ETV Bharat / state

UP Assembly Election 2022: UP में भाजपा के लिए काल बन सकते हैं किसान, अब संघ के इस नसीहत को कैसे करेंगे दरकिनार!

यूपी में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा को सूबे के किसान झटका दे सकते हैं. ऐसे में जरूरी है कि पार्टी अपने रूख में परिवर्तन करते हुए राजधानी दिल्ली व लखमीपुर हिंसा के पीड़ित किसानों से बातचीत कर उनकी मांगों की ओर ध्यान दे. दरअसल, उक्त बातें संघ की ओर से बतौर नसीहत पार्टी को कही गई हैं. इसके पीछे कई कारणों को इंगित किया गया है.

अब संघ के इस नसीहत को कैसे करेंगे दरकिनार!
अब संघ के इस नसीहत को कैसे करेंगे दरकिनार!
author img

By

Published : Oct 24, 2021, 9:57 AM IST

Updated : Oct 24, 2021, 11:02 AM IST

लखनऊ: देश व उत्तर प्रदेश में बिगड़े सियासी हालात को पक्ष में करने को जरूरी है कि भाजपा अपने उस रूख में तत्काल बदलाव करें, जिसके कारण उसे आगामी विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान हो सकता है. उक्त बातें पार्टी की सहयोगी संगठन के रूप में चिन्हित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से कही गई हैं. वहीं, संगठन ने पार्टी को यह भी सलाह दी है कि प्रदेश में सरकार बचाने के लिए किसानों के प्रति रूख में बदलाव अनिवार्य है. साथ ही पार्टी को यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि वह चुनाव तक अल्पसंख्यकों और अन्य जाति समुदाय को अलग-थलग न करे.

दरअसल, केंद्र सरकार की तीन कृषि कानूनों के विरोध में राजधानी दिल्ली के सरहदी छोर पर पिछले कई महीनों से पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा समेत कई अन्य राज्यों के किसान धरने पर बैठे हैं.

आरएसएस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल
आरएसएस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल

वहीं, अगले साल पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में किसानों का भाजपा के विरोध में लामबंद होना आगे उसकी मुश्किलें बढ़ा सकता है.

यही कारण है कि अब संघ ने भी भाजपा को खतरे से अगाह करने को उक्त नसीहत दी है. साथ ही यह भी कहा है कि उसे प्रदर्शन कर रहे किसानों से जल्द से जल्द मुलाकात कर समस्या के समाधान पर जोर देना चाहिए.

इसे भी पढ़ें - UP Assembly Election 2022: ऐसे UP में कारगर होगा ओवैसी का 55 साल पुराना ये सियासी फॉर्मूला!

संघ के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल ने पिछले एक सप्ताह में उत्तर प्रदेश के पश्चिमी अंचल के जिला स्तरीय व अन्य बड़े नेताओं से मुलाकात कर उनसे जमीनी सच्चाई जानने की कोशिश की.

हालांकि, कई दिनों तक चली बैठकों के दौरान भाजपा नेताओं को यह भी सलाह दी गई कि वे सिखों जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों या जाटों जैसे जाति समुहों का विरोध न करें. सूत्रों की मानें तो उक्त बैठकें सूबे में बिगड़ रहे सियासी हालात को नियंत्रित करने और पिछली गलतियों को सुधारने की एक कवायद थीं.

वहीं, लखीमपुर हिंसा और कुछ पार्टी नेताओं के बयानों से भाजपा की छवि को खासा नुकसान पहुंचा है और संघ को लगता है कि पार्टी इस तरह का जोखिम नहीं उठा सकती. बता दें कि संघ पदाधिकारियों ने अलग-अलग बैठकों में अलग-अलग स्तर व क्षेत्रों के भाजपा नेताओं से मुलाकात की, जिसमें यह बात स्पष्ट हुई है कि धरने पर बैठे किसानों के आक्रोश को खत्म करना जरूरी है.

इधर, नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर संघ के एक पदाधिकारी ने बताया कि न तो भाजपा और न ही संघ मुस्लिम विरोधी, सिख विरोधी, जाट विरोधी, दलित विरोधी या किसान विरोधी है.

