लखनऊ: कानपुर के बिकरू गांव में 3 जुलाई की रात दबिश देने गई पुलिस टीम पर अपराधी विकास दुबे ने फायरिंग कर दी थी. इस मुठभेड़ में आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे, जबकि 7 गंभीर रूप से घायल हुए थे. घटना के बाद अपराधी विकास दुबे फरार हो गया. इसके बाद कार्रवाई करते हुए पुलिस ने उसके घर को ढहा दिया. साथ ही अलग-अलग दिनों में मुठभेड़ के दौरान उसके 5 साथियों को मार गिराया. वहीं इस पूरे मामले में कई लोगों की गिरफ्तारियां भी हुईं. इस मामले में चौबेपुर थाने के पूरे स्टॉफ को निलंबित कर दिया गया और दो पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार भी किया गया था. गैंगस्टर विकास दुबे को भी मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर में गिरफ्तार कर लिया गया, जो कानपुर लाते समय भागने की कोशिश में मारा गया.
प्रदेश में हुए बड़े एनकाउंटरों का यह पहला मामला नहीं था. इससे पहले भी कई बड़े एनकाउंटर किए गए हैं, जिनमें कई शातिर अपराधी मारे गए. 2002 से 2008 के बीच उत्तर प्रदेश में 231 और 2010-13 के बीच 138 एनकाउंटर ऐसे हुए, जिसमें नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन ने सवाल उठाया था.
कब-कब हुए बड़े एनकाउंटर
6 दिसंबर 2019 को यूपी पुलिस के ट्वीट के मुताबिक पिछले दो वर्षों में 5178 एनकाउंटर हुए, जिसमें 103 अपराधी मारे गए और 1859 घायल हुए. वहीं मार्च 2017 से जुलाई 2019 के बीच दो वर्षों में हुईं मुठभेड़ों में कम से कम 76 अपराधियों को उत्तर प्रदेश पुलिस ने गोली मारी. हालांकि इस दौरान यूपी पुलिस के 5 जवानों ने भी अपनी जान की बाजी लगा दी, जबकि 27 मई 2019 तक राज्य भर में हुईं मुठभेड़ों में 642 पुलिसकर्मी घायल हुए.
मार्च 2017- 2018 मार्च के बीच 1,100 से अधिक मुठभेड़
मार्च 2017-2018 मार्च के बीच पुलिस और अपराधियों के बीच 1,100 से अधिक मुठभेड़ हुईं. इन मुठभेड़ों में 49 लोग मारे गए और 370 से अधिक घायल हुए. साथ ही राज्य भर में 3,300 से अधिक अपराधी गिरफ्तार किए गए. इस एक साल में ज्यादातर घटनाएं राष्ट्रीय राजधानी के पास जैसे मेरठ, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, सहारनपुर, बुलंदशहर, गाजियाबाद और नोएडा जिलों में हुई थीं. वहीं पूर्वी यूपी के आजमगढ़ में अपने गिरोह के लिए कुख्यात पांच संदिग्ध अपराधियों को गोली मार दी गई. हालांकि इन मुठभेड़ों में पांच पुलिसकर्मी भी मारे गए और 200 से अधिक घायल हुए थे.
एनएचआरसी के आंकड़ों के मुताबिक पूरे भारत में 2000-2017 के बीच 1782 फेक एनकाउंटर मामले दर्ज किए. इस दौरान अकेले यूपी में 794 मामलों में 44.55% फेक एनकाउंटर के मामले दर्ज किए गए.
उत्तर प्रदेश में हाल के वर्षों में हुईं मुठभेड़
- 27 जनवरी 2019 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में एक पुलिस कांस्टेबल और एक कथित हिस्ट्रीशीटर मुठभेड़ में मारा गया.
- 06 जून 2019 को पुलिस ने प्रतापगढ़ में एक अपराधी को मार गिराया. इसके साथ ही कानपुर, बाराबंकी और आजमगढ़ जिलों में मुठभेड़ के बाद पांच अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया.
- 25 जून 2019 को मुजफ्फरनगर के मीरापुर क्षेत्र में एसटीएफ के साथ हुई मुठभेड़ के दौरान 40 से अधिक मामलों में वांछित एक भगोड़े अपराधी को मार गिराया गया.
- 28 जून 2019 दो वांछित अपराधी, जो 23 साल से फरार थे, दोनों को बाराबंकी में हुई मुठभेड़ में गोली मार दी गई थी. पुलिस के मुताबिक सीतापुर के दोनों बदमाशों जुबैर (48) और लोमस (46) पर 50,000 रुपये का इनाम घोषित था और इन दोनों ने कम से कम 110 अपराध किए थे.
