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गर्भवती महिलाओं में बढ़ रहा HIV का खतरा, जीवन साथी से मिला वायरस का दंश

केंद्र सरकार द्वारा अभिभावक से बच्चों में एचआईवी संक्रमण रोकने के लिए 'प्रिवेंशन ऑफ पैरेंट टू चाइल्ड ट्रांसमिशन ऑफ एचआईवी' (पीपीटीसीटी) कार्यक्रम शुरू किया गया. इसके तहत स्टेट कंट्रोल सोसाइटी ने राज्य में सालभर में करीब 65 लाख गर्भवती महिलाओं की एचआईवी जांच का लक्ष्य रखा है. इसके लिए सरकारी अस्पतालों से लेकर सीएचसी तक में गर्भवती महिलाओं की मुफ्त एचआईवी जांच की सुविधा है.

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Published : Sep 9, 2021, 10:53 PM IST

गर्भवती महिलाओं में बढ़ रहा HIV का खतरा
गर्भवती महिलाओं में बढ़ रहा HIV का खतरा

लखनऊ: राज्य में गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर डबल खतरा बना हुआ है. एक तरफ बीपी, डायबिटीज, थायरॉइड, एनीमिया जैसी बीमारी महिलाओं पर हावी हैं, वहीं दूसरी तरफ जीवन साथी उन्हें एचआईवी का दंश भी दे रहे हैं. ऐसे में स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी ने गर्भवतियों की स्क्रीनिंग-ट्रीटमेंट पर जोर देने का फैसला किया है.

केंद्र सरकार द्वारा अभिभावक से बच्चों में एचआईवी संक्रमण रोकने के लिए 'प्रिवेंशन ऑफ पैरेंट टू चाइल्ड ट्रांसमिशन ऑफ एचआईवी' (पीपीटीसीटी) कार्यक्रम शुरू किया गया. इसके तहत स्टेट कंट्रोल सोसाइटी ने राज्य में सालभर में करीब 65 लाख गर्भवती महिलाओं की एचआईवी जांच का लक्ष्य रखा है. इसके लिए सरकारी अस्पतालों से लेकर सीएचसी तक में गर्भवती महिलाओं की मुफ्त एचआईवी जांच की सुविधा है. इसमें अभी 73 से 82 फीसद ही महिलाओं की जांच हो पा रही है. वहीं सालभर में हजार से ज्यादा महिलाएं एचआईवी की गिरफ्त में आ रही हैं.

गर्भवती महिलाओं में बढ़ रहा HIV का खतरा
2200 से ज्यादा जांच सेंटर
राज्य के 174 संयुक्त अस्पताल में एचआईवी जांच की सुविधा उपलब्ध है. वहीं 1,737 सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर गर्भवती महिलाओं की स्क्रीनिंग की सुविधा है. 464 सेंटरों में एचआईवी की कनफर्ममेट्री जांच की सुविधा है. इसके बावजूद अभी भी सभी महिलाओं की जांच नहीं हो पा रही है. बहुत सी महिलाएं जांच कराने में आनाकानी भी करती हैं. 73 से 82 फीसद गर्भवती महिलाओं की ही जांच हो पा रही है. करीब 18 फीसद महिलाओं की जांच नहीं हो पा रही है.
संक्रमित मां से जन्में 95 फीसदी बच्चे सुरक्षित
पीपीटीसीटी में उप निदेशक डॉ. माया बाजपेई के मुताबिक गर्भवस्था में सभी महिलाओं की एचआईवी की जांच जरूरी है. शत-प्रतिशत जांच पर फोकस किया जाएगा. साथ ही संक्रमित मां के गर्भ में पल रहे शिशु को वायरस से बचाने पर जोर दिया जा रहा है. इसके लिए संक्रमित महिलाएं गर्भावस्था के तीसरे माह से दवा देना शुरू कर दिया जाता है. इससे 95 फीसदी तक शिशु को संक्रमण से बचाने में मदद मिली. जन्म के बाद शिशु को भी दवा दी जाती है. 18 माह तक शिशु को डॉक्टर के संपर्क में रहने की जरूरत है.
एड्स कंट्रोल सोसाइटी के आंकड़े

