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एक पार्क ऐसा भी जहां मर्दों की एंट्री पर थी रोक, बजते थे आजादी के बिगुल

महात्मा गांधी जी का सपना था कि एक ऐसी जगह हो, जहां महिलाएं आजाद फिजा में सांस लें और अपनी खूबियों को तराशें. इसके लिए लखनऊ में जनाना पार्क का निर्माण हुआ. यहां पुरुषों के आने पर रोक थी.

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जनाना पार्क
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Published : Jun 30, 2022, 11:04 PM IST

लखनऊ: यूं तो आपने कई पार्क देखें होंगे, लेकिन सिर्फ आधी आबादी के लिए कोई पार्क हो, ऐसा अमूमन तौर पर देखने को नहीं मिलता है. लेकिन राजधानी लखनऊ में एक ऐसा पार्क है, जहां सिर्फ महिलाएं ही आ सकती थी. जी हां महात्मा गांधी का सपना था कि पर्दानशीं औरतें घर की चारदीवारी से निकलकर आजाद फिजा में सांस लें और अपनी खूबियों को तराशें. इसी के चलते लखनऊ के अमीनाबाद में महिलाओं के लिए एक पार्क बनाया गया और नाम रखा गया जनाना पार्क. इस पार्क में मर्दों के आना मना था. इसी पार्क में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 25 जुलाई 1934 को महिलाओं की विशाल सभा को संबोधित कर महिलाओं को जंगे आजादी का अग्रदूत कहा था.

ईटीवी भारत से खास बताचीत में इतिहासकार रवि भट्ट ने बताया कि गांधी जी ने लखनऊ में रईस सर गंगा प्रसाद वर्मा से आग्रह किया कि एक ऐसी जगह होनी चाहिए जहां महिलाएं खुली हवा में सांस ले सके. बात कर सके वो भी बिना किसी पर्दे के. इस पर गंगा प्रसाद ने 1914 में अमीनाबाद में 15,000 हजार रुपये में करीब तीन एकड़ जमीन खरीदी और जिसे बाद में बज्म-ए-ख्वातीन को दान स्वरूप दे दी, जिससे वहां महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए कार्य किए जा सके और आजादी आंदोलन से संबंधित विचार विमर्श करने महिलाएं आ सके.

जनाना पार्क का इतिहास

यह भी पढ़ें- दहेज प्रथा, नोटबंदी, रोमांस व कॉमेडी का जोरदार तड़का, लखनऊ पहुंचे रोमियो के फंडे लाजबाब के कलाकार


भट्ट का कहना है कि बज्म- ए-ख्वातीन की ओर से यहां पर जनाना पार्क बनाया गया. वहां पर आठ साल से ऊपर के किसी भी पुरुष को अंदर आने की मनाही थी. इस पार्क की खास बात ये थी कि यहां पर सभी कर्मचारी महिलाएं ही थीं. इस पार्क में होने वाले तमाम कार्यक्रमों में गांधी जी से लेकर प्रदेश की तत्कालीन गवर्नर सरोजनी नायडू, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, इंदिरा गांधी जैसी हस्तियों ने हिस्सा लिया.

इतिहासकार रवि भट्ट ने बताया कि सिर्फ आजादी के आंदोलन ही नहीं बल्कि भारत-चीन युद्ध में भी इस पार्क से देश के सैनिकों का मनोबल बढ़ाया गया. साल 1962 में महिलाओं ने इस पार्क से लेकर मोतीमहल लॉन तक मार्च किया. उस वक्त पं. जवाहर लाल नेहरू लखनऊ में ही थे. महिलाओं ने उनको ज्ञापन सौंपकर युद्ध में जाने की इजाजत भी मांगी. उस वक्त महिलाओं को बाहर नमाज पढ़ने के लिए कम ही जगह थी, इसके चलते इसी पार्क में महिलाओं ने पहली बार नमाज अदा की थी. यहां महिलाओं के लिए बाजार भी लगने लगे थे.

वहीं, रवि भट्ट ने आगे बताया कि बताया कि 1945 में इस पार्क को लखनऊ महापालिका को दे दिया गया था. उसी के बाद इस पार्क की अनदेखी होने लगी थी. अधिकारियों की उदासीनता के चलते अब इस पार्क की हालत खराब हो चुकी है. 3 एकड़ का जनाना पार्क अब सिमट कर 1 एकड़ का बचा है. इसी को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपई से कुछ महिलाओं ने मिलकर इस पार्क को बचाने के लिए अनुरोध किया था, जिस पर इसे राष्ट्रीय पार्कों की सूची में रखने का प्रस्ताव बना था. इतना ही नहीं अमीनाबाद स्थित जनाना पार्क में हर महीने की 15 तारीख को दिन में दो बजे से शाम पांच बजे तक महिलाएं आती है. इस दौरान योगा कैंप के अलावा महिलाओं की काउंसलिंग होती है और शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, कानूनी अधिकार जैसा विषयों पर उनको जागरूक किया जाता है.

