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15 करोड़ के कर्ज से शुरू हुआ था परिवहन निगम, आज है 300 करोड़ के फायदे में

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम भले ही वर्तमान में 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के फायदे में चल रहा हो, लेकिन लोक लुभावन नीतियों और बसों का राजनीतिकरण होने के कारण भी परिवहन निगम को नुकसान उठाना पड़ता है. कभी किसी राजनीतिक दल की तरफ से किसी ऐसे रूट पर बसों के संचालन की मांग की जाती है, जहां पर लोड फैक्टर नहीं आता है, फिर भी बस सेवा शुरू करनी होती है, जिससे सीधे तौर पर निगम को नुकसान होता है.

300 करोड़ के फायदे में है यूपी रोडवेज
300 करोड़ के फायदे में है यूपी रोडवेज
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Published : Feb 8, 2021, 1:36 PM IST

Updated : Feb 9, 2021, 11:56 AM IST

लखनऊः आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है, वहीं अगर देश भर के ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश का ही परिवहन निगम सबसे ज्यादा बस बेड़े वाला निगम है. ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन की फ्लीट में 12000 से ज्यादा बसें शामिल हैं जो हर रोज 18 लाख से ज्यादा यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती हैं. वैसे तो ज्यादातर कॉर्पोरेशन घाटे का ही सौदा साबित होते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम ऐसा निगम है जो पिछले पांच सालों से फायदे के ट्रैक पर सरपट दौड़ रहा है. यह जानकारी उत्तर प्रदेश के परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक धीरज साहू ने दी.

300 करोड़ के फायदे में परिवहन, देखें रिपोर्ट



परिवहन निगम पर थी 15 करोड़ की देनदारी

प्रबंध निदेशक धीरज साहू ने बताया कि देश की आजादी से पहले 15 मई 1947 को राजकीय रोडवेज ने लखनऊ से बाराबंकी के बीच पहली रोडवेज बस सेवा संचालित की. इसके बाद लगातार रोडवेज बसों की फ्लीट में इजाफा होता गया. उन्होंने बताया कि साल 1972 में एक जून को राजकीय रोडवेज से उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की स्थापना हुई. रोडवेज के सीनियर अधिकारी बताते हैं कि जब राजकीय रोडवेज से ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन बना, उस समय कारपोरेशन की देनदारियां 15 करोड़ रुपये से ऊपर थीं. यानी लगातार रोडवेज के चालक परिचालकों ने मेहनत कर देनदारियां तो खत्म की ही, आज उन्हीं की मेहनत का नतीजा है कि जब सारे कारपोरेशन घाटे में चल रहे हैं. वहीं, वर्तमान में उत्तर प्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के फायदे में है. उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के घाटे की बात करें तो पावर कारपोरेशन 90,000 करोड़ रुपये के घाटे में चल रहा है.

लोकलुभावन नीतियों के कारण उठाना पड़ता है नुकसान

बता दें कि उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम भले ही वर्तमान में 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के फायदे में चल रहा हो, लेकिन लोक लुभावन नीतियों और बसों का राजनीतिकरण होने के कारण भी परिवहन निगम को नुकसान उठाना पड़ता है. कभी किसी राजनीतिक दल की तरफ से किसी ऐसे रूट पर बसों के संचालन की मांग की जाती है, जहां पर लोड फैक्टर नहीं आता है, फिर भी बस सेवा शुरू करनी होती है जिससे सीधे तौर पर निगम को नुकसान होता है. वहीं, वोट बैंक साधने के लिए राजनीतिक दल बसों का भरपूर इस्तेमाल करते हैं.

300 करोड़ के फायदे में परिवहन
करीब 14 लाख से ज्यादा यात्री प्रति महीने करते हैं सफर

पूर्व में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की मुख्यमंत्री मायावती ने 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' नाम से बस का संचालन कराया. इसके बाद जब समाजवादी पार्टी सरकार आई तो अपना हित साधने के लिए 'समाजवादी लोहिया' बसों का संचालन शुरू किया. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार में तमाम बसों को भगवा रंग में रंग कर 'संकल्प बस' नाम से बसों की शुरुआत कर दी गई. इन बसों को उन रूटों पर भी भेजा गया जहां से परिवहन निगम को नुकसान भी उठाना पड़ा, लेकिन राजनीतिक दलों को इसका फायदा जरूर मिला.

