लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हत्या के मामले की 36 साल पुरानी अपील पर फैसला सुनाया है. न्यायालय ने अभियुक्तों की अपील को खारिज कर दिया. अभियुक्तों को सत्र न्यायालय ने भी दोषसिद्ध करार दिया था. हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा है. हत्या का यह मामला लगभग 38 साल पुराना 19 दिसम्बर 1982 का था.
हत्या का मामला
गोंडा के इटियाथोक थाने में राम दुलारे ने एफआईआर लिखाते हुए आरोप लगाया था कि वह अपने परिवार के साथ घटना की रात को घर में सो रहा था. तभी अभियुक्तगण जगदम्बा, अमेरिका, चिंता और बच्चाराज फरसा, गंड़ासा और कुल्हाड़ी से लैस होकर आए और उसके घर पर धावा बोल दिया. अभियुक्तों ने वादी के बड़े बेटे शांति प्रसाद पर हथियारों से हमला कर दिया. इतने में परिवार के सभी लोग जाग गए और शांति प्रसाद को बचाने का प्रयास किया, लेकिन अभियुक्तों ने उसकी हत्या कर दी. इसके बाद उन्होंने उसके दूसरे बेटे नहे प्रसाद पर भी हमला बोलकर उसे भी मार दिया. इस दौरान बीच-बचाव में वादी व उसकी पत्नी भी घायल हो गए. सत्र न्यायालय ने जनवरी 1985 में चारों अभियुक्तों को दोषसिद्ध करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. इसके बाद वर्तमान अपील दाखिल की गई थी.
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अपील के विचाराधीन अभियुक्त की हो गई थी मौत
अपील के विचाराधीन रहने के दौरान अभियुक्त जगदम्बा की मृत्यु हो गई. वहीं, बाकी के अपीलार्थियों की ओर से प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के बयानों में विरोधाभाष की बात उठाते हुए बहस की गई. हालांकि न्यायालय ने अपीलार्थियों की सभी दलीलों को खारिज कर दिया. न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि वादी व उसकी पत्नी इस मामले के चोटहिल और प्रत्यक्षदर्शी गवाह हैं. चोटहिल गवाहों के बयान का विशेष महत्व होता है. न्यायालय ने कहा कि एक घायल व्यक्ति मात्र अपने ऊपर हमला करने वाले को बचाने के लिए किसी तीसरे व्यक्ति को नहीं फंसाएगा. न्यायालय ने कहा कि बयानों में सामान्य विरोधाभाष को नजरअन्दाज किया जा सकता है, क्योंकि गवाहों द्वारा वर्णित मूल घटना के सम्बंध में कोई विरोधाभाष नहीं है.