लखनऊ: एक ऐसे ड्रोन टेक्नोलॉजी को विकसित किया जा रहा है, जो आने वाले समय में युद्ध के मैदान में देश के जवानों के शहीद होने के खतरे को काफी हद तक काम कर देगा. इतना ही नहीं यह ड्रोन खुद ही दुश्मन के क्षेत्र में जाकर उनकी तलाश करेगा. दुश्मनों को किस तरह से नष्ट करना है इसकी भी खुद से प्लानिंग कर हमला कर उन्हें तबाह कर देगा. ऐसे ही एक टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन मंगलवार को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद उत्तर प्रदेश की ओर से आयोजित राज्य स्तरीय विज्ञान मॉडल प्रतियोगिता एवं ग्रासरूट नवप्रवर्तक प्रदर्शनी में किया गया.
प्रदर्शनी का आयोजन साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में किया गया. कानपुर से आई एक छात्रा ने अपने मॉडल के माध्यम से ध्यान अपनी ओर खींचा. वहीं, छात्र रुद्र प्रताप सिंह का ड्रोन प्रोजेक्ट "अल्ट्रॉन" पूरी प्रदर्शनी में सबके बीच चर्चा का विषय बन गया. इसके अलावा गाय के गोबर से बनी ईंट और विश्व के विभिन्न देशों के लिए बनाई गई एक घड़ी आकर्षण का केंद्र रही.
अल्ट्रॉन ड्रोन तकनीक से होगा दुश्मन का सफाया: प्रदर्शनी में कानपुर के ओंकारेश्वर सरस्वती शिशु मंदिर के रुद्र प्रताप सिंह का "अल्ट्रॉन ड्रोन प्रोजेक्ट" प्रदर्शनी में आए सभी लोगों के बीच में काफी चर्चाओं में रहा. प्रमुख सचिव विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नरेंद्र भूषण ने इस प्रोजेक्ट की तारीफ की. उन्होंने कहा यह भविष्य का प्रोजेक्ट है. वहीं, छात्र रुद्र प्रताप सिंह ने बताया कि आज अमेरिका सहित विश्व के कई ताकतवर देश ड्रोन टेक्नोलॉजी को काफी विकसित कर चुके हैं. ये देश अपने कई बड़े मिशन को इन्हीं ड्रोन के माध्यम से पूरा करते हैं. इसी सब को देखकर छात्र रुद्र प्रताप के मन में अपने देश के डिफेंस सेक्टर को मजबूत करने के लिए ऐसी ड्रोन टेक्नोलॉजी को विकसित करने का आइडिया आया.
यह ड्रोन नहीं आता रडार सिस्टम में: छात्र रूद्र ने बताया कि अल्ट्रॉन ड्रोन प्रोजेक्ट उन्होंने अपने देश के जवानों की सुरक्षा और युद्ध के मैदान में दुश्मन को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से बनाया है. यह ड्रोन 3 तरीकों पर काम करता है. पहले तो यह सेटेलाइट से ऑपरेट होता है, दूसरा यह दुनिया में मौजूद अन्य ड्रोन की तरह ही काम करता है. आज दुनिया में मौजूद किसी भी विकसित ड्रोन के तरह ही काम करता है. यह ड्रोन दुश्मन के क्षेत्र में जाकर उनकी पूरी लोकेशन की फोटो खींचने के साथ उनके पास कौसे वारहेड व हथियार है. इसकी पूरी जानकारी इकट्ठा कर सकता है. इसके अलावा दुश्मनों को खत्म करने लिए किस तरह के जरूरी हथियारों की होगी. उन हथियारों को लोड कर दुश्मन के क्षेत्र में जाकर आसानी से उन्हे नष्ट कर सकता है. इस ड्रोन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह किसी भी रडार सिस्टम में आसानी से पकड़ में नहीं आता है.
इस घड़ी में नहीं सेकेंड और मिनट की सूई: लखनऊ के गोमती नगर के रहने वाले मजदूर अनिल कुमार साहू ने एक सुई वाली वर्ल्ड घड़ी का निर्माण किया है. यह एक ऐसी अनोखी घड़ी है, जिसमें सेकंड और मिनट की सूई नहीं है, सिर्फ एक बड़ी सूई है जो घंटे को दर्शाती है. इसके अलावा घड़ी के डायल में दुनिया के आठ देशों के टाइम जोन को दर्शाया गया है. इस घड़ी के माध्यम से आप दुनिया के आठ बड़े देशों के समय को जान सकते हैं. घड़ी बनाने वाले अनिल कुमार साहू ने बताया कि वह दसवीं फेल है और मजदूरी करता हैं. पढ़ाई छोड़ने के बाद उनके दोस्त लगातार कहते थे कि तुम्हारा दिमाग काफी अच्छा चलता है तुम आगे पढ़ाई क्यों नहीं करते हो. लेकिन, इस ओर ध्यान नहीं दिया.