इसे भी पढ़ें -Via UP दीदी करेंगी दिल्ली पर चढ़ाई, भाजपा के पराजय को ये खास प्लान बनाई!

साथ ही उन्होंने कहा कि बहस तथ्यों पर नहीं, बल्कि धारणाओं पर की जा सकती हैं. यदि एक निश्चित धारणा बनाई जा रही है तो उसे सुधारना अहम है. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि सत्ताधारी दल की यह जिम्मेदारी है कि वो देश व प्रदेश की भलाई के लिए निष्पक्ष रूप से फैसले ले.

किसानों के विरोध पर संघ ने सार्वजनिक तौर पर नाराजगी जाहिर की है. संघ का हमेशा से मानना रहा है कि किसी भी समस्या का समाधान बातचीत से ही होता है. ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे शांतिपूर्ण बातचीत से हल नहीं किया जा सकता है.

भाजपा के लिए अहम है UP

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कई वजहों से भाजपा के लिए अहम है. यहां विधानसभा में एक पार्टी जितनी सीटें जीतती है, उसका राज्यसभा की संरचना पर प्रभाव पड़ता है. संघ इस बात से भी चिंतित है कि भाजपा यह सुनिश्चित करे कि उसका चुनावी लक्ष्य पूरा हो. लेकिन हाल के कुछ दिनों में बदले सियासी समीकरणों के बीच पार्टी की छवि को उन्हें के नेताओं ने खराब किया है.

अब संघ के इस नसीहत को कैसे करेंगे दरकिनार!
अब संघ के इस नसीहत को कैसे करेंगे दरकिनार!

प्रत्याशी चयन में होगी संघ की अहम भूमिका

अबकी भाजपा ने सूबे में क्षेत्रवार प्रत्याशी चयन को कई पैरामीटर निर्धारित किए हैं और इसके मूल्यांकन की जिम्मेदारी संघ के पास है. यानी संघ ही अब यह तय करेगा कि किस नेता को टिकट देना है और किसे नहीं.

हालांकि, पार्टी ने वर्तमान विधायकों की एक ऐसी सूची तैयार की है, जिसमें उनके क्षेत्रों में हुए विकास कार्यों से लेकर उनकी आम लोगों के बीच सक्रियता को खासा तरजीह दी जा रही है. साथ ही बताया गया कि अबकी कई विधायकों के टिकट कट सकते हैं.

लखनऊ: देश व उत्तर प्रदेश में बिगड़े सियासी हालात को पक्ष में करने को जरूरी है कि भाजपा अपने उस रूख में तत्काल बदलाव करें, जिसके कारण उसे आगामी विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान हो सकता है. उक्त बातें पार्टी की सहयोगी संगठन के रूप में चिन्हित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से कही गई हैं. वहीं, संगठन ने पार्टी को यह भी सलाह दी है कि प्रदेश में सरकार बचाने के लिए किसानों के प्रति रूख में बदलाव अनिवार्य है. साथ ही पार्टी को यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि वह चुनाव तक अल्पसंख्यकों और अन्य जाति समुदाय को अलग-थलग न करे.

दरअसल, केंद्र सरकार की तीन कृषि कानूनों के विरोध में राजधानी दिल्ली के सरहदी छोर पर पिछले कई महीनों से पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा समेत कई अन्य राज्यों के किसान धरने पर बैठे हैं.

आरएसएस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल
आरएसएस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल

वहीं, अगले साल पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में किसानों का भाजपा के विरोध में लामबंद होना आगे उसकी मुश्किलें बढ़ा सकता है.

यही कारण है कि अब संघ ने भी भाजपा को खतरे से अगाह करने को उक्त नसीहत दी है. साथ ही यह भी कहा है कि उसे प्रदर्शन कर रहे किसानों से जल्द से जल्द मुलाकात कर समस्या के समाधान पर जोर देना चाहिए.

