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अखिलेश ने गलतियों से सबक न सीखा तो और बिगड़ेंगे सपा के हालात

विधानसभा चुनाव के बाद सपा के कई नेता अखिलेश यादव से उम्मीद लगाए थे कि वह हार की समीक्षा कर गलतियों तक पहुंचेंगे. अभी तक अखिलेश ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है. ऐसे में इन नेताओं में निराशा है. कहा जा रहा है कि अखिलेश ने सबक नहीं सीखा तो सपा के हालात और बिगड़ जाएंगे.

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Published : Apr 30, 2022, 7:37 PM IST

लखनऊ : लगता है विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से समाजवादी पार्टी ने कोई सबक नहीं सीखा है. यही कारण है कि पार्टी उन विषयों पर चर्चा तक करने के लिए तैयार नहीं है, जिन्हें पार्टी के बड़े नेता हार का कारण मानते हैं. कई सपा नेता उम्मीद लगाए थे कि हार के बाद पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव गंभीरता से समीक्षा करेंगे और उन निष्कर्षों तक पहुंचेंगे, जो पार्टी की पराजय के कारण बने. हालांकि नतीजे आए डेढ़ माह बीत जाने के बाद पार्टी के तमाम नेता निराश हैं. ऐसे कई नेताओं से हमारी बात हुई, जो खुलकर सामने तो आना नहीं चाहते, किंतु हार के पीछे उनके अपने तर्क और दलीलें हैं. पार्टी अध्यक्ष के स्तर पर सुनवाई न होने से वह निराश भी हैं.

सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे एक दिग्गज नेता कहते हैं कि पार्टी की पराजय का जिम्मा संगठन पर होना चाहिए, क्योंकि पार्टी संगठन के पास सही रणनीति ही नहीं थी. वह कहते हैं कि पूरा चुनाव प्रचार अभियान पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव पर ही केंद्रित रहा. पार्टी के बड़े नेता प्रचार अभियान से दूर रखे गए. प्रचार में महिला नेतृत्व के नाम पर पार्टी में शून्य दिखाई दिया. यहां तक कि अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव भी एक-दो सभाओं तक ही प्रचार अभियान में शामिल रहीं. हालांकि डिंपल यादव की महिलाओं में अच्छी छवि थी और उनसे ज्यादा से ज्यादा सभाओं में प्रचार कराना चाहिए था. वह कहते हैं कि अखिलेश यादव को कुछ ऐसे लोगों ने घेर रखा है, जिन्हें राजनीति का कोई अनुभव नहीं है. यह लोग सिर्फ हां में हां मिलाकर लाभ लेना चाहते हैं, पार्टी से इनका कोई सरोकार नहीं है.

यही लोग सही बातें अखिलेश तक पहुंचने नहीं देते. अखिलेश हार के कारणों में ईवीएम के घपले की बात कहते हैं, जो आज के दौर में हास्यास्पद समझी जाती है. हमें असल कारणों पर मीमांसा करनी चाहिए. यह कहने पर कि आपको यदि सपा का भविष्य दिखाई नहीं देता. तो आप पार्टी छोड़ क्यों नहीं देते? इस पर पूर्व मंत्री कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव ने उन्हें बहुत सम्मान दिया है. उनके रहते वह सपा नहीं छोड़ेंगे.

पार्टी के एक और नेता, जो पूर्वांचल के एक जिले से विधायक और पूर्व जिलाध्यक्ष रहे हैं, कहते हैं अखिलेश यादव के सामने सपा जेबी पार्टी हो गई है. पता नहीं पार्टी और कितना नीचे जाएगी. वह बताते हैं कि उन्होंने अखिलेश यादव से मिलकर संगठन भंगकर नए सिरे से मेहनती और जुझारू कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी देने का आग्रह किया था, किंतु उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर दिया. वह कहते हैं कि आप ही बताइए संगठन के पुनर्गठन का इससे अच्छा मौका और क्या होगा?

