लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बसपा सांसद अतुल राय की जमानत याचिका को खारिज करते हुए राजनीति के अपराधीकरण पर भी टिप्पणी की. न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2019 के पब्लिक इंट्रेस्ट फाउंडेशन मामले में चुनाव आयोग को राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए यथोचित उपाय करने का निर्देश दिया गया था लेकिन दुर्भाग्य से संसद की सामूहिक इच्छा शक्ति ने इस ओर कोई कदम नहीं उठाया ताकि अपराधियों, ठगों और कानून तोड़ने वालों से भारतीय लोकतंत्र को सुरक्षित किया जा सके. न्यायालय ने नसीहत देते हुए कहा कि यह संसद की जिम्मेदारी है कि वह लोकतंत्र को बचाने के लिए अपराधियों को राजनीति, संसद व विधान मंडल में जाने से रोके.
न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि वर्ष 2019 के आम चुनाव में चुने गए लोक सभा सदस्यों में 43 प्रतिशत सदस्यों पर आपराधिक मुकदमे हैं. न्यायालय ने 244वें विधि आयोग रिपोर्ट के हवाले से 2004, 2009 व 2014 का आंकड़ा भी उद्धत किया. न्यायालय ने यह भी कहा कि आजादी के बाद से ही जाति, धर्म, समुदाय व लिंग आदि के मुद्दे बढते जा रहे हैं जिनमें पैसे और ताकत के जुड़ाव के कारण अपराधियों की राजनीति में घुसपैठ आसान हो गई है. न्यायालय ने कहा कि बिना किसी अपवाद के प्रत्येक राजनीतिक दल इन अपराधियों को चुनाव जीतने के लिए इस्तेमाल करता है, यह अपवित्र गठजोड़ और राजनीतिक संस्थान की बेफिक्री का परिणाम है कि वर्तमान अभियुक्त जैसे गैंगस्टर और दुर्दांत अपराधी संसद पहुंचकर विधि निर्माता हो जाते हैं.
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