लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने जिला जज, लखनऊ से पूछा है कि वकीलों के खिलाफ कितने आपराधिक मुकदमे विचाराधीन हैं. साथ ही उन मुकदमों के स्टेटस की जानकारी भी मांगी है. कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर, लखनऊ को भी वकीलों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों की जानकारी देने के आदेश दिए हैं. मामले की अगली सुनवाई 13 दिसम्बर को होगी.
यह आदेश जस्टिस राकेश श्रीवास्तव व जस्टिस शमीम अहमद की बेंच ने अधिवक्ता पियुष श्रीवास्तव की ओर से दाखिल एक याचिका पर पारित किया. याची अधिवक्ता व उसके साथियों पर निचली अदालत में एक मुकदमे की पैरवी करने पर कुछ अधिवक्ताओं द्वारा ही हमला करने का आरोप है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने संज्ञान लिया है कि वर्ष 2017 में तत्कालीन सीजेएम, लखनऊ संध्या श्रीवास्तव के साथ भी कुछ अधिवक्ताओं ने अभद्रता की थी.
कोर्ट ने कहा कि यह बहुत ही खेद जनक स्थिति है कि इस मामले में वर्ष 2017 में ही आरोप पत्र दाखिल हो चुका है, लेकिन अब तक आरोप तय नहीं हो सका है. कोर्ट ने जनपद न्यायाधीश को यह भी बताने को कहा है कि क्या इस मामले में तत्कालीन सीजेएम ने अदालत की अवमानना का कोई संदर्भ भेजा था. वहीं सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहे डीसीपी पश्चिमी सोमेन वर्मा ने एक पूरक शपथ पत्र दाखिल करते हुए बताया कि याची के मामले में शामिल अधिवक्ताओं ने एलडीए द्वारा निर्मित एक कम्युनिटी सेंटर को भी गिरा दिया था व 4 अक्टूबर 2021 को उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई, लेकिन आज तक कोई भी गिरफ्तारी नहीं की जा सकी है.
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एक महिला द्वारा एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज कराए गए एफआईआर में भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. यही नहीं कुछ अधिवक्ताओं ने कुशीनगर से आए पुलिसकर्मियों के साथ भी अभद्रता की थी. कोर्ट ने इन सभी मामलों में हुई कार्रवाई का ब्यौरा तलब किया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि कुछ अधिवक्ताओं का संगठित समूह धन वसूली, मनी लॉंड्रिंग व ब्लैकमेलिंग इत्यादि असामाजिक गतिविधियों में लिप्त हैं. ऐसे ‘ब्लैक शीप’ को वकालत के पेशे को बदनाम करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.
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