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क्या सत्ता विरोधी लहर के डर से भाजपा ने अपना दल (एस) व निषाद पार्टी को दे दी जीती हुई 14 सीटें ?

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Published : Feb 10, 2022, 8:04 PM IST

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही है. पार्टी हर हाल में सत्ता में वापसी करना चाहती है. इसके लिए टिकट देने से लेकर सहयोगी दलों को सीटें देने तक के हर फैसले पर भाजपा ने खासा मेहनत की है. साफ सुथरे चेहरों पर पार्टी ने दांव लगाया है तो सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए अपने सहयोगी दलों पर भरोसा भी जताया है. भाजपा ने इस बार एक दर्जन से ज्यादा सीटें सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) व निषाद पार्टी की झोली में डाली है, जहां भाजपा का ही विधायक था.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही है. पार्टी हर हाल में सत्ता में वापसी करना चाहती है. इसके लिए टिकट देने से लेकर सहयोगी दलों को सीटें देने तक के हर फैसले पर भाजपा ने खासा मेहनत की है. साफ सुथरे चेहरों पर पार्टी ने दांव लगाया है तो सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए अपने सहयोगी दलों पर भरोसा भी जताया है. भाजपा ने इस बार एक दर्जन से ज्यादा सीटें सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) व निषाद पार्टी की झोली में डाली है, जहां भाजपा का ही विधायक था. यही कारण है कि गठबंधन दलों को पिछली बार से भी ज्यादा सीटें मिली हैं.

संजय निषाद की निषाद पार्टी अब तक 14 सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है. इनमें 5 सीटें ऐसी हैं जहां पर जो 2017 में भाजपा के प्रत्याशी जीते थे. इनमें कुशीनगर की खड्डा विधानसभा सीट जहां पर 2017 के चुनाव में भाजपा के जटाशंकर त्रिपाठी ने जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार निषाद पार्टी के खाते में गयी है, जहां पर विवेकानंद को प्रत्याशी बनाया गया है. इसी तरह चौरी चौरा, मेहन्दावल, सुल्तानपुर व कालपी सीट पर भी भाजपा का ही विधायक है, लेकिन 2022 के चुनाव में भाजपा ने निषाद पार्टी को ये सीट दे दी है.

इसे भी पढ़ें - UP Election 2022: बाहुबली मुख्तार अंसारी ने पकड़ा राजभर का हाथ, SBSP से चुनावी मैदान में

इसी तरह 2017 में 11 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली अपना दल (एस) अब तक 15 प्रत्याशी घोषित कर चुकी है और माना जा रहा है कि वो 18 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली हैं. जिन 15 सीटों के लिए अनुप्रिया टिकट दे चुकी हैं, उनमें 9 सीटे भाजपा की जीती हुई है. जिनमें चित्रकूट की मानिकपुर, प्रयागराज की बारा, कौशाम्बी की चायल, मऊरानीपुर, बिंदकी, बहराइच की नानपारा, कानपुर की घाटमपुर, रायबरेली की बछरावां व फरुखाबाद की कायमगंज सीट हैं.

भारतीय जनता पार्टी को पिछले एक दशक से कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह इसके पीछे जाति समीकरण को साधना व सत्ता विरोधी लहर से निपटना बता रहे हैं. वो कहते हैं कि भाजपा को एन केन प्रकारेण जीत चाहिए फिर वो खुद की पार्टी के या फिर सहयोगी दलों के जरिए. भाजपा पहले ही अपना आंतरिक सर्वे करा चुकी थी और वो जानती थी कि किस सीट पर जनता में सत्ता के प्रति गुस्सा है.

इसलिए ही उसने अपने सहयोगी दल को इस हार ज्यादा सीटें देकर अपनी जीती हुई सीट पर उसके प्रत्याशी उतारे हैं. उनका मानना है कि भाजपा जानती है कि जनता मोदी व योगी को देख कर वोट डालेगी उसे सिम्बल से कोई मतलब नहीं है. वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञ अंशुमान शुक्ल कहते हैं कि भाजपा जीती हुई सीटें छोड़कर वह राजनीतिक गठबंधन का धर्म निभा रही है. भारतीय जनता पार्टी अपने जीती हुई सीटें सहयोगी दलों को देखकर सहयोगी दलों की मदद कर रही है.

