लखनऊ: रोजगार के नए आयाम खड़े करने का दावा करने वाली सरकार जरा इधर भी अपना ध्यान आकर्षित करें तो शायद लखनऊ के इस फुटवियर एंड लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर में रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकते हैं. लेकिन यह आसान नहीं है, क्योंकि राजनीतिक उठापटक और दांवपेच के खेल में यह बस मुद्दा बन कर रह जाता है, जिसके शिकार होते हैं युवा और सरकार के द्वारा जनहित में लगे हुए संस्थान और संसाधन.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं लखनऊ के सीतापुर रोड बक्शी का तालाब पर स्थित फुटवियर एंड लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर की जिसको सन 1956 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय में पशुपालन विभाग के द्वारा फुटवियर एवं लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर के नाम से शुरू कराया गया था. भले ही इसकी स्थापना 1956 में हुई हो लेकिन पूर्ण रूप से स्थापित यह संस्था 1960 में काम करने लगी थी. पशुपालन विभाग के द्वारा संचालित इस संस्था के कई उद्देश्य थे. सबसे पहला उद्देश्य वातावरण को स्वच्छ करना, दूसरा उद्देश्य बख्शी के तालाब में स्थित एयरपोर्ट से उड़ान भरने वाले प्लेन की पक्षियों से सुरक्षा दिलाना और तीसरा जाति विशेष समाज के लोगों को रोजगार के लिए ट्रेनिंग देना.
इस लेदर एवं गुड्स ट्रेनिंग सेंटर में प्रतिवर्ष करीब 100 छात्र ट्रेनिंग पाते हैं. यह ट्रेनिंग सेंटर में नि:शुल्क दी जाती है.
इन तीन ट्रेडों में मिलती है छात्रों को ट्रेनिंग
- पशु शव उपयोग
- चर्म संसाधन
- फुटवियर एवं लेदर गुड्स प्रोडक्ट
इसी ट्रेनिंग सेंटर से ट्रेनिंग पाने के बाद छात्रों ने कानपुर जैसे इंडस्ट्रियल एरिया में वुडलैंड, रेड चीफ, जैसे तमाम बड़े ब्रांडों में रोजगार में मुकाम पाया है.
वर्तमान समय में यहां पर करीब 25 से 28 कर्मचारी कार्यरत हैं. जबकि शुरुआती दौर में यहां पर करीब 60 लोगों का स्टाफ हुआ करता था. महंगाई के दौर में भी यहां पर अध्यनरत छात्रों को कन्वेंस के रूप में मात्र 200 रुपये प्रतिमाह दिया जाता है. 1956 की निर्मित यह बिल्डिंग जर्जर स्थिति में बनी है. कर्मचारी इसके नीचे काम करने में भय महसूस करते हैं. आज तकनीकी रूप से कमजोर होने के कारण यह मशीनें धूल खा रही हैं और उपयोग से बाहर हैं.
संयुक्त निदेशक डॉ. मनोज कुमार सिंह से मिली जानकारी में बताया गया कि पहले भी इसको लेकर शासन को अवगत कराया है और इसकी मरम्मत व वर्तमान में चल रही टेक्नोलॉजी के हिसाब से पुनः इस संस्थान को चलाने की शिकायत की गई है. बावजूद इसके कोई सफलता नहीं मिली है. आज सभी पुरानी मशीनें चलने के हालात में नहीं है. कुछ मशीनों को शासन से बजट लेकर मेंटेनेंस करा कर चलाने की कोशिश की गई, लेकिन इस पर शासन कोई ध्यान नहीं दिखाई दे रहा है. हम मांग करते हैं कि शासन इस संस्थान पर गौर करें और पुरानी स्थितियों के आधार पर मौजूद मशीनों को वर्तमान समय के हिसाब से नई तकनीकी पर आधारित मशीनों को लगवाएं. इसका पुनः ठीक से संचालन कराया जाए तो जरूर बेहतर रिजल्ट देखने को मिलेंगे. फिलहाल अब देखने वाली बात होगी कि वर्तमान सरकार इस संस्थान पर कितना ध्यान आकर्षित देती है और इसके जीर्णोद्धार और पुनरुत्थान के लिए क्या कदम उठाती है.