लखनऊ: सीतापुर की जेल में बंद ट्रायल कोर्ट द्वारा दोष सिद्ध किए गए दो कैदियों की ओर से गरीबी का हवाला देकर एक साल बाद दाखिल की गई आपराधिक अपील पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सीतापुर की जिला विधिक सेवा प्राधिकरण व जेल अधीक्षक से जवाब तलब किया है. न्यायालय ने पूछा है कि जब ऐसे गरीब कैदियों को निःशुल्क कानूनी सहायता जिलों में विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन है तो क्यों अपीलार्थियों को कानूनी मदद से वंचित रहना पड़ा. न्यायालय ने प्राधिकरण व जेल अधीक्षक से ऐसे अन्य कैदियों का भी विवरण तलब किया है जो कानूनी सहायता से वंचित हैं. साथ ही न्यायालय ने यूपी बार काउंसिल और अधिवक्ताओं से भी ऐसे गरीब कैदियों की मदद के लिए आगे आने का आह्वान किया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी व न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव प्रथम की पीठ ने शिव कुमार व एक अन्य की ओर से दाखिल अपील को सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए पारित किया. दरअसल, अपीलार्थियों ने 430 दिन देरी से अपील दाखिल की और न्यायालय से अनुरोध किया था कि देरी को माफ करते हुए उनकी अपील पर सुनवाई की जाए.
देरी की माफी के लिए दिए गए प्रार्थना पत्र में कहा गया था कि अपीलार्थीगण काफी गरीब हैं जिस कारण वे अधिवक्ता की फीस की व्यवस्था नहीं कर सके थे और फीस की व्यवस्था करने के उपरांत उन्होंने अपील दाखिल किया, इसी वजह से अपील दाखिल करने में देरी हुई. न्यायालय ने इस पर संज्ञान लेते हुए प्राधिकरण व जेल अधीक्षक से नाराजगी जताई कि ऐसे गरीब लोगों की मदद के लिए ही तो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन है तो इस मामले में वह क्या कर रही थी. साथ ही न्यायालय ने अपील दाखिल करने में हुई. देरी को माफ करते हुए निचली अदालत का रिकार्ड तलब कर अगली सुनवाई अगस्त में नियत किया है.
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