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सरकार इस ट्रेनिंग सेंटर पर दे ध्यान तो बनेंगे रोजगार के नए आयाम - new employment

लखनऊ के सीतापुर रोड बक्शी का तालाब पर स्थित फुटवियर एंड लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर राजनीतिक उठापटक और दांवपेच के खेल में उलझ कर रह गई है. लखनऊ में फुटवियर एवं लेदर ट्रेनिंग सेंटर खोलने का उद्देश्य रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का था. यहां का पूरा सेटअप चमड़े के कारोबार में अग्रणी इंटरनेशनल मार्केट में अपनी पहचान रखने वाले देश नीदरलैंड से मंगवा कर लगाया गया था. मगर आज इस ट्रेनिंग सेंटर पर न तो शासन की निगाह जा रही और न ही कोई जिम्मेदार इसकी सुध ले रहा.

फुटवियर एंड लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर
फुटवियर एंड लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर
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Published : Aug 4, 2021, 2:28 PM IST

लखनऊ: रोजगार के नए आयाम खड़े करने का दावा करने वाली सरकार जरा इधर भी अपना ध्यान आकर्षित करें तो शायद लखनऊ के इस फुटवियर एंड लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर में रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकते हैं. लेकिन यह आसान नहीं है, क्योंकि राजनीतिक उठापटक और दांवपेच के खेल में यह बस मुद्दा बन कर रह जाता है, जिसके शिकार होते हैं युवा और सरकार के द्वारा जनहित में लगे हुए संस्थान और संसाधन.

दरअसल, हम बात कर रहे हैं लखनऊ के सीतापुर रोड बक्शी का तालाब पर स्थित फुटवियर एंड लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर की जिसको सन 1956 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय में पशुपालन विभाग के द्वारा फुटवियर एवं लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर के नाम से शुरू कराया गया था. भले ही इसकी स्थापना 1956 में हुई हो लेकिन पूर्ण रूप से स्थापित यह संस्था 1960 में काम करने लगी थी. पशुपालन विभाग के द्वारा संचालित इस संस्था के कई उद्देश्य थे. सबसे पहला उद्देश्य वातावरण को स्वच्छ करना, दूसरा उद्देश्य बख्शी के तालाब में स्थित एयरपोर्ट से उड़ान भरने वाले प्लेन की पक्षियों से सुरक्षा दिलाना और तीसरा जाति विशेष समाज के लोगों को रोजगार के लिए ट्रेनिंग देना.

अनदेखी का शिकार लेदर सेंटर
उस समय इस ट्रेनिंग सेंटर में पूरा सेटअप चमड़े के कारोबार में अग्रणी इंटरनेशनल मार्केट में अपनी पहचान रखने वाले देश नीदरलैंड से मंगवा कर लगाया गया था. वह समय था जब चमड़े का काम करने वाले पशुओं के शव को उठाने का काम सिर्फ जाति विशेष समाज के लोगों को दिया जाता था. उस समय इस समाज की दशा और दिशा बदलने के उद्देश्य से लखनऊ में फुटवियर एवं लेदर ट्रेनिंग सेंटर खोला गया. जिससे छात्र ट्रेनिंग पाकर चमड़े के द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट को बना सके और रोजगार प्राप्त कर सकें.साथ ही लखनऊ के वातावरण को स्वच्छ बनाने का भी प्रयास था, और एयरपोर्ट से लैंड करने वाले प्लेन को सुरक्षा प्रदान करने का भी काम था. क्योंकि उस समय जब जानवर के शव सड़कों पर या कहीं अन्य स्थान पर पड़े होते थे, तब पक्षी उन्हें खाने आते थे और आसपास उड़ते रहते थे. इस दौरान अगर कोई प्लेन बीकेटी एयरपोर्ट पर लैंड हो रहा होता था तब पक्षी से टकराने की संभावना बनी रहती थी. उस समय इस संस्था ने बड़ा योगदान दिया. शुरुआती दौर से ही फुटवियर एवं लेदर गुड्स ट्रेनिग सेंटर में पूरे लखनऊ जनपद में मृत पशुओं को लाकर पशु उत्सव उपयोग ग्रह में उनकी खाल उतार कर उनसे चमडे़ के जूते, चप्पल, बेल्ट, पर्स आदि बनाए और सिखाए गए, धीरे-धीरे तत्कालीन सरकारों ने राजस्व प्राप्ति के उद्देश्य से नगर निगम और नगर पालिका को महत्व पशुओं के शव उठाने का ठेका देना शुरू करा दिया और इस ट्रेनिंग सेंटर का कार्यक्षेत्र घटा कर उसके आसपास सिर्फ पांच किलोमीटर कर दिया गया.

