लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि लखनऊ पुलिस कमिश्नर ने अपने उस विवादित आदेश को वापस ले लिया है जिसमें सभी थाना प्रभारियों व पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि बड़ी धनराशि के धोखाधड़ी के मामलों में विभाग के उच्चाधिकारियों से अनुमति प्राप्त करने के पश्चात ही एफआईआर दर्ज की जाए. इस पर न्यायालय ने इस संबंध में दाखिल जनहित याचिका को उद्देश्यहीन हो चुकी मानते हुए, निरस्त कर दिया.
यह आदेश न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की खंडपीठ ने ध्रुव कुमार सिंह की ओर से दाखिल एक जनहित याचिका पर पारित किया. याचिका में 17 फरवरी 2020 के एक आदेश को चुनौती दी गई थी जिसे तत्कालीन कमिश्नर सुजीत पांडेय के हसड़ताक्षर से जारी किया गया था. उक्त आदेश में कहा गया था कि ऐसा संज्ञान में आया है कि जनपद में फ्रॉड के केसेज बिना उच्चाधिकारियों के संज्ञान में थानआ प्रभारियों द्वारा स्वयं एक पक्षीय सुनवाई कर के पंजीकृत कर लिया जा रहा है जबकि निर्देश है कि बड़ी धनराशि के फ्रॉड की पुष्टि होने पर सम्बंधित अधिकारी की अनुमति से ही अभियोग पंजीकृत किया जाए. उक्त आदेश में आगे कहा गया था कि अब से बिना अनुमति ऐसे अभियोग पंजीकृत करने पर थाना प्रभारी के विरुद्ध कार्यवाही की जाएगी.
याची की ओर से कमिश्नर के इस आदेश को दंड प्रक्रिया संहिता और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ललिता कुमारी मामले में दिए दिशा- निर्देशों का घोर उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी गई थी, जिस पर 6 अगस्त को ही न्यायालय ने जवाब मांगा था. हालांकि सरकारी वकील ने न्यायालय को बताया कि 1 नवम्बर को उक्त विवादित आदेश को वापस लिया जा चुका है.
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