लखनऊ : बीते 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना काल के दौरान प्राइवेट स्कूलों द्वारा लिए गए अधिक फीस को वापस करने के आदेश को सही ठहराते हुए अपना निर्णय दिया है. इस आदेश के बाद उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में अभिभावकों को एक उम्मीद जगी है कि कोरोना काल में जहां सब कुछ बंद था, आय के साधन कम थे. ऐसे में प्राइवेट स्कूलों द्वारा मनमानी तरीके से फीस बढ़ाकर ली गई. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब अभिभावक निजी स्कूलों से बढ़ी हुई फीस कैसे वापस लें, इसकी सही जानकारी न होने के कारण लगातार स्कूल और शिक्षा विभाग के अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं. ऐसे में प्रदेश के प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के अभिभावक किस सक्षम अधिकारी के सामने अपनी अपील को रखें उन्हें यह पता ही नहीं है.
जिलाधिकारी कार्यालय में करनी होगी रिपोर्ट : अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि 'साल 2018 में उत्तर प्रदेश शासन की ओर से जारी गजट के अनुसार, किसी भी तरह की अवैध वसूली व फीस संबंधित समस्या के लिए अभिभावकों को हर जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित कमेटी के सामने अपना प्रस्ताव प्रस्तुत करना होता है. सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना काल के दौरान लिए गए अधिक फीस वापसी का आदेश दे कर अभिभावकों को राहत दी है. सर्वोच्च अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 15 फीसदी वापसी के आदेश पर लगी रोक को हटा दिया है. अब सभी स्कूलों को सत्र 2020-21 व 2021-22 में ली गई फीस का 15 प्रतिशत वापस करना है. इस फीस वापसी के लिए अभिभावकों को अपने जिले के जिला अधिकारी कार्यालय में जिला शुल्क नियामक समिति के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज करानी होगी.
फीस की पूरी डिटेल प्रस्तुत करनी होगी : प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि 'फीस वापसी के लिए अभिभावकों को सत्र 2020-21 और 2021-22 में स्कूलों में जो फीस ली गई है, उसके साथ पिछले एक साल पहले विद्यालय में जो फीस ली गई है, उसका भी एक डॉक्यूमेंट प्रार्थना पत्र के साथ जिला शुल्क नियामक समिति के सामने रखना होगा. इसके बाद समिति अभिभावक के दिए गए प्रत्यावेदन के आधार पर स्कूल के द्वारा जो फीस रिपोर्ट सबमिट हुई है उससे उसका मिलान करेगी. जो अधिक फीस विद्यालय द्वारा ली गई है उसे वापस कराएगी. उन्होंने बताया कि राजधानी लखनऊ में कई ऐसे बड़े प्राइवेट स्कूल हैं जिन्होंने कोरोना काल में भी शासन के रोक के बावजूद भी फीस में बढ़ोतरी की थी, जबकि इस पूरे मामले पर जिलाधिकारी कार्यालय का कहना है कि जिन अभिभावकों को फीस में छूट लेनी है वह समिति के सामने अपना प्रत्यावेदन दें, उसका नियमानुसार निपटारा किया जाएगा. वहीं जिला विद्यालय निरीक्षक राकेश कुमार पांडे का कहना है कि 'हमारे पास जितने भी अभिभावक फीस वापसी करने की प्रार्थना लेकर आते हैं, उन सभी को जिला अधिकारी कार्यालय में बनी समिति के पास भेज दिया जाता है.'
राजधानी लखनऊ में कोरोना काल के दौरान ली गई फीस से 15% फीस की राशि वापस की जाने वाली रकम करोड़ों में है, इसका सही आंकड़ा जानना आसान नहीं है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि राजधानी लखनऊ में करीब 200 से अधिक बड़े प्राइवेट स्कूल संचालित हैं, जिनमें 8 से 10 लाख छात्र पढ़ रहे हैं. इन स्कूलों में महीने की फीस औसतन करीब तीन हजार के आसपास है. ऐसे में एक प्राइवेट स्कूल की कुल औसत फीस मासिक करीब 110 करोड़ के आसपास होती है, वहीं सभी प्राइवेट स्कूलों में ली जाने वाली सालाना फीस की बात करें तो यह करीब एक हज़ार करोड़ रुपए से ऊपर की है.
स्कूल एसोसिएशन का दावा, अभिभावकों को फीस में दी गई काफी राहत : अनएडेड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन की ओर से कहा गया कि हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हैं. एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल ने कहा कि 'अधिकांश विद्यालयों द्वारा कोरोना काल में आम सहमति से 20 प्रतिशत तक एवं कुछ अन्य परिस्थितियों में इससे अधिक की भी छूट अभिभावकों को थी. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी शासनादेश का पालन करते हुए सत्र 2020-21 तथा 2021-22 में भी उत्तर प्रदेश के किसी भी निजी विद्यालय में कोई भी फीस नहीं बढ़ाई. यदि कुछ विद्यालयों द्वारा ऐसा नहीं किया गया है तो वह सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करते हुए सत्र 2020-21 में ली गई फीस को आगे की किस्तों में समायोजित कर देंगे.'