इस लेदर एवं गुड्स ट्रेनिंग सेंटर में प्रतिवर्ष करीब 100 छात्र ट्रेनिंग पाते हैं. यह ट्रेनिंग सेंटर में नि:शुल्क दी जाती है.

इन तीन ट्रेडों में मिलती है छात्रों को ट्रेनिंग

  • पशु शव उपयोग
  • चर्म संसाधन
  • फुटवियर एवं लेदर गुड्स प्रोडक्ट

    इसी ट्रेनिंग सेंटर से ट्रेनिंग पाने के बाद छात्रों ने कानपुर जैसे इंडस्ट्रियल एरिया में वुडलैंड, रेड चीफ, जैसे तमाम बड़े ब्रांडों में रोजगार में मुकाम पाया है.


    वर्तमान समय में यहां पर करीब 25 से 28 कर्मचारी कार्यरत हैं. जबकि शुरुआती दौर में यहां पर करीब 60 लोगों का स्टाफ हुआ करता था. महंगाई के दौर में भी यहां पर अध्यनरत छात्रों को कन्वेंस के रूप में मात्र 200 रुपये प्रतिमाह दिया जाता है. 1956 की निर्मित यह बिल्डिंग जर्जर स्थिति में बनी है. कर्मचारी इसके नीचे काम करने में भय महसूस करते हैं. आज तकनीकी रूप से कमजोर होने के कारण यह मशीनें धूल खा रही हैं और उपयोग से बाहर हैं.

    संयुक्त निदेशक डॉ. मनोज कुमार सिंह से मिली जानकारी में बताया गया कि पहले भी इसको लेकर शासन को अवगत कराया है और इसकी मरम्मत व वर्तमान में चल रही टेक्नोलॉजी के हिसाब से पुनः इस संस्थान को चलाने की शिकायत की गई है. बावजूद इसके कोई सफलता नहीं मिली है. आज सभी पुरानी मशीनें चलने के हालात में नहीं है. कुछ मशीनों को शासन से बजट लेकर मेंटेनेंस करा कर चलाने की कोशिश की गई, लेकिन इस पर शासन कोई ध्यान नहीं दिखाई दे रहा है. हम मांग करते हैं कि शासन इस संस्थान पर गौर करें और पुरानी स्थितियों के आधार पर मौजूद मशीनों को वर्तमान समय के हिसाब से नई तकनीकी पर आधारित मशीनों को लगवाएं. इसका पुनः ठीक से संचालन कराया जाए तो जरूर बेहतर रिजल्ट देखने को मिलेंगे. फिलहाल अब देखने वाली बात होगी कि वर्तमान सरकार इस संस्थान पर कितना ध्यान आकर्षित देती है और इसके जीर्णोद्धार और पुनरुत्थान के लिए क्या कदम उठाती है.



लखनऊ: रोजगार के नए आयाम खड़े करने का दावा करने वाली सरकार जरा इधर भी अपना ध्यान आकर्षित करें तो शायद लखनऊ के इस फुटवियर एंड लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर में रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकते हैं. लेकिन यह आसान नहीं है, क्योंकि राजनीतिक उठापटक और दांवपेच के खेल में यह बस मुद्दा बन कर रह जाता है, जिसके शिकार होते हैं युवा और सरकार के द्वारा जनहित में लगे हुए संस्थान और संसाधन.

दरअसल, हम बात कर रहे हैं लखनऊ के सीतापुर रोड बक्शी का तालाब पर स्थित फुटवियर एंड लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर की जिसको सन 1956 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय में पशुपालन विभाग के द्वारा फुटवियर एवं लेदर गुड्स ट्रेनिंग सेंटर के नाम से शुरू कराया गया था. भले ही इसकी स्थापना 1956 में हुई हो लेकिन पूर्ण रूप से स्थापित यह संस्था 1960 में काम करने लगी थी. पशुपालन विभाग के द्वारा संचालित इस संस्था के कई उद्देश्य थे. सबसे पहला उद्देश्य वातावरण को स्वच्छ करना, दूसरा उद्देश्य बख्शी के तालाब में स्थित एयरपोर्ट से उड़ान भरने वाले प्लेन की पक्षियों से सुरक्षा दिलाना और तीसरा जाति विशेष समाज के लोगों को रोजगार के लिए ट्रेनिंग देना.

