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हाईकोर्ट का आदेश- बोलने व सुनने में असमर्थ बंदियों की सुविधा के लिए लिया जाए उचित निर्णय - high court lucknow

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बंदियों से मिलने के लिए RTPCR रिपोर्ट की अनिवार्यता को समाप्त करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. इसी याचिका में शामिल एक अन्य विषय पर कोर्ट ने उचित निर्णय लेने का आदेश दिया है.

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Published : Sep 28, 2021, 10:11 PM IST

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अधिवक्ता को जेल में किसी बंदी से मुलाकात के लिए आरटीपीसीआर(RTPCR) रिपोर्ट की अनिवार्यता को समाप्त करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. न्यायालय ने इसी याचिका में यह निर्देश दिया है, कि सुनने व बोलने में असमर्थ बंदियों से संवाद की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए यथोचित निर्णय लिया जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव प्रथम की खंडपीठ ने आशमा इज्जत की याचिका पर दिया.

याचिका में 13 अगस्त 2021 के नोटिफिकेशन को चुनौती देते हुए कहा गया कि, बंदियों से मुलाकात करने वाले वकीलों के लिए उक्त नोटिफिकेशन के द्वारा आरटीपीसीआर रिपोर्ट को अनिवार्य कर दिया गया है. याचिका में कहा गया था, कि यह न सिर्फ बंदियों के कानूनी सलाह प्राप्त करने के मौलिक अधिकार का हनन है बल्कि वकीलों के व्यवसाय के अधिकार में भी बाधा है.

न्यायालय ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा, कि यह व्यवस्था कोविड महामारी के कारण उत्पन्न परिस्थितियों के मद्देनजर बनाई गई है. इसमें कुछ भी गलत नहीं है, याची की ओर से बहस के दौरान यह भी मुद्दा उठाया गया, कि याची स्वयं अधिवक्ता है और लखनऊ जेल में बंद 2 अंडरट्रायल बंदियों से मुलाकात करना चाहती है. लेकिन वे बंदी सुनने व बोलने में असमर्थ हैं, ऐसे बंदियों से संवाद करने के लिए साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटर की सुविधा नहीं दी जा रही है. इस पर न्यायालय ने जेल अधीक्षक को आदेश दिया, कि यदि याची इस सम्बंध में प्रार्थना पत्र देती है तो उस पर यथोचित निर्णय लिया जाए.

इसे पढ़ें- यूपी की राजनीति : सपा के साथ गठबंधन को तैयार शिवपाल, अखिलेश को दिया 11 अक्टूबर तक का समय

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अधिवक्ता को जेल में किसी बंदी से मुलाकात के लिए आरटीपीसीआर(RTPCR) रिपोर्ट की अनिवार्यता को समाप्त करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. न्यायालय ने इसी याचिका में यह निर्देश दिया है, कि सुनने व बोलने में असमर्थ बंदियों से संवाद की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए यथोचित निर्णय लिया जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव प्रथम की खंडपीठ ने आशमा इज्जत की याचिका पर दिया.

याचिका में 13 अगस्त 2021 के नोटिफिकेशन को चुनौती देते हुए कहा गया कि, बंदियों से मुलाकात करने वाले वकीलों के लिए उक्त नोटिफिकेशन के द्वारा आरटीपीसीआर रिपोर्ट को अनिवार्य कर दिया गया है. याचिका में कहा गया था, कि यह न सिर्फ बंदियों के कानूनी सलाह प्राप्त करने के मौलिक अधिकार का हनन है बल्कि वकीलों के व्यवसाय के अधिकार में भी बाधा है.

न्यायालय ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा, कि यह व्यवस्था कोविड महामारी के कारण उत्पन्न परिस्थितियों के मद्देनजर बनाई गई है. इसमें कुछ भी गलत नहीं है, याची की ओर से बहस के दौरान यह भी मुद्दा उठाया गया, कि याची स्वयं अधिवक्ता है और लखनऊ जेल में बंद 2 अंडरट्रायल बंदियों से मुलाकात करना चाहती है. लेकिन वे बंदी सुनने व बोलने में असमर्थ हैं, ऐसे बंदियों से संवाद करने के लिए साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटर की सुविधा नहीं दी जा रही है. इस पर न्यायालय ने जेल अधीक्षक को आदेश दिया, कि यदि याची इस सम्बंध में प्रार्थना पत्र देती है तो उस पर यथोचित निर्णय लिया जाए.

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