लखनऊ: बीते दिनों कोरोना से हुई बुजुर्ग की मौत के बाद कब्रिस्तान में शव दफनाने को लेकर कुछ लोगों ने विवाद खड़ा किया था. वहीं इस मसले को लेकर दारुल इफ्ता में लखनऊ के एक शख्स सय्यद अयाज अहमद ने सवाल खड़े किए. इस पर दारुल उलूम फिरंगी महल ने फतवा जारी करते हुए शव को मुसलमानों के कब्रिस्तान में ही दफन किए जाने की बात कही.
दारुल उलूम फिरंगी महल की ओर से जारी हुए फतवे में कहा गया है कि कोरोना मरीज का अगर देहांत हो जाए तो उसे दफनाने से पहले नहलाना होगा, लेकिन इसका तरीका यह होगा कि सीलबंद लाश के ऊपर पानी बहा दिया जाए. यही ग़ुस्ल काफी है और सील को खोलने की जरूरत नहीं है. इसी तरह लाश को अलग से कफन पहनाने की जरूरत नहीं है, बल्कि जिस प्लास्टिक में पैक किया गया है, वही कफन हो जाएगा. इस मय्यत को मुसलमानों के कब्रिस्तान में ही दफन किया जाएगा.
यह बदनाम करने वाली हरकत
फतवे में कहा गया है कि जो लोग इसकी मुखालफत करते हैं उनका अमल गैर शरई (शरीयत के खिलाफ), गैर अखलाकी (अच्छे अखलाक के खिलाफ) और गैर इंसानी (इंसानियत के खिलाफ) है. यह जुल्म है और मिल्लत को बदनाम करने वाली हरकत है. मुसलमानों को चाहिए कि इस सिलसिले में आवाम को इस्लामी आदेशों व हिदायत से अवगत कराएं.
'कोरोना से मरने वाले भी इज्जत के हकदार'
दारुल उलूम फरंगी महल की ओर से जारी हुए इस फतवे में वरिष्ठ मुस्लिम धर्मगुरु और इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली समेत मौलाना नसरुल्लाह, मौलाना नईम उर रहमान सिद्दीकी और मौलाना मोहम्मद मुस्ताक ने हस्ताक्षर किए हैं. इसी के साथ मौलाना खालिद रशीद ने कहा कि कोरोना जैसी महामारी में मरने वाले लोग इज्जत व एहतराम के हकदार हैं. उनको आम कब्रिस्तान में दफन न होने देना बहुत ही निंदनीय बात है.
धार्मिक तौर तरीके से ही होना चाहिए अंतिम संस्कार
उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में जो मौतें हो रही हैं उनकी आखिरी रस्म उनके धार्मिक तौर तरीके के अनुसार ही की जानी चाहिए, जैसे ईसाइयों और यहूदियों की लाशें कब्रिस्तान में दफन की जा रही हैं. मौलाना फिरंगी महली ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन ने 24 मार्च को अपनी गाइडलाइन में साफ कर दिया था कि कोरोना वायरस से प्रभावित मय्यत अछूत नहीं है. इसलिए इसको इज्जत वह एहतराम (अदब) के साथ उसके धार्मिक तौर तरीकों के अनुसार दफन करना चाहिए.