- 16 जुलाई 2019 को मेरठ और मुजफ्फरनगर की पुलिस टीमों ने पश्चिमी यूपी के खूंखार गैंगस्टर रोहित सांदू और उसके तीन करीबी सहयोगियों को चार घंटे के भीतर दो अलग-अलग मुठभेड़ों में गोली मार दी थी.
- 28 जुलाई 2019 को पश्चिमी यूपी के बागपत जिले में पुलिसकर्मियों ने एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी. यह अपराधी कई आपराधिक मामलों में वांछित चल रहा था.
- 11 अगस्त 2019 को जिन तीन हमलावरों ने दो कांस्टेबल बृजपाल और हरेंद्र की हत्या की थी. 17 जुलाई 2019 को उनमें से दो के साथ पुलिस की मुठभेड़ हुई. इसमें पहले कमल को मार दिया गया और फिर शकील भी मारा गया.
- 11 फरवरी 2020 को वाराणसी में एसटीएफ के साथ हुई मुठभेड़ में 11 जिलों में लूट और हत्या के 22 मामलों में वांछित अपराधी मारा गया. मारे गए बदमाश राजेश दुबे उर्फ टुन्ना पर 1 लाख रुपये का इनाम घोषित था. मुठभेड़ में उसके सीने में गोली मारी गई थी.
- 09 जुलाई 2020 को उत्तर प्रदेश पुलिस ने गैंगस्टर विकास दुबे के दो सहयोगियों को मार गिराया. मारे गए बदमाश प्रभात मिश्रा और प्रवीण दुबे 15 लोगों के उस समूह में थे, जिन्होंने पिछले सप्ताह कानपुर के पास बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी.
- 10 जुलाई 2020 को बहराइच के हरदी क्षेत्र के अहिरनपुरवा गांव में स्पेशल टास्क फोर्स के साथ गोरखपुर निवासी शातिर अपराधी पन्ना यादव उर्फ सुमन यादव की मुठभेड़ हुई. इसमें 50,000 रुपये के इनामी को मार दिया गया.
- 10 जुलाई 2020 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की गोली मारकर हत्या के मामले में वांचित गैंगस्टर विकास दुबे को मुठभेड़ में मार दिया गया.
LEGAL ASPECTS POLICE ENCOUNTERS
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
'पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़ एंड एनआर बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र एंड ऑर्स' के मामले में सुनवाई करते हुए 23 सितंबर 2014 को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा और न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ नरीमन की खंडपीठ ने एक विस्तृत 16 बिंदुओं की गाइडलाइन जारी की. जिसका पालन पुलिस एनकाउंटर में हुई मौतों के मामलों में पुलिस की जांच के लिए पूरी तरह से प्रभावी और स्वतंत्र जांच के लिए मानक प्रक्रिया के रूप में किया जाना था.
इनमें से कुछ ये निर्देश थे
- जब भी पुलिस को अपराधियों और आपराधिक गतिविधियों से संबंधित किसी भी टिप की जानकारी होगी तो इसे किसी न किसी रूप में (अधिमानतः केस डायरी में) या कुछ इलेक्ट्रॉनिक रूप लिखा जाएगा.
- किसी भी खुफिया सूचना की टिप मिलने के बाद मुठभेड़ होती है और इसमें बन्दूक का उपयोग पुलिस पार्टी द्वारा किया जाता है. इसी के फलस्वरूप अपराधी की मृत्यु होती है, उस आशय की एक प्राथमिकी दर्ज की जाएगी. उसे बिना किसी देरी के संहिता की धारा 157 के तहत अदालत में भेजा जाएगा. इस घटना या मुठभेड़ की एक स्वतंत्र जांच किसी अन्य अधिकारी की निगरानी में की जाएगी. यह जांच सीआईडी या पुलिस टीम द्वारा किसी अन्य अधिकारी की निगरानी में की जाएगी. जांच अधिकारी का स्तर मुठभेड़ में लगे पुलिस पार्टी के प्रमुख से ऊपर होना चाहिए.
- जो मौतें पुलिस फायरिंग के दौरान होती हैं, ऐसी मौतों के सभी मामलों में कोड की धारा 176 के तहत मजिस्ट्रियल जांच अनिवार्य रूप से होनी चाहिए. इसकी एक रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट को संहिता की धारा 190 के तहत भेजनी चाहिए.
- स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के बारे में गंभीर संदेह होने तक एनएचआरसी की भागीदारी आवश्यक नहीं है. हालांकि, बिना किसी देरी के घटना की जानकारी एनएचआरसी या राज्य मानवाधिकार आयोग को भेजी जानी चाहिए.
- अदालत ने निर्देश दिया था कि इन 'आवश्यकताओं/मानदंडों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत घोषित कानून के रूप में मानकर पुलिस मुठभेड़ों में मौत और गंभीर चोट के सभी मामलों को सख्ती से देखा जाना चाहिए'.