किराए में रियायत भी नुकसान का कारण

यात्रियों को बस से यात्रा करने को लुभाने के लिए परिवहन निगम समय-समय पर यात्रियों को किराए में छूट भी देता है. मासिक पास बनाकर यात्रियों को छूट दी जाती है तो सर्दी के मौसम में एसी बसों में सवारी न मिलने को लेकर किराए में भी रियायत दी जाती है. हालांकि इससे परिवहन निगम को बहुत ज्यादा फायदा तो नहीं होता है, लेकिन नुकसान जरूर उठाना पड़ता है. इन सबकी भरपाई रोडवेज की साधारण बसे कर देती हैं. यही वजह है कि छह साल पहले जो निगम घाटे का निगम था वह आज लगातार पांच साल से लाभ की स्थिति में है.

300 करोड़ के फायदे में परिवहन
यूपी रोडवेज के बेड़े में है सबसे ज्यादा बसें

वर्कशॉप में होता है बसों का रखरखाव

बसों के रख-रखाव के लिए परिवहन निगम ने सभी डिपो में वर्कशॉप स्थापित किए हैं. इन वर्कशॉप में बसों के रूट से लौटते ही इनकी मरम्मत का काम होता है. बसें जब अपनी उम्र पूरी कर लेती हैं तो इन्हें फ्लीट से हटाकर नई बसों को जोड़ा जाता है. इन बसों की नीलामी कर दी जाती है. हालांकि, अभी भी उत्तर प्रदेश में तमाम ऐसी बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं जो अपनी उम्र पूरी कर चुकी हैं और जो जर्जर स्थिति में भी हैं.

कोरोना के चलते नहीं शामिल हुई एक भी नई बस

प्रबंध निदेशक ने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण ऐसा पहली बार हो रहा है कि इस वित्तीय वर्ष में परिवहन निगम की फ्लीट में एक भी नई बस नहीं जुड़ पाई है, जबकि 1000 नई बसों को जुड़ना था. इनमें वातानुकूलित बसें भी शामिल थीं. इससे आने वाले गर्मी के मौसम में यात्रियों को एसी बसें कम मात्रा में उपलब्ध हो पाएंगी. बता दें कि रोडवेज के कुल 12000 के बस बेड़े में विभिन्न श्रेणियों की बसें में शामिल हैं, जिनमें रोडवेज की साधारण बस, एसी जनरथ बस, एसी वॉल्वो, सुपर लग्जरी स्कैनिया बस और सस्ती दर वाली एसी शताब्दी. यह बसें यात्रियों को सफर में राहत प्रदान करती हैं.

ईंधन की कीमतें तो बढ़ीं पर नहीं हुई किराए में वृद्धि

उन्होंने बताया कि डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है बावजूद इसके परिवहन निगम ने पिछले डेढ़ साल से अपनी बसों का किराया नहीं बढ़ाया है. इससे यात्रियों को काफी राहत मिल रही है. अगर परिवहन निगम बसों का किराया बढ़ा दें तो निश्चित तौर पर निगम के बजट में और भी सुधार हो जाएगा, लेकिन यात्रियों का बजट काफी बिगड़ जाएगा. परिवहन निगम के अधिकारी बताते हैं कि सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर ही बसों के किराए में बढ़ोतरी की जाती है. डीजल भले ही कितना महंगा हो गया हो, लेकिन अभी भी परिवहन निगम ने यात्रियों पर महंगे किराए का बोझ डालने के बारे में कोई विचार नहीं किया है, जिससे यात्रियों की यात्रा मंगलमय हो सके.

किराए से ही चलता है निगम का काम

प्रबंध निदेशक ने कहा कि यात्रियों के किराए से ही उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का काम चल पाता है. इनमें बसों के रख-रखाव से लेकर अधिकारियों, कर्मचारियों के वेतन और भत्ते के अलावा बिजली के खर्चे और अन्य खर्चे भी शामिल होते हैं. वर्तमान में रोडवेज की आय का काफी हिस्सा महंगे ईंधन पर ही खर्च हो रहा है. डीजल की बढ़ती कीमतें रोडवेज के बस संचालन को महंगा कर रही हैं. इसी किराए से ही परिवहन निगम प्रशासन यात्रियों को बस स्टेशन पर यात्री सुविधाएं भी प्रदान करता है. इनमें स्टेशन पर साफ-सफाई, हवा और पानी की खास तौर पर व्यवस्था की जाती है.