एसी में बैठकर राजनीति करने वाले नेता नेता पार्टी को आगे ले जाने में कैसे सफल होंगे. पूर्व विधायक कहते हैं कि शिवपाल सिंह यादव की उपेक्षा और उन्हें अपमानित करना भी अखिलेश की नादानी है. यह निर्णय पार्टी को और कमजोर करेगा. बड़ी संख्या में यादव मतदाता भी शिवपाल के साथ सहानुभूति रखते हैं. वह कहते हैं कि पार्टी बहुत बड़ी चीज होती है. कुछ नापसंद करने वाले लोगों को भी समायोजित किया जा सकता है. बस दिल बड़ा होना चाहिए. पूर्व विधायक का कहना है कि सत्ता और संगठन तभी सफल होता है, जब कार्यकर्ताओं को भी उचित हक और सम्मान मिलता है. सपा में अभी इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिससे निचले स्तर पर पार्टी कमजोर हो रही है.

इस मामले में राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे कहते हैं कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को अपने पिता मुलायम सिंह यादव से ही सीखने की जरूरत है. वह कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव हर जिले में एक 'मुलायम सिंह' रखते थे. यानी ऐसा व्यक्ति हो जिले में उनकी आंख, नाक और कान हो. अखिलेश यादव के अध्यक्ष बनने के बाद से यह तंत्र नहीं रहा. अब वन मैन पार्टी की स्थिति हो गई है. अखिलेश जो कहें वही सही. अखिलेश जिन नेताओं से घिरे हैं, उनके कारण जिले स्तर के नेताओं की सुनवाई नहीं होती. चुनाव हारने के बाद अखिलेश को सड़कों पर संघर्ष करना चाहिए, जबकि वह एसी में बैठक कर ट्विटर से राजनीति कर रहे हैं. वहीं जीतने के बाद भी भाजपा के सभी मंत्री अपने-अपने क्षेत्रों में बैठकें कर रहे हैं. दो साल बाद लोक सभा चुनाव है, किंतु मुख्य विपक्षी दल की कोई तैयारी अभी दिखाई नहीं दे रही है. साफ है कि अखिलेश ने गलतियों से कोई सबक नहीं लिया है.

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लखनऊ : लगता है विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से समाजवादी पार्टी ने कोई सबक नहीं सीखा है. यही कारण है कि पार्टी उन विषयों पर चर्चा तक करने के लिए तैयार नहीं है, जिन्हें पार्टी के बड़े नेता हार का कारण मानते हैं. कई सपा नेता उम्मीद लगाए थे कि हार के बाद पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव गंभीरता से समीक्षा करेंगे और उन निष्कर्षों तक पहुंचेंगे, जो पार्टी की पराजय के कारण बने. हालांकि नतीजे आए डेढ़ माह बीत जाने के बाद पार्टी के तमाम नेता निराश हैं. ऐसे कई नेताओं से हमारी बात हुई, जो खुलकर सामने तो आना नहीं चाहते, किंतु हार के पीछे उनके अपने तर्क और दलीलें हैं. पार्टी अध्यक्ष के स्तर पर सुनवाई न होने से वह निराश भी हैं.

सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे एक दिग्गज नेता कहते हैं कि पार्टी की पराजय का जिम्मा संगठन पर होना चाहिए, क्योंकि पार्टी संगठन के पास सही रणनीति ही नहीं थी. वह कहते हैं कि पूरा चुनाव प्रचार अभियान पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव पर ही केंद्रित रहा. पार्टी के बड़े नेता प्रचार अभियान से दूर रखे गए. प्रचार में महिला नेतृत्व के नाम पर पार्टी में शून्य दिखाई दिया. यहां तक कि अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव भी एक-दो सभाओं तक ही प्रचार अभियान में शामिल रहीं. हालांकि डिंपल यादव की महिलाओं में अच्छी छवि थी और उनसे ज्यादा से ज्यादा सभाओं में प्रचार कराना चाहिए था. वह कहते हैं कि अखिलेश यादव को कुछ ऐसे लोगों ने घेर रखा है, जिन्हें राजनीति का कोई अनुभव नहीं है. यह लोग सिर्फ हां में हां मिलाकर लाभ लेना चाहते हैं, पार्टी से इनका कोई सरोकार नहीं है.