  • 70 फीसदी महिलाओं को संक्रमण उनके पति (रेगुलर पार्टनर) से मिला.
  • 18 से 20 फीसदी ट्रक ड्राइवर संक्रमण बांट रहे हैं.
  • संक्रमित 30 फीसद गर्भवती महिलाओं में एचआईवी के कारण अज्ञात.
  • एक लाख गर्भवती में करीब .02 फीसदी महिलाएं पॉजिटिव मिल रही हैं.
वर्ष जांच लक्ष्य जांचें हुईं संक्रमित
2018 64 लाख 43 फीसदी 1159
2019 66 लाख 82 फीसदी1269
2020 66 लाख74 फीसदी1273

लखनऊ: राज्य में गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर डबल खतरा बना हुआ है. एक तरफ बीपी, डायबिटीज, थायरॉइड, एनीमिया जैसी बीमारी महिलाओं पर हावी हैं, वहीं दूसरी तरफ जीवन साथी उन्हें एचआईवी का दंश भी दे रहे हैं. ऐसे में स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी ने गर्भवतियों की स्क्रीनिंग-ट्रीटमेंट पर जोर देने का फैसला किया है.

केंद्र सरकार द्वारा अभिभावक से बच्चों में एचआईवी संक्रमण रोकने के लिए 'प्रिवेंशन ऑफ पैरेंट टू चाइल्ड ट्रांसमिशन ऑफ एचआईवी' (पीपीटीसीटी) कार्यक्रम शुरू किया गया. इसके तहत स्टेट कंट्रोल सोसाइटी ने राज्य में सालभर में करीब 65 लाख गर्भवती महिलाओं की एचआईवी जांच का लक्ष्य रखा है. इसके लिए सरकारी अस्पतालों से लेकर सीएचसी तक में गर्भवती महिलाओं की मुफ्त एचआईवी जांच की सुविधा है. इसमें अभी 73 से 82 फीसद ही महिलाओं की जांच हो पा रही है. वहीं सालभर में हजार से ज्यादा महिलाएं एचआईवी की गिरफ्त में आ रही हैं.

गर्भवती महिलाओं में बढ़ रहा HIV का खतरा
2200 से ज्यादा जांच सेंटर
राज्य के 174 संयुक्त अस्पताल में एचआईवी जांच की सुविधा उपलब्ध है. वहीं 1,737 सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर गर्भवती महिलाओं की स्क्रीनिंग की सुविधा है. 464 सेंटरों में एचआईवी की कनफर्ममेट्री जांच की सुविधा है. इसके बावजूद अभी भी सभी महिलाओं की जांच नहीं हो पा रही है. बहुत सी महिलाएं जांच कराने में आनाकानी भी करती हैं. 73 से 82 फीसद गर्भवती महिलाओं की ही जांच हो पा रही है. करीब 18 फीसद महिलाओं की जांच नहीं हो पा रही है.
संक्रमित मां से जन्में 95 फीसदी बच्चे सुरक्षित
पीपीटीसीटी में उप निदेशक डॉ. माया बाजपेई के मुताबिक गर्भवस्था में सभी महिलाओं की एचआईवी की जांच जरूरी है. शत-प्रतिशत जांच पर फोकस किया जाएगा. साथ ही संक्रमित मां के गर्भ में पल रहे शिशु को वायरस से बचाने पर जोर दिया जा रहा है. इसके लिए संक्रमित महिलाएं गर्भावस्था के तीसरे माह से दवा देना शुरू कर दिया जाता है. इससे 95 फीसदी तक शिशु को संक्रमण से बचाने में मदद मिली. जन्म के बाद शिशु को भी दवा दी जाती है. 18 माह तक शिशु को डॉक्टर के संपर्क में रहने की जरूरत है.
एड्स कंट्रोल सोसाइटी के आंकड़े

  • 70 फीसदी महिलाओं को संक्रमण उनके पति (रेगुलर पार्टनर) से मिला.
  • 18 से 20 फीसदी ट्रक ड्राइवर संक्रमण बांट रहे हैं.
  • संक्रमित 30 फीसद गर्भवती महिलाओं में एचआईवी के कारण अज्ञात.
  • एक लाख गर्भवती में करीब .02 फीसदी महिलाएं पॉजिटिव मिल रही हैं.
वर्ष जांच लक्ष्य जांचें हुईं संक्रमित
2018 64 लाख 43 फीसदी 1159
2019 66 लाख 82 फीसदी1269
2020 66 लाख74 फीसदी1273
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