लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में पाई गई संरचना की जांच सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित कर कराने की मांग वाली जनहित याचिका पर क्षेत्राधिकार के अभाव में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया. शुक्रवार को मामले की सुनवाई हुई, हालांकि समयाभाव के कारण न्यायालय अपना विस्तृत आदेश बाद में पारित करेगी.
यह आदेश न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की अवकाशकालीन पीठ ने सुधीर सिंह समेत 6 याचियों की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया. याचिका की सुनवाई का राज्य सरकार के मुख्य स्थाई अधिवक्ता (प्रभारी) अभिनव नारायण त्रिवेदी ने विरोध करते हुए कहा कि याचिका पोषणीय ही नहीं है क्योंकि मामला वाराणसी का है और वहां का क्षेत्राधिकार इलाहाबाद हाईकोर्ट को प्राप्त है. उन्होंने यह भी दलील दी कि इस मामले को पहले ही सुप्रीम कोर्ट संज्ञान ले चुका है. वहीं, केंद्र सरकार व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिवक्ता एसएम रायकवार ने भी क्षेत्राधिकार के आधार पर याचिका का विरोध किया है.
याचियों के अधिवक्ता अशोक पांडेय ने अपनी दलील में कहा है कि उक्त संरचना को हिन्दू शिवलिंग बता रहे हैं जबकि मुस्लिम फव्वारा करार दे रहे हैं. ऐसे में इस दुविधा के कारण दोनों समुदायों के बीच विवाद की स्थिति बन गई है और इससे न केवल द्वेष बल्कि बाकी दुनिया में गलत संदेश भी जा रहा है. याचिका में कहा गया है कि ज्ञानवापी परिसर में उक्त संरचना पाए जाने के बाद से ही दोनों समुदायों के बीच वैमनस्य की स्थिति पैदा हो गई है. याचिका में आगे कहा गया कि सरकार व एएसआई ने अपना दायित्व नहीं निभाया है अन्यथा उक्त संरचना की जांच कराकर विवाद को जड़ से समाप्त किया जा सकता था.
काफी देर तक चली सुनवाई के पश्चात न्यायालय ने कहा कि वह याचिका को खारिज कर रही है और विस्तृत आदेश बाद में जारी करेगी. हालांकि याचियों के अधिवक्ता के बार-बार अनुरोध पर न्यायालय ने अपना पूरा ही आदेश बाद में जारी करने की बात कही.
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