उन्होंने कहा कि कभी-कभी इस बात का ख्याल रखा जाता है, जो हमारा सहयोगी दल है वह वहां पर क्या दखल रखता है. 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने जिन सीटों को जीता था, उन सीटों को अपने सहयोगियों को देने का सीधा-सीधा मतलब है कि वो एक अलग प्रयोग की दिशा में चल रही है. इसका कारण सत्ता विरोधी लहर हो ही नहीं सकती. अगर ऐसा होता तो अन्य दलों को एक लीटर पेट्रोल देने का वादा न करना पड़ता.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही है. पार्टी हर हाल में सत्ता में वापसी करना चाहती है. इसके लिए टिकट देने से लेकर सहयोगी दलों को सीटें देने तक के हर फैसले पर भाजपा ने खासा मेहनत की है. साफ सुथरे चेहरों पर पार्टी ने दांव लगाया है तो सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए अपने सहयोगी दलों पर भरोसा भी जताया है. भाजपा ने इस बार एक दर्जन से ज्यादा सीटें सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) व निषाद पार्टी की झोली में डाली है, जहां भाजपा का ही विधायक था. यही कारण है कि गठबंधन दलों को पिछली बार से भी ज्यादा सीटें मिली हैं.

संजय निषाद की निषाद पार्टी अब तक 14 सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है. इनमें 5 सीटें ऐसी हैं जहां पर जो 2017 में भाजपा के प्रत्याशी जीते थे. इनमें कुशीनगर की खड्डा विधानसभा सीट जहां पर 2017 के चुनाव में भाजपा के जटाशंकर त्रिपाठी ने जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार निषाद पार्टी के खाते में गयी है, जहां पर विवेकानंद को प्रत्याशी बनाया गया है. इसी तरह चौरी चौरा, मेहन्दावल, सुल्तानपुर व कालपी सीट पर भी भाजपा का ही विधायक है, लेकिन 2022 के चुनाव में भाजपा ने निषाद पार्टी को ये सीट दे दी है.

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इसी तरह 2017 में 11 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली अपना दल (एस) अब तक 15 प्रत्याशी घोषित कर चुकी है और माना जा रहा है कि वो 18 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली हैं. जिन 15 सीटों के लिए अनुप्रिया टिकट दे चुकी हैं, उनमें 9 सीटे भाजपा की जीती हुई है. जिनमें चित्रकूट की मानिकपुर, प्रयागराज की बारा, कौशाम्बी की चायल, मऊरानीपुर, बिंदकी, बहराइच की नानपारा, कानपुर की घाटमपुर, रायबरेली की बछरावां व फरुखाबाद की कायमगंज सीट हैं.

भारतीय जनता पार्टी को पिछले एक दशक से कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह इसके पीछे जाति समीकरण को साधना व सत्ता विरोधी लहर से निपटना बता रहे हैं. वो कहते हैं कि भाजपा को एन केन प्रकारेण जीत चाहिए फिर वो खुद की पार्टी के या फिर सहयोगी दलों के जरिए. भाजपा पहले ही अपना आंतरिक सर्वे करा चुकी थी और वो जानती थी कि किस सीट पर जनता में सत्ता के प्रति गुस्सा है.

इसलिए ही उसने अपने सहयोगी दल को इस हार ज्यादा सीटें देकर अपनी जीती हुई सीट पर उसके प्रत्याशी उतारे हैं. उनका मानना है कि भाजपा जानती है कि जनता मोदी व योगी को देख कर वोट डालेगी उसे सिम्बल से कोई मतलब नहीं है. वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञ अंशुमान शुक्ल कहते हैं कि भाजपा जीती हुई सीटें छोड़कर वह राजनीतिक गठबंधन का धर्म निभा रही है. भारतीय जनता पार्टी अपने जीती हुई सीटें सहयोगी दलों को देखकर सहयोगी दलों की मदद कर रही है.

उन्होंने कहा कि कभी-कभी इस बात का ख्याल रखा जाता है, जो हमारा सहयोगी दल है वह वहां पर क्या दखल रखता है. 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने जिन सीटों को जीता था, उन सीटों को अपने सहयोगियों को देने का सीधा-सीधा मतलब है कि वो एक अलग प्रयोग की दिशा में चल रही है. इसका कारण सत्ता विरोधी लहर हो ही नहीं सकती. अगर ऐसा होता तो अन्य दलों को एक लीटर पेट्रोल देने का वादा न करना पड़ता.

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