300 करोड़ के फायदे में परिवहन
यूपी की लाइफ लाइन उत्तर प्रदेश रोडवेज


प्रदेश में हैं 300 से ज्यादा बस स्टेशन

प्रबंध निदेशक धीरज साहू ने बताया कि उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के प्रदेश भर में कुल 20 परिक्षेत्र हैं और 300 से ज्यादा बस स्टेशन हैं. यहां से यात्रियों को आवागमन की सुविधा प्रदान की जाती है. राजधानी लखनऊ का कैसरबाग बस स्टेशन प्रदेश का पहला एसी बस स्टेशन है, वहीं चौथे बस स्टेशन के रूप में इसी साल अवध बस स्टेशन का निर्माण हुआ है, जो पहला ग्रीन बस स्टेशन है. इसके अलावा आलमबाग बस स्टेशन प्रदेश का पहला पीपीपी मॉडल पर आधारित बस स्टेशन है जो तमाम आधुनिक सुविधाओं से भी लैस है. इसके अलावा चारबाग बस स्टेशन भी परिवहन निगम के इन बस स्टेशनों में शामिल है.

बस बेड़े में 2627 अनुबंधित बसें

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की 12032 बसों के बेड़े में 9405 बसें परिवहन निगम की हैं. वहीं, 2627 बसें अनुबंधित हैं. इनमें 2434 साधारण अनुबंधित बस सेवाएं हैं. एसी बसों की संख्या 193 है. अनुबंधित बसों में 27 लग्जरी वॉल्वो, 48 सुपर लग्जरी स्कैनिया, 106 शताब्दी बस और 12 वातानुकूलित स्लीपर बस सेवाएं शामिल हैं. वॉल्वो और स्कैनिया को मिलाकर एसी बसों की संख्या कुल 75 है.


इन राज्यों के बीच चलती हैं यूपी की बसें

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें सिर्फ यूपी के ही जनपदों में यात्रियों को यात्रा नहीं कराती हैं, बल्कि अन्य राज्यों के बीच भी बस सेवाएं यात्रियों के लिए उपलब्ध हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं.

रोडवेज बसें हर दिन ढोती हैं 18 लाख से ज्यादा यात्री

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की 12000 बसें हर रोज 18 लाख से ज्यादा यात्रियों को उनकी मंजिल तह कराती हैं, वहीं साल भर में यह आंकड़ा 58 करोड़ से 60 करोड़ के बीच है. यानी सीधे तौर पर यात्रियों के लिए रोडवेज बसें जीवनरेखा के समान हैं.

यात्रियों को सुविधा दे रहीं रोडवेज बसें

उत्तर प्रदेश के परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक धीरज साहू कहते हैं कि रोडवेज की 12000 बसें यात्रियों को यात्रा में काफी सहूलियत प्रदान करती हैं. कोरोना के दौर में भी यात्रियों को रोडवेज बसों ने उनके घर तक पहुंचाया. वर्तमान में कोरोना के बाद जब जून माह से रोडवेज बसों का संचालन शुरू हुआ तो दिसंबर माह में जब बसों से यात्रियों के सफर का आंकड़ा निकाला गया तो ये 1400000 से ज्यादा है. जो हमारे लिए खुशी की बात है.

लखनऊः आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है, वहीं अगर देश भर के ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश का ही परिवहन निगम सबसे ज्यादा बस बेड़े वाला निगम है. ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन की फ्लीट में 12000 से ज्यादा बसें शामिल हैं जो हर रोज 18 लाख से ज्यादा यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती हैं. वैसे तो ज्यादातर कॉर्पोरेशन घाटे का ही सौदा साबित होते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम ऐसा निगम है जो पिछले पांच सालों से फायदे के ट्रैक पर सरपट दौड़ रहा है. यह जानकारी उत्तर प्रदेश के परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक धीरज साहू ने दी.

300 करोड़ के फायदे में परिवहन, देखें रिपोर्ट



परिवहन निगम पर थी 15 करोड़ की देनदारी

प्रबंध निदेशक धीरज साहू ने बताया कि देश की आजादी से पहले 15 मई 1947 को राजकीय रोडवेज ने लखनऊ से बाराबंकी के बीच पहली रोडवेज बस सेवा संचालित की. इसके बाद लगातार रोडवेज बसों की फ्लीट में इजाफा होता गया. उन्होंने बताया कि साल 1972 में एक जून को राजकीय रोडवेज से उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की स्थापना हुई. रोडवेज के सीनियर अधिकारी बताते हैं कि जब राजकीय रोडवेज से ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन बना, उस समय कारपोरेशन की देनदारियां 15 करोड़ रुपये से ऊपर थीं. यानी लगातार रोडवेज के चालक परिचालकों ने मेहनत कर देनदारियां तो खत्म की ही, आज उन्हीं की मेहनत का नतीजा है कि जब सारे कारपोरेशन घाटे में चल रहे हैं. वहीं, वर्तमान में उत्तर प्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के फायदे में है. उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के घाटे की बात करें तो पावर कारपोरेशन 90,000 करोड़ रुपये के घाटे में चल रहा है.