अनदेखी का शिकार लेदर सेंटर
उस समय इस ट्रेनिंग सेंटर में पूरा सेटअप चमड़े के कारोबार में अग्रणी इंटरनेशनल मार्केट में अपनी पहचान रखने वाले देश नीदरलैंड से मंगवा कर लगाया गया था. वह समय था जब चमड़े का काम करने वाले पशुओं के शव को उठाने का काम सिर्फ जाति विशेष समाज के लोगों को दिया जाता था. उस समय इस समाज की दशा और दिशा बदलने के उद्देश्य से लखनऊ में फुटवियर एवं लेदर ट्रेनिंग सेंटर खोला गया. जिससे छात्र ट्रेनिंग पाकर चमड़े के द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट को बना सके और रोजगार प्राप्त कर सकें.साथ ही लखनऊ के वातावरण को स्वच्छ बनाने का भी प्रयास था, और एयरपोर्ट से लैंड करने वाले प्लेन को सुरक्षा प्रदान करने का भी काम था. क्योंकि उस समय जब जानवर के शव सड़कों पर या कहीं अन्य स्थान पर पड़े होते थे, तब पक्षी उन्हें खाने आते थे और आसपास उड़ते रहते थे. इस दौरान अगर कोई प्लेन बीकेटी एयरपोर्ट पर लैंड हो रहा होता था तब पक्षी से टकराने की संभावना बनी रहती थी. उस समय इस संस्था ने बड़ा योगदान दिया. शुरुआती दौर से ही फुटवियर एवं लेदर गुड्स ट्रेनिग सेंटर में पूरे लखनऊ जनपद में मृत पशुओं को लाकर पशु उत्सव उपयोग ग्रह में उनकी खाल उतार कर उनसे चमडे़ के जूते, चप्पल, बेल्ट, पर्स आदि बनाए और सिखाए गए, धीरे-धीरे तत्कालीन सरकारों ने राजस्व प्राप्ति के उद्देश्य से नगर निगम और नगर पालिका को महत्व पशुओं के शव उठाने का ठेका देना शुरू करा दिया और इस ट्रेनिंग सेंटर का कार्यक्षेत्र घटा कर उसके आसपास सिर्फ पांच किलोमीटर कर दिया गया.

इस लेदर एवं गुड्स ट्रेनिंग सेंटर में प्रतिवर्ष करीब 100 छात्र ट्रेनिंग पाते हैं. यह ट्रेनिंग सेंटर में नि:शुल्क दी जाती है.

इन तीन ट्रेडों में मिलती है छात्रों को ट्रेनिंग

  • पशु शव उपयोग
  • चर्म संसाधन
  • फुटवियर एवं लेदर गुड्स प्रोडक्ट

    इसी ट्रेनिंग सेंटर से ट्रेनिंग पाने के बाद छात्रों ने कानपुर जैसे इंडस्ट्रियल एरिया में वुडलैंड, रेड चीफ, जैसे तमाम बड़े ब्रांडों में रोजगार में मुकाम पाया है.


    वर्तमान समय में यहां पर करीब 25 से 28 कर्मचारी कार्यरत हैं. जबकि शुरुआती दौर में यहां पर करीब 60 लोगों का स्टाफ हुआ करता था. महंगाई के दौर में भी यहां पर अध्यनरत छात्रों को कन्वेंस के रूप में मात्र 200 रुपये प्रतिमाह दिया जाता है. 1956 की निर्मित यह बिल्डिंग जर्जर स्थिति में बनी है. कर्मचारी इसके नीचे काम करने में भय महसूस करते हैं. आज तकनीकी रूप से कमजोर होने के कारण यह मशीनें धूल खा रही हैं और उपयोग से बाहर हैं.

    संयुक्त निदेशक डॉ. मनोज कुमार सिंह से मिली जानकारी में बताया गया कि पहले भी इसको लेकर शासन को अवगत कराया है और इसकी मरम्मत व वर्तमान में चल रही टेक्नोलॉजी के हिसाब से पुनः इस संस्थान को चलाने की शिकायत की गई है. बावजूद इसके कोई सफलता नहीं मिली है. आज सभी पुरानी मशीनें चलने के हालात में नहीं है. कुछ मशीनों को शासन से बजट लेकर मेंटेनेंस करा कर चलाने की कोशिश की गई, लेकिन इस पर शासन कोई ध्यान नहीं दिखाई दे रहा है. हम मांग करते हैं कि शासन इस संस्थान पर गौर करें और पुरानी स्थितियों के आधार पर मौजूद मशीनों को वर्तमान समय के हिसाब से नई तकनीकी पर आधारित मशीनों को लगवाएं. इसका पुनः ठीक से संचालन कराया जाए तो जरूर बेहतर रिजल्ट देखने को मिलेंगे. फिलहाल अब देखने वाली बात होगी कि वर्तमान सरकार इस संस्थान पर कितना ध्यान आकर्षित देती है और इसके जीर्णोद्धार और पुनरुत्थान के लिए क्या कदम उठाती है.



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