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हाथरस गैंगरेप मामला: सीबीआई से हाईकोर्ट ने किया सवाल, कितने समय में पूरी होगी जांच

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हाथरस मामले में 2 नवम्बर को हुई सुनवाई पर आदेश सुना दिया है. कोर्ट ने 2 नवम्बर को हुई सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित किया था. कोर्ट ने आदेश पारित करते हुए सीबीआई से पूछा है कि हाथरस घटना की जांच कितने समय में पूरी होगी.

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच
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Published : Nov 5, 2020, 10:59 PM IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हाथरस मामले में 2 नवम्बर को हुई सुनवाई पर आदेश गुरूवार को पारित किया है. उक्त आदेश में न्यायालय ने सीबीआई से विवेचना की स्टेटस रिपोर्ट तलब करने के साथ-साथ अगली सुनवाई पर यह भी बताने को कहा है कि मामले की विवेचना लगभग कितने दिनों में पूरी हो जाएगी. यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने हाथरस मामले में स्वतः संज्ञान द्वारा 'गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार' टाइटिल से दर्ज जनहित याचिका पर आदेश पारित किया.

अभियुक्तों की ओर से मामले में पक्षकार बनाए जाने संबंधी प्रार्थना पत्र को किया निस्तारित

वहीं न्यायालय ने अभियुक्तों की ओर से मामले में पक्षकार बनाए जाने संबंधी प्रार्थना पत्र को इस आदेश के साथ निस्तारित कर दिया है कि वर्तमान मामले में कोर्ट दो बिंदुओं पर सुनवाई कर रही है, पहला सर्वोच्च न्यायालय के 27 अक्टूबर के आदेश के अनुपालन में विवेचना की मॉनीटरिंग के लिए और दूसरा मृतका के अंतिम संस्कार के मुद्दे पर. न्यायालय ने कहा है कि इन दोनों ही बिंदुओं पर अभियुक्तों को सुने जाने का अधिकार है, लिहाजा वे इस स्तर पर आवश्यक पक्षकार नहीं हैं. हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान मामले की सुनवाई के दौरान यदि किसी प्रकार से उनके अधिकार प्रभावित होते हैं या प्रभावित होने की सम्भावना होती है तो उन्हें सुनवाई का अधिकार प्राप्त होगा.

मीडिया में खबरें दिखाने से संबंधित प्रार्थना पत्र भी किया निस्तारित

अभियुक्तों की ओर से एक अन्य प्रार्थना पत्र मीडिया को इस आशय की खबरें न दिखाने के संबंध में भी दाखिल की गई थी, जिससे मामले के ट्रायल पर फर्क पड़े. इस प्रार्थना पत्र को भी न्यायालय ने यह कहते हुए निस्तारित कर दिया कि हमने 12 अक्टूबर के अपने आदेश में ही इस संबंध में मीडिया हाउसेज और राजनीतिक दलों से अनुरोध किया है कि वे ऐसा कोई विचार न व्यक्त करें जो सामाजिक सद्भाव के विरुद्ध हो और जिससे पीड़िता के परिवार अथवा अभियुक्तों के अधिकारों पर विपरीत प्रभाव पड़े.

न्यायालय ने कहा कि इसके अतिरिक्त किसी निर्देश की आवश्यकता नहीं है. यदि पीड़िता के परिवार अथवा अभियुक्तों के अधिकारों को या विवेचना को प्रभावित करने वाली कोई बात आती है तो हम उस पर अवश्य संज्ञान लेंगे.

जिलाधिकारी हाथरस प्रवीण कुमार के संबंध में भी राज्य सरकार से सवाल

इसके साथ ही न्यायालय ने जिलाधिकारी हाथरस प्रवीण कुमार के संबंध में भी राज्य सरकार से पूछा कि विवेचना के दौरान क्या उन्हें हाथरस में बनाए रखना निष्पक्ष और उचित है. न्यायालय ने कहा कि हमारे समक्ष भी जो प्रक्रिया चल रही है, अवैध अंतिम संस्कार इत्यादि से संबंधित उससे भी वह जुड़े हुए हैं. न्यायालय ने आगे पूछा है कि क्या यह उचित नहीं होगा कि सिर्फ निष्पक्षता और पारदर्शिता के लिए, इन प्रक्रियाओं के दौरान उन्हें कहीं और शिफ्ट कर दिया जाए. इस पर राज्य सरकार के अधिवक्ता ने अगली सुनवाई पर सरकार का रुख स्पष्ट करने की बात कही है. गौरतलब है कि मामले की अगली सुनवाई 25 नवम्बर को होनी है.

