लखनऊ: कल्याण सिंह (kalyan singh) का जन्म पांच जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ. किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह के बारे में उनके पिता तेजपाल लोधी और माता सीता देवी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि उनका बेटा कभी इतना बड़ा बनेगा. कल्याण सिंह बचपन से ही जुझारू, संघर्षशील और हिंदुत्ववादी छवि के नेता रहे. शिक्षा-दीक्षा के बाद शिक्षक बने कल्याण सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े. फिर जनसंघ, जनता पार्टी, भारतीय जनता पार्टी से जुड़ते हुए मुख्यमंत्री और राज्यपाल बने. मुख्यमंत्री के रूप में सख्त प्रशासक की छवि वाले कल्याण सिंह ने राम मंदिर आंदोलन के जननायक के रूप में भी अपनी अलग पहचान बनाई थी.
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पश्चिम उत्तर प्रदेश के युवा नेता कल्याण सिंह 30 वर्ष की उम्र में पहली बार अलीगढ़ की अतरौली विधानसभा क्षेत्र से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए, लेकिन उन्होंने प्रयास जारी रखा. दूसरी बार 1967 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को शिकस्त दी. वह लगातार जीत रहे थे, लेकिन 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अनवर खां ने उन्हें पराजित किया. इसके बाद भाजपा के टिकट पर कल्याण सिंह ने 1985 के विधानसभा चुनाव में फिर से जीत दर्ज की. तब से लेकर 2004 के विधानसभा चुनाव तक कल्याण सिंह अतरौली सीट से विधायक बनते रहे.
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बाबरी विध्वंस के बाद वह भारतीय जनता पार्टी के बड़े राष्ट्रवादी और कट्टर हिंदुत्व वादी नेता बन चुके थे. पार्टी ने कल्याण सिंह को आगे करके 1991 का विधानसभा चुनाव लड़ा. विधानसभा चुनाव में भाजपा को 221 सीटें मिली थीं. कल्याण सिंह जून 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए छह दिसंबर 1992 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की बात कही. हालांकि सरकार बर्खास्त हो गयी थी. भाजपा की सरकार चली गई. इसके बाद 1993 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए. 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह अतरौली और कासगंज से विधायक चुने गए. चुनावों में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी, लेकिन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी. मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन करके सरकार बनाई गई. विधानसभा में कल्याण सिंह विपक्ष के नेता बने.
5 अगस्त 2020 में एक टीवी चैनल काे दिए इंटरव्यू उन्होंने कहा था कि 'जब इतिहास लिखा जाएगा, तो उसमें 15 अगस्त, 26 जनवरी की तरह 5 अगस्त 2020 की तारीख भी अमिट हो जाएगी. इस दिन राम मंदिर (ram mandir) के लिए भूमिपूजन हुआ. उसी पन्ने में ये भी लिखा जाएगा कि 6 दिसंबर को ढांचा चला गया था. ढांचे के साथ सरकार भी चली गई थी. मेरे जीवन की आकांक्षा थी कि राम मंदिर (ram mandir) बने. मंदिर (ram mandir) बनते ही मैं बहुत चैन के साथ दुनिया से विदा हो जाऊंगा'.
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