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बालगृह सरकार और समाज का भार साझा कर रहे हैं हाईकोर्ट - लखनऊ की खबरें

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बालगृहों के बच्चों के हितों से संबंधित एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा है कि ये बालगृह सरकार और समाज का भार साझा कर रहे हैं.

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लखनऊ हाईकोर्ट
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Published : May 5, 2022, 10:14 PM IST

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बालगृहों के बच्चों के हितों से संबंधित एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा है कि ये बालगृह सरकार और समाज का भार साझा कर रहे हैं. न्यायालय ने कहा कि बिजली बिल के बकाए के संबंध में इन्हें यथोचित राहत देने पर विचार किया जाना चाहिए.

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने अनूप गुप्ता शीर्षक से दर्ज एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दी. न्यायालय ने राज्य सरकार के उस जवाब को पूरी तरह खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि बालगृहों को बिजली बिल के टैरिफ में पहले से राहत देते हुए उन पर घरेलू दर ही लागू किया जाता है. न्यायालय ने कहा कि बालगृहों से शुरूआत में व्यवसायिक दर पर ही लिया जा रहा था लेकिन इस न्यायालय के आदेश के बाद घरेलू दर लागू की गई.

पढ़ेंः जीएसटी अधिकारियों के आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका पर हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार से मांगा जवाब

न्यायालय ने कहा कि जैसे हम अपने घरों में रहते हैं, वैसे ही किशोरों के लिए ये बालगृह उनके घर हैं. न्यायालय ने कहा कि इस आधार पर यही तर्कसंगत है कि उन पर भी घरेलू दर ही लागू किया जाए. न्यायालय ने आगे कहा कि हालांकि घरेलू दर लागू करने के बावजूद बालगृहों को बिजली का भारी-भरकम बिल भेजा जा रहा है. न्यायालय ने अपर महाधिवक्ता एमएम पांडेय को आदेश दिया कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए, इसे सरकार में उच्च स्तर पर रखा जाए. न्यायालय ने उम्मीद भी जताई है कि बालगृहों को बिजली बकाए के संबंध में यथोचित राहत दी जाएगी.

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लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बालगृहों के बच्चों के हितों से संबंधित एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा है कि ये बालगृह सरकार और समाज का भार साझा कर रहे हैं. न्यायालय ने कहा कि बिजली बिल के बकाए के संबंध में इन्हें यथोचित राहत देने पर विचार किया जाना चाहिए.

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने अनूप गुप्ता शीर्षक से दर्ज एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दी. न्यायालय ने राज्य सरकार के उस जवाब को पूरी तरह खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि बालगृहों को बिजली बिल के टैरिफ में पहले से राहत देते हुए उन पर घरेलू दर ही लागू किया जाता है. न्यायालय ने कहा कि बालगृहों से शुरूआत में व्यवसायिक दर पर ही लिया जा रहा था लेकिन इस न्यायालय के आदेश के बाद घरेलू दर लागू की गई.

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न्यायालय ने कहा कि जैसे हम अपने घरों में रहते हैं, वैसे ही किशोरों के लिए ये बालगृह उनके घर हैं. न्यायालय ने कहा कि इस आधार पर यही तर्कसंगत है कि उन पर भी घरेलू दर ही लागू किया जाए. न्यायालय ने आगे कहा कि हालांकि घरेलू दर लागू करने के बावजूद बालगृहों को बिजली का भारी-भरकम बिल भेजा जा रहा है. न्यायालय ने अपर महाधिवक्ता एमएम पांडेय को आदेश दिया कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए, इसे सरकार में उच्च स्तर पर रखा जाए. न्यायालय ने उम्मीद भी जताई है कि बालगृहों को बिजली बकाए के संबंध में यथोचित राहत दी जाएगी.

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