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हाथरस मामले में 2 नवम्बर को हुई सुनवाई पर आदेश गुरूवार को पारित किया है. उक्त आदेश में न्यायालय ने सीबीआई से विवेचना की स्टेटस रिपोर्ट तलब करने के साथ-साथ अगली सुनवाई पर यह भी बताने को कहा है कि मामले की विवेचना लगभग कितने दिनों में पूरी हो जाएगी. यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने हाथरस मामले में स्वतः संज्ञान द्वारा 'गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार' टाइटिल से दर्ज जनहित याचिका पर आदेश पारित किया.

अभियुक्तों की ओर से मामले में पक्षकार बनाए जाने संबंधी प्रार्थना पत्र को किया निस्तारित

वहीं न्यायालय ने अभियुक्तों की ओर से मामले में पक्षकार बनाए जाने संबंधी प्रार्थना पत्र को इस आदेश के साथ निस्तारित कर दिया है कि वर्तमान मामले में कोर्ट दो बिंदुओं पर सुनवाई कर रही है, पहला सर्वोच्च न्यायालय के 27 अक्टूबर के आदेश के अनुपालन में विवेचना की मॉनीटरिंग के लिए और दूसरा मृतका के अंतिम संस्कार के मुद्दे पर. न्यायालय ने कहा है कि इन दोनों ही बिंदुओं पर अभियुक्तों को सुने जाने का अधिकार है, लिहाजा वे इस स्तर पर आवश्यक पक्षकार नहीं हैं. हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान मामले की सुनवाई के दौरान यदि किसी प्रकार से उनके अधिकार प्रभावित होते हैं या प्रभावित होने की सम्भावना होती है तो उन्हें सुनवाई का अधिकार प्राप्त होगा.

मीडिया में खबरें दिखाने से संबंधित प्रार्थना पत्र भी किया निस्तारित

अभियुक्तों की ओर से एक अन्य प्रार्थना पत्र मीडिया को इस आशय की खबरें न दिखाने के संबंध में भी दाखिल की गई थी, जिससे मामले के ट्रायल पर फर्क पड़े. इस प्रार्थना पत्र को भी न्यायालय ने यह कहते हुए निस्तारित कर दिया कि हमने 12 अक्टूबर के अपने आदेश में ही इस संबंध में मीडिया हाउसेज और राजनीतिक दलों से अनुरोध किया है कि वे ऐसा कोई विचार न व्यक्त करें जो सामाजिक सद्भाव के विरुद्ध हो और जिससे पीड़िता के परिवार अथवा अभियुक्तों के अधिकारों पर विपरीत प्रभाव पड़े.

न्यायालय ने कहा कि इसके अतिरिक्त किसी निर्देश की आवश्यकता नहीं है. यदि पीड़िता के परिवार अथवा अभियुक्तों के अधिकारों को या विवेचना को प्रभावित करने वाली कोई बात आती है तो हम उस पर अवश्य संज्ञान लेंगे.

जिलाधिकारी हाथरस प्रवीण कुमार के संबंध में भी राज्य सरकार से सवाल

इसके साथ ही न्यायालय ने जिलाधिकारी हाथरस प्रवीण कुमार के संबंध में भी राज्य सरकार से पूछा कि विवेचना के दौरान क्या उन्हें हाथरस में बनाए रखना निष्पक्ष और उचित है. न्यायालय ने कहा कि हमारे समक्ष भी जो प्रक्रिया चल रही है, अवैध अंतिम संस्कार इत्यादि से संबंधित उससे भी वह जुड़े हुए हैं. न्यायालय ने आगे पूछा है कि क्या यह उचित नहीं होगा कि सिर्फ निष्पक्षता और पारदर्शिता के लिए, इन प्रक्रियाओं के दौरान उन्हें कहीं और शिफ्ट कर दिया जाए. इस पर राज्य सरकार के अधिवक्ता ने अगली सुनवाई पर सरकार का रुख स्पष्ट करने की बात कही है. गौरतलब है कि मामले की अगली सुनवाई 25 नवम्बर को होनी है.

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