हैदराबाद: यूपी में विधानसभा चुनाव को भले ही अभी कुछ माह शेष बचे हैं, लेकिन अभी से ही सियासी पार्टियां जोर-शोर से प्रचार में जुट गई हैं. इस बीच सियासी मंचों से आरोप-प्रत्यारोप के दौर भी शुरू हो गए हैं. नेता पार्टियों के इतिहास से लेकर विचारधारा और एक-दूसरे के पोल खोलने में व्यस्त हैं. ऐसे में आज हम आपको यूपी के उस पूर्व मुख्यमंत्री के बारे में बताएंगे, जिसने अपनी सियासी एंट्री और मुख्यमंत्री बनने के सपने को साकार करने के लिए न्यायमूर्ति जैसे प्रतिष्ठित नौकरी तक को छोड़ दी थी.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्रा की. वैसे तो श्रीपति मिश्रा जौनपुर के रहने वाले थे, लेकिन कहते हैं कि उनका दरवाजा सुलतानपुर में खुलता था. उन्होंने सियासत में आने के लिए जज जैसी प्रतिष्ठित नौकरी तक को छोड़ दी थी और उन्हें इसका कोई मलाल नहीं था. खैर, आगे चलकर वे सूबे के 13वें मुख्यमंत्री बने.
वहीं, पिछले माह पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन के दौरान वहां मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्रा का नाम लिया था. वहीं, प्रधानमंत्री के नाम लेते ही आज श्रीपति मिश्रा सूबे की सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बन गए हैं. जज की प्रतिष्ठित नौकरी को छोड़कर यूपी की सियासत में आए श्रीपति मिश्रा की सियासी एंट्री सबसे निचले स्तर के पद से हुई थी. लेकिन समय के साथ वे लगातार आगे बढ़ते चले गए और यूपी के मुख्यमंत्री बने.
इसे भी पढ़ें -ठंड से बेहाल काशी के भगवान : पहनाया गया स्वेटर, टोपी, हीटर का भी इंतजाम
खैर, वैसे तो श्रीपति मिश्रा जौनपुर के थे, लेकिन उनका दरवाजा सुलतानपुर जनपद में खुलता था. उनका पैतृक गांव शेषपुर जौनपुर-सुलतानपुर जनपद की सीमा पर पड़ता है. लेकिन अगर आधिकारिक पते और निवास की बात करें तो उनका गांव जौनपुर में आता है. इसलिए वो निवासी तो जौनपुर के थे. पर उन्होंने अपनी सियासी कर्मभूमि सुलतानपुर और जौनपुर दोनों ही जिलों को बनाया.
सियासत के लिए छोड़ दी सरकारी नौकरी
वहीं, वैद्य पंडित राम प्रसाद मिश्रा के घर 20 जनवरी, 1924 को जन्मे श्रीपति मिश्रा ने बीएचयू से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. पढ़ाई के दौरान वे लगातार छात्र आंदोलनों में सक्रिय रहे. साल 1952 में सुलतानपुर में चुनाव भी लड़े पर उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा था. इसी बीच उनका चयन ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के पद पर हो गया और फर्रूखाबाद में उनकी पोस्टिंग हुई. लेकिन उनका इस नौकरी में मन न रमा और आखिरकार उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
ग्राम प्रधानी से शुरू थी सियासी सफर
असल में शुरू से ही उनका मन सियासी गलियों में लगता था. ऐसे में नौकरी से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने ग्राम प्रधानी का चुनाव लड़ा और इस चुनाव में उन्हें सफलता मिली. इसी के साथ उनके सियासी पारी की शुरुआत हुई. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा और साल 1962 के विधानसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत विधानसभा पहुंचे. इसके बाद 1967, 1980 में भी विधायक चुने गए. 1970 से 1976 तक वे एमएलसी रहे और फिर दो बार 1969, 1984 में सांसद बने. पहली बार वे सुलतानपुर से चुनाव जीत संसद पहुंचे तो दूसरी बार मछलीशहर से.
तब यूपी में डकैतों का आतंक था
वहीं, उनके यूपी का सीएम बनने का किस्सा भी बेहद ही रोचक है.1980 में यूपी में डकैतों का आतंक हुआ करता था. वीपी सिंह सीएम थे. एक घटना की वजह से वीपी सिंह को 18 जुलाई, 1982 को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था. इधर, पार्टी एक ईमानदार सीएम की तलाश कर रही थी. इसी बीच श्रीपति मिश्रा का नाम सामने आया और इंदिरा गांधी ने उन्हे सीएम बना दिया.
राजीव गांधी से खराब संबंधों के कारण छोड़नी पड़ी थी कुर्सी
वे 19 जुलाई, 1982 से लेकर 3 अगस्त, 1984 तक यूपी के मुख्यमंत्री रहे थे. लेकिन राजीव गांधी से खराब संबंधों के कारण उन्हें अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी. हालांकि, पार्टी में उपेक्षित होने के बाद 7 दिसंबर, 2002 को उनका निधन हो गया.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप