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लॉकडाउन में वन विभाग को करनी पड़ी मशक्कत, जब बिल से निकलने लगे ये जीव-जंतु

लॉकडाउन में यूपी के शहरी क्षेत्रों में जहां एक ओर कोरोना वायरस से जीवन प्रभावित था, वहीं दूसरी ओर सरीसृप और अन्य जीव-जंतु अपने बिलों से बाहर निकल आए, जिन्हें रेस्क्यू करने के लिए वन विभाग को खासी मशक्कत करनी पड़ी.

लॉकडाउन में बिलों से बाहर निकले सरीसृप
लॉकडाउन में बिलों से बाहर निकले सरीसृप
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Published : Jul 4, 2020, 11:03 AM IST

लखनऊ: लॉकडाउन में शहरी क्षेत्रों में जहां एक ओर कोरोना वायरस से जीवन प्रभावित था, वहीं दूसरी ओर सरीसृप और अन्य जीव-जंतु अपने बिलों से बाहर निकल आए. इन्हें रेस्क्यू करने के लिए वन विभाग को खासी मशक्कत करनी पड़ी. वन विभाग के अवध प्रांत के डीएफओ के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान रेस्क्यू कॉल्स 10 से 20 प्रतिशत तक अधिक बढ़ गई थी.

जानकारी देते डीएफओ.

प्रदेश वन निगम के अवध प्रांत के डीएफओ डॉ. रवि कुमार सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान जब सामान्य जन जीवन घरों के अंदर था, तब सड़कों पर इंसानों के न होने की वजह से सरीसृप घरों से बाहर निकल आए. आमतौर पर यह सभी सरीसृप बिलों में रहते हैं और सीजन बदलने पर या बारिश के मौसम में किसी ऊंचे स्थान पर जाने के लिए अपने बिलों से निकलते हैं. ऐसे में हमारे पास रेस्क्यू कॉल आती हैं, जिस पर हम इन्हें रेस्क्यू कर क्षेत्रों में सुरक्षित रूप से पहुंचाते हैं.

डॉ. सिंह ने बताया कि आमतौर पर सांप और मॉनिटर लिजर्ड यानी विष-खोपड़ा ही ऐसे जीव हैं, जो लॉकडाउन के दौरान बाहर निकल कर आए. उन्होंने बताया कि इन जीवों के रेस्क्यू कॉल वन विभाग को 3 तरह से मिलते हैं. पहला तरीका 112 नंबर पर फोन कॉल करने से होता है, जो वन विभाग को सूचित करता है. दूसरा, वन विभाग की हेल्पलाइन नंबर पर कॉल कर रेस्क्यू के लिए बुलाया जा सकता है और तीसरा तरीका कुछ एनजीओ हैं, जो वन विभाग के लगातार संपर्क में रहते हैं. इनके सदस्यों को रेस्क्यू करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है.

एनजीओ शान फाउंडेशन के साथ काम कर रहे स्नेक रेस्क्यूअर आदित्य तिवारी बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें 5 दिन में लगभग 18 से 20 घंटे तक रेस्क्यू कॉल आए. इस दौरान 2 महीनों में लगभग 60 सांप और लगभग 15 मॉनिटर लिजार्ड यानी विष खोपड़े के रेस्क्यू किए गए.

डीएफओ डॉ. सिंह के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान वन विभाग में भी रेस्क्यू कॉल की संख्या लगभग 20 प्रतिशत तक बढ़ गई थी, जिसके लिए 24 घंटे वन विभाग काम करता रहा. रेस्क्यू कॉल के बाद सभी जीव-जंतुओं को वन विभाग द्वारा रेस्क्यू कर पहले कार्यालय लाया जाता है. यहां पर उनकी जांच की जाती है कि जीव-जंतु सही सलामत हैं और उन्हें कोई चोट नहीं लगी हो. वन्य जीव चिकित्सक की देखरेख के बाद इनके उचित रहन-सहन के स्थान पर वन विभाग द्वारा छोड़ दिया जाता है.

लखनऊ: लॉकडाउन में शहरी क्षेत्रों में जहां एक ओर कोरोना वायरस से जीवन प्रभावित था, वहीं दूसरी ओर सरीसृप और अन्य जीव-जंतु अपने बिलों से बाहर निकल आए. इन्हें रेस्क्यू करने के लिए वन विभाग को खासी मशक्कत करनी पड़ी. वन विभाग के अवध प्रांत के डीएफओ के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान रेस्क्यू कॉल्स 10 से 20 प्रतिशत तक अधिक बढ़ गई थी.

जानकारी देते डीएफओ.

प्रदेश वन निगम के अवध प्रांत के डीएफओ डॉ. रवि कुमार सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान जब सामान्य जन जीवन घरों के अंदर था, तब सड़कों पर इंसानों के न होने की वजह से सरीसृप घरों से बाहर निकल आए. आमतौर पर यह सभी सरीसृप बिलों में रहते हैं और सीजन बदलने पर या बारिश के मौसम में किसी ऊंचे स्थान पर जाने के लिए अपने बिलों से निकलते हैं. ऐसे में हमारे पास रेस्क्यू कॉल आती हैं, जिस पर हम इन्हें रेस्क्यू कर क्षेत्रों में सुरक्षित रूप से पहुंचाते हैं.

डॉ. सिंह ने बताया कि आमतौर पर सांप और मॉनिटर लिजर्ड यानी विष-खोपड़ा ही ऐसे जीव हैं, जो लॉकडाउन के दौरान बाहर निकल कर आए. उन्होंने बताया कि इन जीवों के रेस्क्यू कॉल वन विभाग को 3 तरह से मिलते हैं. पहला तरीका 112 नंबर पर फोन कॉल करने से होता है, जो वन विभाग को सूचित करता है. दूसरा, वन विभाग की हेल्पलाइन नंबर पर कॉल कर रेस्क्यू के लिए बुलाया जा सकता है और तीसरा तरीका कुछ एनजीओ हैं, जो वन विभाग के लगातार संपर्क में रहते हैं. इनके सदस्यों को रेस्क्यू करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है.

एनजीओ शान फाउंडेशन के साथ काम कर रहे स्नेक रेस्क्यूअर आदित्य तिवारी बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें 5 दिन में लगभग 18 से 20 घंटे तक रेस्क्यू कॉल आए. इस दौरान 2 महीनों में लगभग 60 सांप और लगभग 15 मॉनिटर लिजार्ड यानी विष खोपड़े के रेस्क्यू किए गए.

डीएफओ डॉ. सिंह के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान वन विभाग में भी रेस्क्यू कॉल की संख्या लगभग 20 प्रतिशत तक बढ़ गई थी, जिसके लिए 24 घंटे वन विभाग काम करता रहा. रेस्क्यू कॉल के बाद सभी जीव-जंतुओं को वन विभाग द्वारा रेस्क्यू कर पहले कार्यालय लाया जाता है. यहां पर उनकी जांच की जाती है कि जीव-जंतु सही सलामत हैं और उन्हें कोई चोट नहीं लगी हो. वन्य जीव चिकित्सक की देखरेख के बाद इनके उचित रहन-सहन के स्थान पर वन विभाग द्वारा छोड़ दिया जाता है.

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