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प्रो विनय पाठक की याचिका पर दस को होगी दोबारा सुनवाई, फिलहाल राहत नहीं - कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो विनय पाठक

कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो विनय पाठक (Vice Chancellor of Kanpur University Prof. Vinay Pathak) की याचिका पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में गुरूवार को आदेश नहीं आ सका. दरअसल कोर्ट के शुरू होते ही प्रो. विनय पाठक के अधिवक्ता ने मामले में पूरक शपथ पत्र दाखिल करने की अनुमति मांगी, जिसे न्यायालय ने मंजूर कर लिया.

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Published : Nov 3, 2022, 7:40 PM IST

लखनऊ. कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो विनय पाठक (Vice Chancellor of Kanpur University Prof. Vinay Pathak) की याचिका पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में गुरूवार को आदेश नहीं आ सका. दरअसल कोर्ट के शुरू होते ही प्रो. विनय पाठक के अधिवक्ता ने मामले में पूरक शपथ पत्र दाखिल करने की अनुमति मांगी, जिसे न्यायालय ने मंजूर कर लिया. वहीं न्यायालय ने राज्य सरकार को भी जवाबी हलफ़नामा दाखिल करने के लिए समय प्रदान किया व मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 नवम्बर की तिथि नियत की. हालांकि न्यायालय ने फिलहाल कोई अंतरिम राहत प्रो. विनय पाठक को नहीं दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति राजेश सिंह व न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की खंडपीठ ने प्रो. पाठक की याचिका पर दिया. गुरूवार को याची के अधिवक्ता एलपी मिश्रा ने न्यायालय से अनुरोध किया कि उन्हें मामले में पूरक शपथ पत्र दाखिल करने की अनुमति दी जाए, वहीं राज्य सरकार की ओर से इसका विरोध किया गया व कहा गया कि यदि याची को समय दिया जाता है तो सरकार को भी जवाबी हलफनामे के लिए समय दिया जाए. न्यायालय ने दोनों पक्षों के अनुरोध को स्वीकार कर लिया. याची को पांच नवम्बर तक पूरक शपथ पत्र की प्रति राज्य सरकार के अधिवक्ता को उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया है.

यह भी पढ़ें : लखनऊ विश्वविद्यालय में आयुर्वेद और यूनानी संकाय का सफर खत्म, अगले सत्र से नहीं होगी पढ़ाई


उल्लेखनीय है कि प्रो. पाठक की ओर से दाखिल उक्त याचिका में इंदिरा नगर थाने में उनके व एक अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई है, साथ ही गिरफ़्तारी पर तत्काल रोक लगाने की भी याचना की गई है. उल्लेखनीय है कि प्रो. पाठक व प्राइवेट कम्पनी के मालिक अजय मिश्रा पर 29 अक्टूबर को इंदिरा नगर थाने में डेविड मारियो डेनिस ने एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया है कि प्रो. पाठक के आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति रहने के दौरान उसके कम्पनी द्वारा की गए कार्यों के भुगतान के लिए अभियुक्तों ने 15 प्रतिशत कमीशन वसूला. उससे कुल एक करोड़ 41 लाख रुपये की वसूली अभियुक्तों द्वारा जबरन की जा चुकी है. एफआईआर में यह भी कहा गया है कि वादी को उक्त अभियुक्तों से अपनी जान को खतरा है.

यह भी पढ़ें : एलडीए करेगा जांच, छह वर्षों में पास हुए सभी नक्शों के विपरीत कैसे हुए निर्माण

लखनऊ. कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो विनय पाठक (Vice Chancellor of Kanpur University Prof. Vinay Pathak) की याचिका पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में गुरूवार को आदेश नहीं आ सका. दरअसल कोर्ट के शुरू होते ही प्रो. विनय पाठक के अधिवक्ता ने मामले में पूरक शपथ पत्र दाखिल करने की अनुमति मांगी, जिसे न्यायालय ने मंजूर कर लिया. वहीं न्यायालय ने राज्य सरकार को भी जवाबी हलफ़नामा दाखिल करने के लिए समय प्रदान किया व मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 नवम्बर की तिथि नियत की. हालांकि न्यायालय ने फिलहाल कोई अंतरिम राहत प्रो. विनय पाठक को नहीं दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति राजेश सिंह व न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की खंडपीठ ने प्रो. पाठक की याचिका पर दिया. गुरूवार को याची के अधिवक्ता एलपी मिश्रा ने न्यायालय से अनुरोध किया कि उन्हें मामले में पूरक शपथ पत्र दाखिल करने की अनुमति दी जाए, वहीं राज्य सरकार की ओर से इसका विरोध किया गया व कहा गया कि यदि याची को समय दिया जाता है तो सरकार को भी जवाबी हलफनामे के लिए समय दिया जाए. न्यायालय ने दोनों पक्षों के अनुरोध को स्वीकार कर लिया. याची को पांच नवम्बर तक पूरक शपथ पत्र की प्रति राज्य सरकार के अधिवक्ता को उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया है.

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उल्लेखनीय है कि प्रो. पाठक की ओर से दाखिल उक्त याचिका में इंदिरा नगर थाने में उनके व एक अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई है, साथ ही गिरफ़्तारी पर तत्काल रोक लगाने की भी याचना की गई है. उल्लेखनीय है कि प्रो. पाठक व प्राइवेट कम्पनी के मालिक अजय मिश्रा पर 29 अक्टूबर को इंदिरा नगर थाने में डेविड मारियो डेनिस ने एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया है कि प्रो. पाठक के आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति रहने के दौरान उसके कम्पनी द्वारा की गए कार्यों के भुगतान के लिए अभियुक्तों ने 15 प्रतिशत कमीशन वसूला. उससे कुल एक करोड़ 41 लाख रुपये की वसूली अभियुक्तों द्वारा जबरन की जा चुकी है. एफआईआर में यह भी कहा गया है कि वादी को उक्त अभियुक्तों से अपनी जान को खतरा है.

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