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लखनऊ: यूं तो आपने कई पार्क देखें होंगे, लेकिन सिर्फ आधी आबादी के लिए कोई पार्क हो, ऐसा अमूमन तौर पर देखने को नहीं मिलता है. लेकिन राजधानी लखनऊ में एक ऐसा पार्क है, जहां सिर्फ महिलाएं ही आ सकती थी. जी हां महात्मा गांधी का सपना था कि पर्दानशीं औरतें घर की चारदीवारी से निकलकर आजाद फिजा में सांस लें और अपनी खूबियों को तराशें. इसी के चलते लखनऊ के अमीनाबाद में महिलाओं के लिए एक पार्क बनाया गया और नाम रखा गया जनाना पार्क. इस पार्क में मर्दों के आना मना था. इसी पार्क में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 25 जुलाई 1934 को महिलाओं की विशाल सभा को संबोधित कर महिलाओं को जंगे आजादी का अग्रदूत कहा था.

ईटीवी भारत से खास बताचीत में इतिहासकार रवि भट्ट ने बताया कि गांधी जी ने लखनऊ में रईस सर गंगा प्रसाद वर्मा से आग्रह किया कि एक ऐसी जगह होनी चाहिए जहां महिलाएं खुली हवा में सांस ले सके. बात कर सके वो भी बिना किसी पर्दे के. इस पर गंगा प्रसाद ने 1914 में अमीनाबाद में 15,000 हजार रुपये में करीब तीन एकड़ जमीन खरीदी और जिसे बाद में बज्म-ए-ख्वातीन को दान स्वरूप दे दी, जिससे वहां महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए कार्य किए जा सके और आजादी आंदोलन से संबंधित विचार विमर्श करने महिलाएं आ सके.

जनाना पार्क का इतिहास

यह भी पढ़ें- दहेज प्रथा, नोटबंदी, रोमांस व कॉमेडी का जोरदार तड़का, लखनऊ पहुंचे रोमियो के फंडे लाजबाब के कलाकार


भट्ट का कहना है कि बज्म- ए-ख्वातीन की ओर से यहां पर जनाना पार्क बनाया गया. वहां पर आठ साल से ऊपर के किसी भी पुरुष को अंदर आने की मनाही थी. इस पार्क की खास बात ये थी कि यहां पर सभी कर्मचारी महिलाएं ही थीं. इस पार्क में होने वाले तमाम कार्यक्रमों में गांधी जी से लेकर प्रदेश की तत्कालीन गवर्नर सरोजनी नायडू, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, इंदिरा गांधी जैसी हस्तियों ने हिस्सा लिया.

इतिहासकार रवि भट्ट ने बताया कि सिर्फ आजादी के आंदोलन ही नहीं बल्कि भारत-चीन युद्ध में भी इस पार्क से देश के सैनिकों का मनोबल बढ़ाया गया. साल 1962 में महिलाओं ने इस पार्क से लेकर मोतीमहल लॉन तक मार्च किया. उस वक्त पं. जवाहर लाल नेहरू लखनऊ में ही थे. महिलाओं ने उनको ज्ञापन सौंपकर युद्ध में जाने की इजाजत भी मांगी. उस वक्त महिलाओं को बाहर नमाज पढ़ने के लिए कम ही जगह थी, इसके चलते इसी पार्क में महिलाओं ने पहली बार नमाज अदा की थी. यहां महिलाओं के लिए बाजार भी लगने लगे थे.

वहीं, रवि भट्ट ने आगे बताया कि बताया कि 1945 में इस पार्क को लखनऊ महापालिका को दे दिया गया था. उसी के बाद इस पार्क की अनदेखी होने लगी थी. अधिकारियों की उदासीनता के चलते अब इस पार्क की हालत खराब हो चुकी है. 3 एकड़ का जनाना पार्क अब सिमट कर 1 एकड़ का बचा है. इसी को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपई से कुछ महिलाओं ने मिलकर इस पार्क को बचाने के लिए अनुरोध किया था, जिस पर इसे राष्ट्रीय पार्कों की सूची में रखने का प्रस्ताव बना था. इतना ही नहीं अमीनाबाद स्थित जनाना पार्क में हर महीने की 15 तारीख को दिन में दो बजे से शाम पांच बजे तक महिलाएं आती है. इस दौरान योगा कैंप के अलावा महिलाओं की काउंसलिंग होती है और शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, कानूनी अधिकार जैसा विषयों पर उनको जागरूक किया जाता है.

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