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गैर कानूनी तरीके से रिकॉर्डेड टेलीफोनिक वार्तालाप भी ग्राह्य साक्ष्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट - इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Allahabad High Court Lucknow Bench) ने शुक्रवार को अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि गैर कानूनी तरीके से रिकॉर्डेड टेलीफोनिक वार्तालाप भी ग्राह्य साक्ष्य है.

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high court judgment on admissibility of telephonic conversation as evidence Illegally recorded telephonic conversation Allahabad High Court Lucknow Bench इलाहबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच गैर कानूनी तरीके से रिकॉर्डेड टेलीफोनिक वार्तालाप
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 2, 2023, 7:08 AM IST

Updated : Sep 2, 2023, 10:39 AM IST

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Allahabad High Court Lucknow Bench) ने शुक्रवार को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दो अभियुक्तों के बीच के रिकॉर्डेड टेलीफोनिक वार्तालाप का साक्ष्य इस आधार पर अस्वीकार्य नहीं किया जा सकता कि उक्त रिकॉर्डिंग गैर कानूनी तरीके से की गई है. न्यायालय ने कहा कि इस सम्बंध में कानून बिल्कुल स्पष्ट है कि कोई भी साक्ष्य (Illegally recorded telephonic conversation is admissible evidence) इस आधार पर अस्वीकार नहीं करार दिया जा सकता कि उसे गैर कानूनी ढंग से प्राप्त किया गया है.

न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने दिया आदेश
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने दिया आदेश

यह आदेश न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने महंत प्रसाद राम त्रिपाठी की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए पारित किया. दरअसल वर्ष 2015 में हैदर अली ने सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसका एक बिल पास करने के लिए फतेहगढ़ कैंटोनमेन्ट बोर्ड के सदस्य शशि मोहन ने बोर्ड के सीईओ महंत प्रसाद राम त्रिपाठी की ओर से डेढ़ लाख रुपये रिश्वत की मांग की.

जांच के दौरान सीबीआई ने दोनों अभियुक्तों का टेलीफोनिक वार्तालाप रिकॉर्ड किया. इसमें शशि मोहन द्वारा कथित रूप से याची को बताया गया कि हैदर अली ने बिल राशि का छह प्रतिशत भुगतान कर दिया है. इस पर याची द्वारा सिर्फ 'हां' में जवाब दिया गया, इससे पहले शशि मोहन आगे बात करता याची ने उसे ऑफिस आकर बात करने को कहा.

उक्त सीबीआई द्वारा रिकॉर्डेड उक्त वार्तालाप की साक्ष्य के तौर पर ग्राह्यता को चुनौती देते हुए याची ने सीबीआई कोर्ट के समक्ष उन्मोचन प्रार्थना पत्र दाखिल किया. इसे सीबीआई कोर्ट ने खारिज कर दिया. इसके बाद याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. याची की ओर से पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए कहा गया कि वर्तमान मामले में बिना प्रक्रिया का पालन किए उक्त रिकॉर्डिंग की गई है, लिहाजा यह ग्राह्य साक्ष्य नहीं है. हालांकि न्यायालय ने कहा कि उक्त मामले में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष 'इंटरसेप्टेड टेलीफोनिक कन्वरसेशन' के साक्ष्य के तौर ग्राह्यता का प्रश्न नहीं था.

ये भी पढ़ें- केंद्रीय मंत्री के बेटे के घर में हुई हत्या के मामले में विनय के परिजनों से मिला कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Allahabad High Court Lucknow Bench) ने शुक्रवार को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि दो अभियुक्तों के बीच के रिकॉर्डेड टेलीफोनिक वार्तालाप का साक्ष्य इस आधार पर अस्वीकार्य नहीं किया जा सकता कि उक्त रिकॉर्डिंग गैर कानूनी तरीके से की गई है. न्यायालय ने कहा कि इस सम्बंध में कानून बिल्कुल स्पष्ट है कि कोई भी साक्ष्य (Illegally recorded telephonic conversation is admissible evidence) इस आधार पर अस्वीकार नहीं करार दिया जा सकता कि उसे गैर कानूनी ढंग से प्राप्त किया गया है.

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यह आदेश न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने महंत प्रसाद राम त्रिपाठी की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए पारित किया. दरअसल वर्ष 2015 में हैदर अली ने सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसका एक बिल पास करने के लिए फतेहगढ़ कैंटोनमेन्ट बोर्ड के सदस्य शशि मोहन ने बोर्ड के सीईओ महंत प्रसाद राम त्रिपाठी की ओर से डेढ़ लाख रुपये रिश्वत की मांग की.

जांच के दौरान सीबीआई ने दोनों अभियुक्तों का टेलीफोनिक वार्तालाप रिकॉर्ड किया. इसमें शशि मोहन द्वारा कथित रूप से याची को बताया गया कि हैदर अली ने बिल राशि का छह प्रतिशत भुगतान कर दिया है. इस पर याची द्वारा सिर्फ 'हां' में जवाब दिया गया, इससे पहले शशि मोहन आगे बात करता याची ने उसे ऑफिस आकर बात करने को कहा.

उक्त सीबीआई द्वारा रिकॉर्डेड उक्त वार्तालाप की साक्ष्य के तौर पर ग्राह्यता को चुनौती देते हुए याची ने सीबीआई कोर्ट के समक्ष उन्मोचन प्रार्थना पत्र दाखिल किया. इसे सीबीआई कोर्ट ने खारिज कर दिया. इसके बाद याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. याची की ओर से पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए कहा गया कि वर्तमान मामले में बिना प्रक्रिया का पालन किए उक्त रिकॉर्डिंग की गई है, लिहाजा यह ग्राह्य साक्ष्य नहीं है. हालांकि न्यायालय ने कहा कि उक्त मामले में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष 'इंटरसेप्टेड टेलीफोनिक कन्वरसेशन' के साक्ष्य के तौर ग्राह्यता का प्रश्न नहीं था.

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Last Updated : Sep 2, 2023, 10:39 AM IST
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