लखनऊ : म्यूकर माइक्रोसिस व चोट की वजह से गल चुकी मुंह के ऊपरी जबड़े की हड्डी का और बेहतर इलाज होगा. कृत्रिम जबड़ा भी आसानी से लगाया जा सकेगा. ग्लॉबेलर इम्प्लांट नाक के रास्ते माथे की हड्डी में प्रत्यारोपित किया जा सकेगा. इससे जबड़े का बेस तैयार करने में मदद मिलेगी. यह जानकारी दिल्ली के डॉ. विवेक गौड़ ने दी. डॉ. विवेक गौड़ शुक्रवार को केजीएमयू में एडवांस इम्प्लांटोलॉजी पर आयोजित कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे.
डॉ. विवेक गौड़ ने कहा कि म्यूकर माइक्रोसिस या चोट की वजह से जबड़े के ऊपरी हिस्सा गल जाता है. इसका इलाज कठिन होता है. नकली जबड़ा प्रत्यारोपित नहीं हो पाता है. समुचित इलाज के अभाव में मरीज को खाना खाने में दिक्कत होती है. केजीएमयू प्रॉस्थोडॉन्टिक्स विभाग के डॉ. लक्ष्य कुमार ने बताया कि कई बार पीछे के दांत टूट जाते हैं. लोग उन्हें लगवाने में हीलाहवाली करते हैं. नतीजतन हड्डी अपनी जगह से हट जाती है. ऐसे में दांत लगाने के लिए नकली हड्डी प्रत्यारोपित करनी पड़ती है. उसके बाद ही मरीज में दांत लग पाता है. केजीएमयू के कुलपति डॉ. बिपिन पुरी ने कहा कि इस तरह की कार्यशाला से डॉक्टरों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है. तकनीक का आदान-प्रदान होता है. इसका फायदा मरीजों को मिलता है. इस दौरान दंत संकाय के डॉ. आरके सिंह को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया. बनारस के डॉ. अखिलेश व केजीएमयू के डॉ. लक्ष्य कुमार को फेलोशिप से सम्मानित किया गया.
डायबिटीज पीड़ित बच्चों को मिलेगा बेहतर इलाज : डायबिटीज पीड़ित बच्चों को इलाज मुहैया कराने के लिए केजीएमयू के बाल रोग विभाग में पीडियाट्रिक इंडोक्राइन यूनिट शुरू की गई. इसे सेंटर फॉर एक्सीलेंस के रूप में विकसित किया गया है. इससे केजीएमयू में डायबिटीज पीड़ित बच्चों को अब 24 घंटे इलाज मिलेगा. केजीएमयू कुलपति डॉ. बिपिन पुरी ने कहा कि भारत में 8.6 लाख बच्चे टाइप वन डायबिटीज की चपेट में हैं. दुखद है कि बहुत से बच्चों की बीमारी का पता शुरूआत में नहीं चल पाता है. जानकारी के अभाव में माता-पिता लक्षणों को नजरअंदाज करते हैं. गंभीर अवस्था में परिवारीजन बच्चे को लेकर अस्पताल आ रहे हैं. ऐसे में इलाज कठिन हो जाता है.
विभाग की अध्यक्ष डॉ. शैली अवस्थी ने कहा कि कुल डायबिटीज पीड़ितों में चार से पांच फीसदी बच्चे होते हैं. समय पर बीमारी की पहचान कर इलाज शुरू करने से बच्चे स्वस्थ्य जीवन जी सकते हैं. प्रत्येक सोमवार को पीडियाट्रिक इंडोक्राइन की ओपीडी का संचालन होगा. भर्ती की अलग से व्यवस्था की गई है. इसमें मरीज के भोजन व नाश्ते का इंतजाम है. मरीजों की निशुल्क जांच की सुविधा उपलब्ध होगी. मरीजों को मुफ्त इंसुलिन मुहैया कराने के लिए अलग से बजट की मांग की गई है. यूनिट में अभी 50 डायबिटीज टाइप वन से पीड़ित बच्चे पंजीकृत हैं. डॉक्टर व मरीज के परिजनों का वॉट्सएप ग्रुप भी बनाया गया. इसमें मरीज कभी भी सलाह हासिल कर सकते हैं. कार्यक्रम में दस बच्चों को ग्लूकोमीटर भी दिया गया.
फाइलेरिया का इलाज संभव : फाइलेरिया को खत्म करने के लिए शुक्रवार से सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया. बलरामपुर अस्पताल के निदेशक डॉ. रमेश कुमार गोयल व स्वास्थ्य विभाग में अपर निदेशक डॉ. जीएस वाजपेई ने अलीगंज शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में फाइलेरिया से बचाव की दवा खिलाकर अभियान का शुभारंभ किया. बलरामपुर अस्पताल के निदेशक ने डॉ. रमेश कुमार गायेल ने कहा कि फाइलेरिया से बचाव के लिए घर-घर दवा खिलाए जाएगी. इसके लिए 27 फरवरी तक अभियान चलेगा. दवा का सेवन जरूर करें. दवा पूरी तरह सुरक्षित है. डॉ. जीएस वाजपेई ने कहा कि फाइलेरिया एक ऐसी बीमारी है जो किसी को हो गई तो ठीक नहीं होती है. व्यक्ति का जीवन दुखदायी हो जाता है. इससे बचाव के लिए दवा खाएं. उन्होंने कहा कि यह बीमारी कोई नई नहीं है, पर बीमारी पर काबू पाना आसान है. आज हम फाइलेरिया के नए संक्रमण को रोकने में समर्थ हैं. राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी एवं अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. बिमल बैसवार ने स्वयं दवा का सेवन किया. उन्होंने सभी से दवा खाने की अपील की. उन्होंने कहा कि सबके संयुक्त प्रयास से इस बीमारी का बचाव संभव है. जिला स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी योगेश रघुवंशी ने बताया कि करीब 51 लाख आबादी को दवा खिलाई जाएगी. खाली पेट दवा का सेवन नहीं करना है.