लखनऊ : उत्तर प्रदेश में अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर की की चर्चा देशभर में है, लेकिन प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बुलडोजर की चर्चा एक और कारण से भी खूब होती है. यह है कथित रूप से अवैध निर्माण, जिनके खिलाफ लखनऊ विकास प्राधिकरण यानी एनडीए बराबर कार्रवाई करता रहता है. प्राधिकरण की इन्हीं कार्रवाइयों और नोटिसों के बीच आधा शहर अवैध रूप से बस गया है. ऐसे तमाम कालोनियां है, जो अवैध घोषित हैं और वहां लाखों लोग रह रहे हैं. स्वाभाविक है कि अब इन काॅलोनियों के खिलाफ कार्रवाई कर पाना एलडीए के बस की बात नहीं है. हां, नवविकसित इलाकों में प्रॉपर्टी डीलरों और एलडीए के बीच चूहे बिल्ली का खेल जारी है. यहां एक ओर प्लॉटिंग हो रही है तो कहीं-कहीं एलडीए की कार्रवाई की खानापूरी भी. बड़ा सवाल यह है कि यदि एलडीए इन अवैध कॉलोनियों का विकास नहीं चाहता तो क्यों नहीं राजस्व विभाग को चिट्ठी लिखकर रजिस्ट्री हो रोक दी जाती है. न रजिस्ट्री होगी और न ही अवैध निर्माण होंगे.
एलडीए अथवा आवास विकास विभाग द्वारा विकसित की गई काॅलोनियों में मानक के अनुसार चौड़ी सड़कें, पार्क, स्कूल और अन्य आवश्यक जरूरतों के लिए पर्याप्त भूमि छोड़ी जाती है, जबकि अवैध काॅलोनियों में इन सुविधाओं का ध्यान नहीं दिया जाता. यही कारण है कि एलडीए और आवास विकास की जमीनों को खरीदना महंगा होता है, जबकि अन्य जमीनें सस्ती होती हैं. स्वाभाविक है कि जिन लोगों के पास पैसे कम होते हैं, वह सस्ती जमीनों की ओर ही भागते हैं. अवैध काॅलोनियों के खिलाफ कार्रवाई करते वक्त एलडीए जिन बिंदुओं को देखता है, उनमें निर्माणाधीन इमारत का नक्शा पास हुआ है या नहीं, पास किए गए नक्शे के आधार पर निर्माण कार्य हो रहा है या नहीं, निर्माणाधीन इमारत का भू उपयोग क्या है और कृषि योग्य भूमि पर तो निर्माण नहीं किया जा रहा है. इन बिंदुओं को न पूरा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की तलवार लटकी रहती है.
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