8 देशों का टाइम दर्शाने वाली घड़ी: अनिल ने बताया कि उनके अंदर कुछ न कुछ करने की भावना हमेशा रहती थी. साल 1985 से दुनिया के टाइम जोन के बारे में पढ़ता रहता था. जिसके बाद उन्हें एक ऐसी घड़ी बनाने की जिज्ञासा हुई जो एक ही बार में दुनिया के विभिन्न देशों का समय बता सके. उन्होंने बताया कि अपने इसी पैशन को फॉलो करते हुए उन्होंने दुनिया के विभिन्न देशों के टाइम जोन के बारे में पढ़ा. इसके बाद एक ऐसी घड़ी बनाई जिसमें चीन, रूस, जापान, दुबई, अमेरिका, कनाडा, मेक्सिको और भारत का टाइम एक साथ देखा जा सकता है. यह घड़ी एयरपोर्ट, स्कूल सहित दुनिया में कहीं भी प्रयोग में लाई जा सकती है. अनिल की ख्वाहिश है कि भारत सरकार पूरे विश्व के लिए एक ही घड़ी बनाने में उनके मदद करें.
गोबर की ईंट घर के टेंपरेचर को रखेगी कम: इस विज्ञान प्रदर्शनी में अमेठी की संजू देवी ने गोबर से बनी चीजों प्रदर्शित किया था. जिसमें सभी का ध्यान एक ईंट ने अपनी और सबसे अधिक खींचा. यह ईट गोबर और मिट्टी के साथ कुछ केमिकल मिलाकर तैयार किया गया है. यह ईट नॉर्मल ईट की तुलना में कम खर्च में और स्पेशल सीमेंट के सात बनकर तैयार हुई है. इसका प्रयोग कर डबल स्टोर मकान बनाया जा सकता है. इस ईट से बने मकान का टेंपरेचर बाहर के टेंपरेचर से औसतन 15 डिग्री कम रहता है. साथ ही यह ईट कार्बन उत्सर्जन भी नहीं करती है. इसके अलावा गोबर से पेंट भी तैयार किया है. पेंट में को बनाने में जो कंपोनेंट सबसे अधिक प्रयोग हुआ है वह गोबर को पूरी तरह से एक्सट्रैक्ट कर कर देता है. वहीं, इसमें नेचुरल कलर भी मिलाया गया है.
यूपी के सभी जिलों से आए प्रतिभागी: वहीं, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख सचिव नरेन्द्र भूषण ने बताया कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने पहली राज्य स्तरीय विज्ञान माॅडल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का आयोजन अब हरसाल किया जाएगा. इसमें प्रदेश के सभी जनपदों से आए विद्यार्थियों ने आर्टिफिशयल इंटेलीजेंश, रोबोटिक्स, मशीन लर्निंग, आईओटी, एक्वाफोनिक्स, सेंसर तकनीक जैसे नवीनतम विषयों पर आधारित माॅडल्स का प्रदर्शन किया गया है. उन्होंने बताया कि इस प्रतियोगिता में कक्षा 9 व 11 के विद्यार्थी एवं इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा निर्धारित ’’वैश्विक कल्याण के लिए वैश्विक विज्ञान’’ थीम पर आधारित विज्ञान माॅडल प्रस्तुत किए गए.
इनको मिला पुरुस्कार: राज्य स्तरीय विज्ञान मॉडल प्रतियोगिता एवं ग्रासरूट नवप्रवर्तक प्रदर्शनी में तीन कैटेगरी में विज्ञान मॉडल का चयन किया गया. इन सभी विजेता छात्रों को राज्य मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने पुरस्कृत किया. इस प्रदर्शनी में 18 मंडलों से चार-चार विज्ञान के मॉडल चयनित कर राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में प्रदर्शित किए गए थे. उन्हें में से तीन कैटेगरी में कुल 16 लोगों को विजेता घोषित किया गया है. जिसमें कक्षा 9 व 11 से प्रथम स्थान पर गाजियाबाद की अनन्या राय रहीं, जिनके मॉडल का नाम सेफ एंड सिक्योर था. वहीं, दूसरे स्थान पर प्रयागराज के अंश मिश्रा रहे, जिन्होंने सेमी हुमानोइड रोबोट बनाया था. तीसरे स्थान पर सहारनपुर की अनिका ने सोलर एनर्जी का मॉडल बनाया था. वहीं, इंजीनियरिंग मॉडल के लिए प्रथम पुरस्कार आयुष कुमार तिवारी को मिला. इन्होंने इको एंड ट्रोनिक ई-साईकल मॉडल बनाया था.
राज्य स्तरीय प्रतियोगिता से पहले प्रदेश के समस्त 75 जनपदों में इसका आयोजन किया गया. जनपद स्तर के विजेताओं ने मण्डल स्तरीय प्रतियोगिता में मंगलवार को प्रदर्शिनी लगाई. जिसमें कक्षा-9 व 11 के विद्यार्थियों द्वारा प्रदर्शित माॅडल्स के विजेताओं को पुरस्कार के रूप में प्रथम पुरस्कार 25,000, द्वितीय पुरस्कार 20,000, तृतीय पुरस्कार 15,000, 5 सांत्वना पुरस्कार 5,000 रुपये एवं स्मृतिचिन्ह व प्रमाण-पत्र से सम्मानित किया गया.