इसे भी पढ़ें - UP Assembly Election 2022: ऐसे UP में कारगर होगा ओवैसी का 55 साल पुराना ये सियासी फॉर्मूला!

संघ के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल ने पिछले एक सप्ताह में उत्तर प्रदेश के पश्चिमी अंचल के जिला स्तरीय व अन्य बड़े नेताओं से मुलाकात कर उनसे जमीनी सच्चाई जानने की कोशिश की.

हालांकि, कई दिनों तक चली बैठकों के दौरान भाजपा नेताओं को यह भी सलाह दी गई कि वे सिखों जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों या जाटों जैसे जाति समुहों का विरोध न करें. सूत्रों की मानें तो उक्त बैठकें सूबे में बिगड़ रहे सियासी हालात को नियंत्रित करने और पिछली गलतियों को सुधारने की एक कवायद थीं.

वहीं, लखीमपुर हिंसा और कुछ पार्टी नेताओं के बयानों से भाजपा की छवि को खासा नुकसान पहुंचा है और संघ को लगता है कि पार्टी इस तरह का जोखिम नहीं उठा सकती. बता दें कि संघ पदाधिकारियों ने अलग-अलग बैठकों में अलग-अलग स्तर व क्षेत्रों के भाजपा नेताओं से मुलाकात की, जिसमें यह बात स्पष्ट हुई है कि धरने पर बैठे किसानों के आक्रोश को खत्म करना जरूरी है.

इधर, नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर संघ के एक पदाधिकारी ने बताया कि न तो भाजपा और न ही संघ मुस्लिम विरोधी, सिख विरोधी, जाट विरोधी, दलित विरोधी या किसान विरोधी है.

इसे भी पढ़ें -Via UP दीदी करेंगी दिल्ली पर चढ़ाई, भाजपा के पराजय को ये खास प्लान बनाई!

साथ ही उन्होंने कहा कि बहस तथ्यों पर नहीं, बल्कि धारणाओं पर की जा सकती हैं. यदि एक निश्चित धारणा बनाई जा रही है तो उसे सुधारना अहम है. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि सत्ताधारी दल की यह जिम्मेदारी है कि वो देश व प्रदेश की भलाई के लिए निष्पक्ष रूप से फैसले ले.

किसानों के विरोध पर संघ ने सार्वजनिक तौर पर नाराजगी जाहिर की है. संघ का हमेशा से मानना रहा है कि किसी भी समस्या का समाधान बातचीत से ही होता है. ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे शांतिपूर्ण बातचीत से हल नहीं किया जा सकता है.

भाजपा के लिए अहम है UP

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कई वजहों से भाजपा के लिए अहम है. यहां विधानसभा में एक पार्टी जितनी सीटें जीतती है, उसका राज्यसभा की संरचना पर प्रभाव पड़ता है. संघ इस बात से भी चिंतित है कि भाजपा यह सुनिश्चित करे कि उसका चुनावी लक्ष्य पूरा हो. लेकिन हाल के कुछ दिनों में बदले सियासी समीकरणों के बीच पार्टी की छवि को उन्हें के नेताओं ने खराब किया है.

अब संघ के इस नसीहत को कैसे करेंगे दरकिनार!
अब संघ के इस नसीहत को कैसे करेंगे दरकिनार!

प्रत्याशी चयन में होगी संघ की अहम भूमिका

अबकी भाजपा ने सूबे में क्षेत्रवार प्रत्याशी चयन को कई पैरामीटर निर्धारित किए हैं और इसके मूल्यांकन की जिम्मेदारी संघ के पास है. यानी संघ ही अब यह तय करेगा कि किस नेता को टिकट देना है और किसे नहीं.

हालांकि, पार्टी ने वर्तमान विधायकों की एक ऐसी सूची तैयार की है, जिसमें उनके क्षेत्रों में हुए विकास कार्यों से लेकर उनकी आम लोगों के बीच सक्रियता को खासा तरजीह दी जा रही है. साथ ही बताया गया कि अबकी कई विधायकों के टिकट कट सकते हैं.

Last Updated : Oct 24, 2021, 11:02 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.