लोकलुभावन नीतियों के कारण उठाना पड़ता है नुकसान

बता दें कि उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम भले ही वर्तमान में 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के फायदे में चल रहा हो, लेकिन लोक लुभावन नीतियों और बसों का राजनीतिकरण होने के कारण भी परिवहन निगम को नुकसान उठाना पड़ता है. कभी किसी राजनीतिक दल की तरफ से किसी ऐसे रूट पर बसों के संचालन की मांग की जाती है, जहां पर लोड फैक्टर नहीं आता है, फिर भी बस सेवा शुरू करनी होती है जिससे सीधे तौर पर निगम को नुकसान होता है. वहीं, वोट बैंक साधने के लिए राजनीतिक दल बसों का भरपूर इस्तेमाल करते हैं.

300 करोड़ के फायदे में परिवहन
करीब 14 लाख से ज्यादा यात्री प्रति महीने करते हैं सफर

पूर्व में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की मुख्यमंत्री मायावती ने 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' नाम से बस का संचालन कराया. इसके बाद जब समाजवादी पार्टी सरकार आई तो अपना हित साधने के लिए 'समाजवादी लोहिया' बसों का संचालन शुरू किया. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार में तमाम बसों को भगवा रंग में रंग कर 'संकल्प बस' नाम से बसों की शुरुआत कर दी गई. इन बसों को उन रूटों पर भी भेजा गया जहां से परिवहन निगम को नुकसान भी उठाना पड़ा, लेकिन राजनीतिक दलों को इसका फायदा जरूर मिला.

किराए में रियायत भी नुकसान का कारण

यात्रियों को बस से यात्रा करने को लुभाने के लिए परिवहन निगम समय-समय पर यात्रियों को किराए में छूट भी देता है. मासिक पास बनाकर यात्रियों को छूट दी जाती है तो सर्दी के मौसम में एसी बसों में सवारी न मिलने को लेकर किराए में भी रियायत दी जाती है. हालांकि इससे परिवहन निगम को बहुत ज्यादा फायदा तो नहीं होता है, लेकिन नुकसान जरूर उठाना पड़ता है. इन सबकी भरपाई रोडवेज की साधारण बसे कर देती हैं. यही वजह है कि छह साल पहले जो निगम घाटे का निगम था वह आज लगातार पांच साल से लाभ की स्थिति में है.

300 करोड़ के फायदे में परिवहन
यूपी रोडवेज के बेड़े में है सबसे ज्यादा बसें

वर्कशॉप में होता है बसों का रखरखाव

बसों के रख-रखाव के लिए परिवहन निगम ने सभी डिपो में वर्कशॉप स्थापित किए हैं. इन वर्कशॉप में बसों के रूट से लौटते ही इनकी मरम्मत का काम होता है. बसें जब अपनी उम्र पूरी कर लेती हैं तो इन्हें फ्लीट से हटाकर नई बसों को जोड़ा जाता है. इन बसों की नीलामी कर दी जाती है. हालांकि, अभी भी उत्तर प्रदेश में तमाम ऐसी बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं जो अपनी उम्र पूरी कर चुकी हैं और जो जर्जर स्थिति में भी हैं.

कोरोना के चलते नहीं शामिल हुई एक भी नई बस

प्रबंध निदेशक ने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण ऐसा पहली बार हो रहा है कि इस वित्तीय वर्ष में परिवहन निगम की फ्लीट में एक भी नई बस नहीं जुड़ पाई है, जबकि 1000 नई बसों को जुड़ना था. इनमें वातानुकूलित बसें भी शामिल थीं. इससे आने वाले गर्मी के मौसम में यात्रियों को एसी बसें कम मात्रा में उपलब्ध हो पाएंगी. बता दें कि रोडवेज के कुल 12000 के बस बेड़े में विभिन्न श्रेणियों की बसें में शामिल हैं, जिनमें रोडवेज की साधारण बस, एसी जनरथ बस, एसी वॉल्वो, सुपर लग्जरी स्कैनिया बस और सस्ती दर वाली एसी शताब्दी. यह बसें यात्रियों को सफर में राहत प्रदान करती हैं.

ईंधन की कीमतें तो बढ़ीं पर नहीं हुई किराए में वृद्धि

उन्होंने बताया कि डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है बावजूद इसके परिवहन निगम ने पिछले डेढ़ साल से अपनी बसों का किराया नहीं बढ़ाया है. इससे यात्रियों को काफी राहत मिल रही है. अगर परिवहन निगम बसों का किराया बढ़ा दें तो निश्चित तौर पर निगम के बजट में और भी सुधार हो जाएगा, लेकिन यात्रियों का बजट काफी बिगड़ जाएगा. परिवहन निगम के अधिकारी बताते हैं कि सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर ही बसों के किराए में बढ़ोतरी की जाती है. डीजल भले ही कितना महंगा हो गया हो, लेकिन अभी भी परिवहन निगम ने यात्रियों पर महंगे किराए का बोझ डालने के बारे में कोई विचार नहीं किया है, जिससे यात्रियों की यात्रा मंगलमय हो सके.

