लखनऊ : राजधानी में रविवार को 'द इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक' की तरफ से स्थापना समारोह का आयोजन किया गया. स्थापना समारोह कार्यक्रम में प्रदेश के बड़े पीडियाट्रिशियन और न्यूरो सर्जन मौजूद रहे. इस दौरान तमाम डॉक्टरों ने एपिलेप्सी पर अपना प्रेजेंटेशन दिया और अन्य लोगों ने अपनी राय प्रस्तुत की. कार्यक्रम के दौरान कई डॉक्टरों को सम्मानित भी किया गया.
डॉ. संजीव जोशी, पीडियाट्रिशियन ने बताया कि आज यहां पर स्थापना समारोह कार्यक्रम मनाया जा रहा है और यहां पर तमाम पीडियाट्रिशियन और न्यूरो सर्जन मौजूद हैं. कई पार्ट में हमारा प्रोग्राम यहां पर हुआ है. और इस प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य बच्चों को मिर्गी से बचाना है. आज यहां पर सभी पीडियाट्रिशियन अपना-अपना प्रेजेंटेशन पेश कर रहे हैं.
एपिलेप्सी एक खतरनाक बीमारी है बच्चों में यह बीमारी तेजी से फैल रही है. ऐसे में जरूरी है कि बच्चों का ध्यान रखा जाए और शुरुआती स्टेज में ही बच्चों को किसी अच्छे पीडियाट्रिशियन के पास दिखाया जाए. जहां पर शुरुआती स्टेज में ही एपिलेप्सी को कंट्रोल किया जा सके.
कार्यक्रम में पीडियाट्रिशियन वसंत खलात्कर ने बताया कि एपिलेप्सी(मिर्गी) की बीमारी बच्चों में आम हो चुकी है. आज 10 में से तीन बच्चे एपिलेप्सी बीमारी से पीड़ित हैं. डॉ. वसंत खलात्कर ने बताया कि इस बीमारी में दिमागी गड़बड़ी की वजह से व्यक्ति को बार-बार दौरे आते हैं. बच्चों में यह समस्या प्रमुख तौर पर पाई जाती है. बच्चों में यह बीमारी अचानक से हो जाती है. शुरुआती स्टेज में इसे कंट्रोल में किया जा सकता है.
वहीं, स्टेट प्रेसिडेंट ऑफ 'द इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स' व केजीएमयू के पूर्व पीडियाट्रिशियन डॉ. रश्मि कुमार ने बताया कि मिर्गी में दिमाग में अचानक विद्युत और रासायनिक गतिविधि में परिवर्तन होता है. इससे मरीज को दौरे आने लगते हैं. मिर्गी का दौरा पड़ने का विकास जीवन के किसी भी समय उत्पन्न हो सकता है. लेकिन बच्चों और 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में यह सबसे अधिक पाया जाता है. पीडियाट्रिशियन बच्चे में मिर्गी का निदान कर सकता है. कुछ मामलों में दवा आसानी से दौरे को नियंत्रित कर सकती है, जबकि अन्य बच्चों को दौरे के साथ आजीवन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
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