लाजिमी है. सवाल है कि क्या यूपी का इंटेलिजेंस अमला कमजोर पड़ चुका है? हर बार की तरह फिर यह सवाल सुलग रहा है. ये सवाल बीते वर्षों में हुई हिंसा में भी उठे हैं.
12 अगस्त 2012 को देश के बाहर हुई एक घटना को लेकर जुमे की नमाज के बाद लखनऊ में भीड़ इकट्ठा हुई. हिंसक प्रदर्शन करते हुए भीड़ ने पहले बुद्ध की प्रतिमा तोड़ी फिर शहीद स्मारक में तोड़फोड़ की थी. ये घटना योजना बनाकर अंजाम दी गई थी, बावजूद इसके लोकल इंटेलिजेंस को इस बात की भनक तक नही लगी थी.
साल 2019 में लखनऊ में CAA-NRC के खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन चल रहे थे. इसी बीच लखनऊ में प्रदर्शनकारी उग्र हुए और योजनाबद्ध तरीके से उन्होंने हिंसा की. लखनऊ में पहली बार हुआ था कि लाखों की संख्या में हिंसक भीड़ हजरतगंज चौराहे तक पहुंची थी. इस हिंसा की प्लानिंग की जानकारी न ही इंटेलिजेंस को हो पाई थी और न ही पुलिस को. करोड़ों की सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान हुआ था. ठीक उसी तरह नूपुर शर्मा के बयान के खिलाफ बीते दिनों पहले कानपुर में फिर 7 दिनों बाद 9 जिलों में हिंसा भड़की और इसकी भी पुख्ता जानकारी इंटेलिजेंस नही दे सकी. नतीजन हिंसा में 13 पुलिस कर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए. आख़िरकार क्या वजह है कि इंटेलिजेंस बार-बार फेल हो रही है.
इस बारे में पूर्व डीजीपी एके जैन बताते हैं कि 3 जून को कानपुर में संगठनों ने धोखा दिया था जिस कारण हिंसा भड़क गई. 10 जून को 9 शहरों में हिंसा होना चकित करता है. वो कहते है कि लोकल इंटेलिजेंस अपनी रिपोर्ट आम लोगों के बीच से ही इकट्ठा करती है लेकिन बीते कुछ सालों में आम जनता व लोकल इंटेलिजेंस के बीच वो संवाद नही बचा है जो कभी हुआ करता था. ऐसे में समय पर जानकारी नही मिलती है और ऐसी घटनाएं हो जाती है.
पूर्व डीजीपी बताते है कि राज्य में दो तरह की इंटेलिजेंस हैं. एक स्टेट लेवल व दूसरी लोकल इंटेलिजेंस, जिसकी कुल क्षमता लगभग 7 हजार के आसपास है. वो कहते हैं कि अब समय को देखते हुए इसकी संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है. उन्होंने बताया कि हर थाने पर लोकल इंटेलिजेंस (LIU) के तीन जवान मौजूद होते है. जो रिपोर्ट इकठ्ठा कर थाना व जिले के कप्तान को देते हैं लेकिन जनसंख्या की बढ़ोतरी को देखते हुए अब इसकी संख्या बढ़ाए जाने की जरूरत है.
कानपुर में 3 जून को हुई हिंसा का मुख्य आरोपी हयात जफर हाशमी को कानपुर पुलिस ने पकड़ा तो ये खुलासा हुआ कि हिंसा से पहले पुलिस को दी गयी एलआईयू की रिपोर्ट में हाशमी का नाम ही शामिल नही था. बल्कि हाशमी ने ही पूरे कानपुर में बाजार बंद व प्रदर्शन के पोस्टर लगवाए थे. यही नही वो सोशल मीडिया में लाइव आकर प्रदर्शन के लिए लोगों को उकसा रहा था. बावजूद इसके हाशमी का एलआईयू की रिपोर्ट में नाम नहीं था. इसे लेकर इंटेलिजेंस की सक्रियता को लेकर सवाल उठने लाजिमी हैं.
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