लखनऊ: कोरोना वायरस के खौफ में जारी लाॅकडाउन के चलते इस बार फूलों की खेती करने वाले किसान कर्ज में डूब गए हैं. उनके लाखों की लागत से लगाए फूल खिलकर नर्सरी में ही सूख जा रहें, न तो खरीदने वाले मिल रहे हैं और न ही मंड़ियों में फूलों की बिक्री हो पा रही है. नर्सरी में तैयार फूल ज्यों-के-त्यों पड़े हुए हैं, और बाजारों से तो मानों फूलों का कोई रिश्ता ही नहीं रहा.
राजधानी लखनऊ स्थित काकोरी बक्शी का तालाब व ग्रामीण क्षेत्रों में फूलों की सबसे अधिक खेती होती है. लखनऊ शहर के फूल मंडी में सामान्य दिनों में भी लगभग 50-100 कुंतल फूलों का व्यापार होता है. लेकिन इन दिनों एक कुंतल का व्यापार भी मुश्किल हो गया है. व्यापारी से लेकर किसान सभी परेशान हैं. अब फूल के किसान सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं.
धर्मेंद्र ने बताया कि किसान क्रेडिट कार्ड से एक लाख रुपये बैंक से कर्ज लिया था, जिसे नवरात्री के तुरंत बाद बैंक को लौटाने को कहा था. लेकिन लॉकडाउन के चलते उनके इस योजना पर पानी फिर गया, अब बैंक से भी सम्पर्क नहीं हो पा रहा. धर्मेंद्र ने कहा कि इस कठिन परिस्थिति में बेैंक का कर्ज कहां से अदा करें, मुनाफा तो दूर की बात है लागत भी डूब गई है.
वहीं, स्थानीय किसान रामचंद्र ने बताया कि ग्लैडियोलस और गेंदे के बजाय गुलाब का फूल होता तो उसे सुखाकर बेंच सकते थें. क्योंकि सूखा हुआ गुलाब इत्र के व्यापारी खरीद लेते हैं. उन्होंने बताया कि मेरे पास जो फूल है, उसे तोड़ने के बाद कुछ घंटे के अंदर ही इस्तेमाल किया जा सकता है.
एक और फूल के व्यापारी रमेश ने बताया कि लखनऊ फूल मंडी से आसपास के जिलों में भी फूल की सप्लाई की जाती थी. इनमें सीतापुर, हरदोई, बाराबंकी, लखीमपुर खीरी, बहराइच, गोंडा, अयोध्या तक फूल यही से जाता था. लेकिन लॉकडाउन के दौरान पूरा व्यापार ठप पड़ा है. जहां लखनऊ मंडी में हर दिन लाखों रुपये का व्यापार होता था, वहीं बंद के चलते एक भी खरीदार नजर नहीं आता.
बता दें, चैत्र मास का नवरात्र से लेकर साल के मार्च, अप्रैल माह फूलों से जुड़े व्यापारियों के लिए उम्मीद से भरा होता है. क्योंकि इस दौरान शादी, त्योहार और विभिन्न सरकारी आयोजन होते रहते हैं, जिनमें फूलों की अच्छी खपत होती है. लेकिन देशभर में लॉकडाउन के चलते सार्वजनिक गतिविधियां ठहर गई हैं.
कोरोना महामारी के चलते गांव-शहर सभी भी जगह लोग सामाजिक कार्यक्रम करने से बच रहे हैं. इस वक्त फूलों के किसानों पर मुश्किल का पहाड़ टूट पड़ा है. महज दो माह की कमाई से जहां वे अपना पूरा साल निकाल लेते थे, आज आमदनी न हो पाने से वह अपने भविष्य को अंधेरे में जाते देख रहे हैं. ऐसे में किसानों को अब सरकार के मदद की ही आस है.