यही लोग सही बातें अखिलेश तक पहुंचने नहीं देते. अखिलेश हार के कारणों में ईवीएम के घपले की बात कहते हैं, जो आज के दौर में हास्यास्पद समझी जाती है. हमें असल कारणों पर मीमांसा करनी चाहिए. यह कहने पर कि आपको यदि सपा का भविष्य दिखाई नहीं देता. तो आप पार्टी छोड़ क्यों नहीं देते? इस पर पूर्व मंत्री कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव ने उन्हें बहुत सम्मान दिया है. उनके रहते वह सपा नहीं छोड़ेंगे.

पार्टी के एक और नेता, जो पूर्वांचल के एक जिले से विधायक और पूर्व जिलाध्यक्ष रहे हैं, कहते हैं अखिलेश यादव के सामने सपा जेबी पार्टी हो गई है. पता नहीं पार्टी और कितना नीचे जाएगी. वह बताते हैं कि उन्होंने अखिलेश यादव से मिलकर संगठन भंगकर नए सिरे से मेहनती और जुझारू कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी देने का आग्रह किया था, किंतु उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर दिया. वह कहते हैं कि आप ही बताइए संगठन के पुनर्गठन का इससे अच्छा मौका और क्या होगा?

एसी में बैठकर राजनीति करने वाले नेता नेता पार्टी को आगे ले जाने में कैसे सफल होंगे. पूर्व विधायक कहते हैं कि शिवपाल सिंह यादव की उपेक्षा और उन्हें अपमानित करना भी अखिलेश की नादानी है. यह निर्णय पार्टी को और कमजोर करेगा. बड़ी संख्या में यादव मतदाता भी शिवपाल के साथ सहानुभूति रखते हैं. वह कहते हैं कि पार्टी बहुत बड़ी चीज होती है. कुछ नापसंद करने वाले लोगों को भी समायोजित किया जा सकता है. बस दिल बड़ा होना चाहिए. पूर्व विधायक का कहना है कि सत्ता और संगठन तभी सफल होता है, जब कार्यकर्ताओं को भी उचित हक और सम्मान मिलता है. सपा में अभी इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिससे निचले स्तर पर पार्टी कमजोर हो रही है.

इस मामले में राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे कहते हैं कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को अपने पिता मुलायम सिंह यादव से ही सीखने की जरूरत है. वह कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव हर जिले में एक 'मुलायम सिंह' रखते थे. यानी ऐसा व्यक्ति हो जिले में उनकी आंख, नाक और कान हो. अखिलेश यादव के अध्यक्ष बनने के बाद से यह तंत्र नहीं रहा. अब वन मैन पार्टी की स्थिति हो गई है. अखिलेश जो कहें वही सही. अखिलेश जिन नेताओं से घिरे हैं, उनके कारण जिले स्तर के नेताओं की सुनवाई नहीं होती. चुनाव हारने के बाद अखिलेश को सड़कों पर संघर्ष करना चाहिए, जबकि वह एसी में बैठक कर ट्विटर से राजनीति कर रहे हैं. वहीं जीतने के बाद भी भाजपा के सभी मंत्री अपने-अपने क्षेत्रों में बैठकें कर रहे हैं. दो साल बाद लोक सभा चुनाव है, किंतु मुख्य विपक्षी दल की कोई तैयारी अभी दिखाई नहीं दे रही है. साफ है कि अखिलेश ने गलतियों से कोई सबक नहीं लिया है.

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