किराए से ही चलता है निगम का काम

प्रबंध निदेशक ने कहा कि यात्रियों के किराए से ही उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का काम चल पाता है. इनमें बसों के रख-रखाव से लेकर अधिकारियों, कर्मचारियों के वेतन और भत्ते के अलावा बिजली के खर्चे और अन्य खर्चे भी शामिल होते हैं. वर्तमान में रोडवेज की आय का काफी हिस्सा महंगे ईंधन पर ही खर्च हो रहा है. डीजल की बढ़ती कीमतें रोडवेज के बस संचालन को महंगा कर रही हैं. इसी किराए से ही परिवहन निगम प्रशासन यात्रियों को बस स्टेशन पर यात्री सुविधाएं भी प्रदान करता है. इनमें स्टेशन पर साफ-सफाई, हवा और पानी की खास तौर पर व्यवस्था की जाती है.

300 करोड़ के फायदे में परिवहन
यूपी की लाइफ लाइन उत्तर प्रदेश रोडवेज


प्रदेश में हैं 300 से ज्यादा बस स्टेशन

प्रबंध निदेशक धीरज साहू ने बताया कि उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के प्रदेश भर में कुल 20 परिक्षेत्र हैं और 300 से ज्यादा बस स्टेशन हैं. यहां से यात्रियों को आवागमन की सुविधा प्रदान की जाती है. राजधानी लखनऊ का कैसरबाग बस स्टेशन प्रदेश का पहला एसी बस स्टेशन है, वहीं चौथे बस स्टेशन के रूप में इसी साल अवध बस स्टेशन का निर्माण हुआ है, जो पहला ग्रीन बस स्टेशन है. इसके अलावा आलमबाग बस स्टेशन प्रदेश का पहला पीपीपी मॉडल पर आधारित बस स्टेशन है जो तमाम आधुनिक सुविधाओं से भी लैस है. इसके अलावा चारबाग बस स्टेशन भी परिवहन निगम के इन बस स्टेशनों में शामिल है.

बस बेड़े में 2627 अनुबंधित बसें

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की 12032 बसों के बेड़े में 9405 बसें परिवहन निगम की हैं. वहीं, 2627 बसें अनुबंधित हैं. इनमें 2434 साधारण अनुबंधित बस सेवाएं हैं. एसी बसों की संख्या 193 है. अनुबंधित बसों में 27 लग्जरी वॉल्वो, 48 सुपर लग्जरी स्कैनिया, 106 शताब्दी बस और 12 वातानुकूलित स्लीपर बस सेवाएं शामिल हैं. वॉल्वो और स्कैनिया को मिलाकर एसी बसों की संख्या कुल 75 है.


इन राज्यों के बीच चलती हैं यूपी की बसें

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें सिर्फ यूपी के ही जनपदों में यात्रियों को यात्रा नहीं कराती हैं, बल्कि अन्य राज्यों के बीच भी बस सेवाएं यात्रियों के लिए उपलब्ध हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं.

रोडवेज बसें हर दिन ढोती हैं 18 लाख से ज्यादा यात्री

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की 12000 बसें हर रोज 18 लाख से ज्यादा यात्रियों को उनकी मंजिल तह कराती हैं, वहीं साल भर में यह आंकड़ा 58 करोड़ से 60 करोड़ के बीच है. यानी सीधे तौर पर यात्रियों के लिए रोडवेज बसें जीवनरेखा के समान हैं.

यात्रियों को सुविधा दे रहीं रोडवेज बसें

उत्तर प्रदेश के परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक धीरज साहू कहते हैं कि रोडवेज की 12000 बसें यात्रियों को यात्रा में काफी सहूलियत प्रदान करती हैं. कोरोना के दौर में भी यात्रियों को रोडवेज बसों ने उनके घर तक पहुंचाया. वर्तमान में कोरोना के बाद जब जून माह से रोडवेज बसों का संचालन शुरू हुआ तो दिसंबर माह में जब बसों से यात्रियों के सफर का आंकड़ा निकाला गया तो ये 1400000 से ज्यादा है. जो हमारे लिए खुशी की बात है.

Last Updated : Feb 9, 2021, 11:56 AM IST
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