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फांसी की सजा पाए युवक को हाईकोर्ट ने किया बाइज्जत बरी

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फांसी की सजा पा चुके एक युवक को बाइज्जत बरी कर दिया. युवक सात साल से जेल में बंद था. उसके ऊपर एक नाबािलग लड़की के साथ रेप के बाद हत्या करने का आरोप था.

हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ
हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ
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Published : Jun 2, 2021, 10:46 PM IST

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक युवक को नाबालिग लड़की के साथ दुराचार करने व बाद में उसकी गला घोंटकर हत्या करने के मामले में, सात साल पहले सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि करने से इंकार करते हुए, युवक को बुधवार को बाइज्जत बरी कर दिया. निचली अदालत के फैसले के खिलाफ युवक की अपील मंजूर करते हुए, कोर्ट ने कहा कि अभियोजन अपना केस संदेह से परे नहीं साबित कर पाया.

रेप का आरोपी था शख्स

कोर्ट ने कहा कि उसे इस बात का बखूबी ख्याल है कि इस मामले में एक 12 साल की नाबालिग के साथ घटना घटी, लेकिन अभियोजन के साक्ष्यों से अपीलार्थी द्वारा कृत्य किया जाना सिद्ध नहीं होता. अपीलार्थी अप्रैल 2013 से जेल में है. यह निर्णय जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस राजीव सिंह की बेंच ने पारित किया. न्यायालय ने 25 मार्च 2021 को सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. कोर्ट ने अपने फैसले में, विवेचना में की गई कई कमियों को उजागर किया. विचारण जज ने जिस प्रकार से विचारण किया व फैसला सुनाया उसकी भी न्यायालय ने आलोचना की.

क्या था मामला

बाराबंकी के देवां थाना क्षेत्र के एक गांव से 12 साल की नाबालिग लड़की घर से बाहर गई थी. वह वापस नहीं आई तो घरवालों ने उसकी तालाश की, तो उसकी लाश गांव के ही एक बाग में मिली. पिता ने उसी दिन 30 मार्च 2013 को घटना की प्राथमिकी दर्ज करा दी. बाद में गांव के ही तीन लोगों की गवाही पर अपीलार्थी उभान यादव उर्फ अभय कुमार यादव को आरोपित बनाकर, पुलिस ने उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया. अपर सत्र न्यायाधीश, प्रथम बाराबंकी ने 29 अगस्त 2014 को युवक को फांसी की सजा सुना दी थी. जिसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील की. ट्रायल कोर्ट ने भी फांसी की सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट को संदर्भ भेजा था. कोर्ट ने अपील मंजूर कर लिया व संदर्भ खारिज कर दिया.

इसे भी पढे़ं- बीजेपी नेता ने पुलिस पर हमला कर हिस्ट्रीशीटर को छुड़ा लिया

न्यायालय का फैसला

युवक को संदेह का लाभ देते हुए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन ने जिन तीन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को पेश किया कि उन्होंने युवक को बाग से आते हुए देखा था, उन सभी के बयानों में विरोधाभाष है. साथ ही एफएसएल रिपोर्ट को अभियोजन ने साबित नहीं कराया, क्योंकि वह रिपोर्ट युवक को निर्दोष करार दे रही थी. इस पर विवेचक को मामले में डीएनए जांच करानी चाहिए थी, लेकिन उसने ऐसा न करके बड़ी गलती की. साथ ही जिस नोट बुक को घटना स्थल से आरोपित के संस्वीकृत बयान के आधार पर बरामद होना बताया जा रहा है, उसके लेख की एफएसएल जांच भी नहीं करायी गई. वहीं विचारण अदालत ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपित युवक को स्पष्ट नहीं किया कि उसके खिलाफ क्या-क्या साक्ष्य है, जिन पर अभियोजन भरोसा कर रहा है.

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक युवक को नाबालिग लड़की के साथ दुराचार करने व बाद में उसकी गला घोंटकर हत्या करने के मामले में, सात साल पहले सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि करने से इंकार करते हुए, युवक को बुधवार को बाइज्जत बरी कर दिया. निचली अदालत के फैसले के खिलाफ युवक की अपील मंजूर करते हुए, कोर्ट ने कहा कि अभियोजन अपना केस संदेह से परे नहीं साबित कर पाया.

रेप का आरोपी था शख्स

कोर्ट ने कहा कि उसे इस बात का बखूबी ख्याल है कि इस मामले में एक 12 साल की नाबालिग के साथ घटना घटी, लेकिन अभियोजन के साक्ष्यों से अपीलार्थी द्वारा कृत्य किया जाना सिद्ध नहीं होता. अपीलार्थी अप्रैल 2013 से जेल में है. यह निर्णय जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस राजीव सिंह की बेंच ने पारित किया. न्यायालय ने 25 मार्च 2021 को सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. कोर्ट ने अपने फैसले में, विवेचना में की गई कई कमियों को उजागर किया. विचारण जज ने जिस प्रकार से विचारण किया व फैसला सुनाया उसकी भी न्यायालय ने आलोचना की.

क्या था मामला

बाराबंकी के देवां थाना क्षेत्र के एक गांव से 12 साल की नाबालिग लड़की घर से बाहर गई थी. वह वापस नहीं आई तो घरवालों ने उसकी तालाश की, तो उसकी लाश गांव के ही एक बाग में मिली. पिता ने उसी दिन 30 मार्च 2013 को घटना की प्राथमिकी दर्ज करा दी. बाद में गांव के ही तीन लोगों की गवाही पर अपीलार्थी उभान यादव उर्फ अभय कुमार यादव को आरोपित बनाकर, पुलिस ने उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया. अपर सत्र न्यायाधीश, प्रथम बाराबंकी ने 29 अगस्त 2014 को युवक को फांसी की सजा सुना दी थी. जिसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील की. ट्रायल कोर्ट ने भी फांसी की सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट को संदर्भ भेजा था. कोर्ट ने अपील मंजूर कर लिया व संदर्भ खारिज कर दिया.

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न्यायालय का फैसला

युवक को संदेह का लाभ देते हुए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन ने जिन तीन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को पेश किया कि उन्होंने युवक को बाग से आते हुए देखा था, उन सभी के बयानों में विरोधाभाष है. साथ ही एफएसएल रिपोर्ट को अभियोजन ने साबित नहीं कराया, क्योंकि वह रिपोर्ट युवक को निर्दोष करार दे रही थी. इस पर विवेचक को मामले में डीएनए जांच करानी चाहिए थी, लेकिन उसने ऐसा न करके बड़ी गलती की. साथ ही जिस नोट बुक को घटना स्थल से आरोपित के संस्वीकृत बयान के आधार पर बरामद होना बताया जा रहा है, उसके लेख की एफएसएल जांच भी नहीं करायी गई. वहीं विचारण अदालत ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपित युवक को स्पष्ट नहीं किया कि उसके खिलाफ क्या-क्या साक्ष्य है, जिन पर अभियोजन भरोसा कर रहा है.

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