लखनऊ: कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक (Kanpur University Vice Chancellor Prof. Vinay Pathak) की याचिका पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना आदेश सुरक्षित कर लिया है. प्रो. पाठक ने अपने खिलाफ इंदिरा नगर थाने में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी हुई है.
बुधवार को मामले में लगभग दो घंटे लंबी चली सुनवाई के पश्चात न्यायमूर्ति राजेश सिंह व न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की खंडपीठ ने अपना आदेश सुरक्षित करते हुए, कहा कि पीठ गुरूवार को दो, सवा दो बजे अपना आदेश सुनाएगी. बहस के दौरान याची की ओर से दलील दी गई कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों को यदि मान भी लिया जाए तो भी याची के विरुद्ध आईपीसी की धारा 386 का मामला नहीं बनता. यह भी दलील दी गई कि मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 भी लगाई गई है जबकि इस अधिनियम की धारा 17 के तहत एफआईआर दर्ज करने से पूर्व नियुक्ति प्राधिकारी से संस्तुति लेना अनिवार्य है जो इस मामले में नहीं ली गई है.
याचिका का विरोध करते हुए, मामले के वादी व राज्य सरकार के अधिवक्ताओं ने दलील दी है कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों के अनुसार मामले में संज्ञेय अपराध बन रहा है, लिहाजा एफआईआर नहीं खारिज की जा सकती. कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों के तहत जिन मामलों में एफआईआर नहीं खारिज हो सकती, उनमें गिरफ़्तारी पर रोक का अंतरिम आदेश भी नहीं दिया जा सकता.
उल्लेखनीय है कि प्रो. पाठक की ओर से दाखिल उक्त याचिका में इंदिरा नगर थाने में उनके व एक अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद करने की मांग की गई है, साथ ही गिरफ़्तारी पर तत्काल रोक लगाने की भी याचना की गई है. उल्लेखनीय है कि प्रो. पाठक व प्राइवेट कम्पनी के मालिक अजय मिश्रा पर 29 अक्टूबर को इंदिरा नगर थाने में डेविड मारियो डेनिस ने एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि प्रो. पाठक के आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति रहने के दौरान उसकी कम्पनी द्वारा किए गए कार्यों के भुगतान के लिए अभियुक्तों ने 15 प्रतिशत कमीशन वसूला. उससे कुल एक करोड़ 41 लाख रुपये की वसूली अभियुक्तों द्वारा जबरन की जा चुकी है. एफआईआर में यह भी कहा गया है कि वादी को उक्त अभियुक्तों से अपनी जान को खतरा है.
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