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बिजली कर्मियों ने इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल के विरोध में काली पट्टी बांधकर दर्ज कराया विरोध

राजधानी लखनऊ में बिजली कर्मियों ने इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल के विरोध में काली पट्टी बांध कर विरोध किया है. वहीं विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक ने कहा है कि यह बिल आम जनता और किसानों के विरोध में है और इसका बिजली कर्मी विरोध कर रहे हैं.

electricity amendment bill
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Published : Jun 3, 2020, 5:00 AM IST

लखनऊ: नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉई एंड इंजीनियर्स (एनसीसीओईई) के निर्णय पर देश के 15 लाख बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों के साथ उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियन्ताओं ने इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 के विरोध में काली पट्टी बांध कर विरोध दर्ज कराया. जिले में तमाम बिजली कर्मियों ने काली पट्टी बांधकर विरोध जताया और केंद्र सरकार से बिल वापस लेने की मांग की है.

बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों के संगठनों ने बिल के उपभोक्ताओं और किसान विरोधी प्राविधानों से सभी प्रांतो के मुख्यमंत्रियों और संसद सदस्यों को पत्र भेजकर अवगत कराया है. बिजली कर्मचारियों ने सभी से इस बिल का विरोध करने और इसे वापस कराने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की अपील की है.

निजीकरण किसानों और आम घरेलू उपभोक्ताओं के साथ धोखा
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा है कि निजीकरण किसानों और आम घरेलू उपभोक्ताओं के साथ धोखा है. निजीकरण के बाद बिजली की दरों में बेतहाशा वृद्धि होगी. कोविड -19 संक्रमण के दौरान लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए निजीकरण करने की निंदा करते हुए संघर्ष समिति ने इसे देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल में कहा गया है कि नई टैरिफ नीति में सब्सिडी और क्रॉस सब्सिडी समाप्त कर दी जाएगी. किसी को भी लागत से कम मूल्य पर बिजली नहीं दी जाएगी.

शैलेंद्र दुबे ने बताया कि अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रतिमाह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को सब्सिडी मिलती है, जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है. अब नई नीति और निजीकरण के बाद सब्सिडी समाप्त होने से स्वाभाविक तौर पर इन उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी. आंकड़े देते हुए उन्होंने बताया कि बिजली की लागत का राष्ट्रीय औसत 6.78 पैसे प्रति यूनिट है और निजी कंपनी द्वारा एक्ट के अनुसार कम से कम 16 प्रतिशत मुनाफा लेने के बाद आठ रुपये प्रति यूनिट से कम दर पर बिजली किसी को नहीं मिलेगी. इस प्रकार एक किसान को लगभग 6000 रुपये प्रति माह और घरेलू उपभोक्ताओं को 6000 से 8000 रुपये प्रति माह तक बिजली बिल देना होगा.

निजी वितरण कंपनियों को कोई घाटा न हो इसीलिये सब्सिडी समाप्त कर प्रीपेड मीटर लगाए जाने की योजना लाई जा रही है. अभी सरकारी कंपनी घाटा उठाकर किसानों और उपभोक्ताओं को बिजली देती है. सब्सिडी समाप्त होने से किसानों और आम लोगों को भारी नुकसान होगा, जबकि क्रॉस सब्सिडी समाप्त होने से केवल उद्योगों और बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को लाभ होगा. यह बिल आम जनता और किसानों को विरोध में है. इसका बिजली कर्मी विरोध कर रहे हैं. किसी कीमत पर निजीकरण नहीं होने दिया जाएगा.
शैलेंद्र दुबे, विद्युत कर्मचारी

लखनऊ: नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉई एंड इंजीनियर्स (एनसीसीओईई) के निर्णय पर देश के 15 लाख बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों के साथ उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियन्ताओं ने इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 के विरोध में काली पट्टी बांध कर विरोध दर्ज कराया. जिले में तमाम बिजली कर्मियों ने काली पट्टी बांधकर विरोध जताया और केंद्र सरकार से बिल वापस लेने की मांग की है.

बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों के संगठनों ने बिल के उपभोक्ताओं और किसान विरोधी प्राविधानों से सभी प्रांतो के मुख्यमंत्रियों और संसद सदस्यों को पत्र भेजकर अवगत कराया है. बिजली कर्मचारियों ने सभी से इस बिल का विरोध करने और इसे वापस कराने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की अपील की है.

निजीकरण किसानों और आम घरेलू उपभोक्ताओं के साथ धोखा
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा है कि निजीकरण किसानों और आम घरेलू उपभोक्ताओं के साथ धोखा है. निजीकरण के बाद बिजली की दरों में बेतहाशा वृद्धि होगी. कोविड -19 संक्रमण के दौरान लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए निजीकरण करने की निंदा करते हुए संघर्ष समिति ने इसे देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल में कहा गया है कि नई टैरिफ नीति में सब्सिडी और क्रॉस सब्सिडी समाप्त कर दी जाएगी. किसी को भी लागत से कम मूल्य पर बिजली नहीं दी जाएगी.

शैलेंद्र दुबे ने बताया कि अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रतिमाह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को सब्सिडी मिलती है, जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है. अब नई नीति और निजीकरण के बाद सब्सिडी समाप्त होने से स्वाभाविक तौर पर इन उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी. आंकड़े देते हुए उन्होंने बताया कि बिजली की लागत का राष्ट्रीय औसत 6.78 पैसे प्रति यूनिट है और निजी कंपनी द्वारा एक्ट के अनुसार कम से कम 16 प्रतिशत मुनाफा लेने के बाद आठ रुपये प्रति यूनिट से कम दर पर बिजली किसी को नहीं मिलेगी. इस प्रकार एक किसान को लगभग 6000 रुपये प्रति माह और घरेलू उपभोक्ताओं को 6000 से 8000 रुपये प्रति माह तक बिजली बिल देना होगा.

निजी वितरण कंपनियों को कोई घाटा न हो इसीलिये सब्सिडी समाप्त कर प्रीपेड मीटर लगाए जाने की योजना लाई जा रही है. अभी सरकारी कंपनी घाटा उठाकर किसानों और उपभोक्ताओं को बिजली देती है. सब्सिडी समाप्त होने से किसानों और आम लोगों को भारी नुकसान होगा, जबकि क्रॉस सब्सिडी समाप्त होने से केवल उद्योगों और बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को लाभ होगा. यह बिल आम जनता और किसानों को विरोध में है. इसका बिजली कर्मी विरोध कर रहे हैं. किसी कीमत पर निजीकरण नहीं होने दिया जाएगा.
शैलेंद्र दुबे, विद्युत कर्मचारी

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