लखनऊ : (UP Assembly Election 2022) आम आदमी पार्टी (AAP) 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में उतर चुकी है. एक दिन पहले ही लखनऊ आए दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Deputy Chief Minister Manish Sisodia) ने घोषणा की, कि यदि प्रदेश में उनकी सरकार बनी तो वह घर में 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देंगे. आम आदमी पार्टी (AAP) भले ही मुफ्त बिजली जैसे वादों के सहारे चुनाव में अपनी नाव को पार लगाने की सोच रही हो, लेकिन यूपी में उसकी राह इतनी भी आसान नहीं है. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो उत्तर प्रदेश और दिल्ली की राजनीति में बड़ा अंतर है और अभी इस पार्टी के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं.
लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिक शास्त्र के वरिष्ठ शिक्षक प्रोफेसर कमल कुमार कहते हैं कि आम आदमी पार्टी (AAP) का अभी यूपी में कोई जनाधार नहीं है. ग्राउंड स्तर पर पार्टी की मौजूदगी अभी अपने न्यूनतम स्तर पर है. उत्तर प्रदेश और दिल्ली की राजनीति में बड़ा अंतर है. यूपी में बड़ी संख्या में जनता गांव में रहती है. बीते कुछ वर्षों में कई बार देखने को मिला है कि चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे किए गए. फ्री सुविधाएं देने की घोषणा हुई और चुनाव के बाद वह वादे हवा हो गए. चूंकि अभी जमीनी स्तर पर पार्टी के पास समर्पित कार्यकर्ता नहीं हैं, ऐसे में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए यह बातें सिर्फ हवा हवाई होंगे.
प्रोफेसर कमल कुमार कहते हैं कि दिल्ली की अधिकतम जनता शहरी इलाके की है. इसके साथ ही वहां दूसरे राज्यों से बसे लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी है. वहां आम आदमी पार्टी फ्री बिजली-पानी, स्कूली-शिक्षा और चिकित्सा जैसे विकास के मुद्दों पर अपनी पकड़ मजबूत करती रही है. यूपी में भी इन मुद्दों के साथ पार्टी को कुछ सीटों को चिन्हित करके उन पर अपना पूरा जोर लगाने की जरूरत है.
वह बताते हैं कि 'आप' द्वारा घोषित 100 प्रत्याशियों की सूची में आम आदमी पार्टी (AAP) की तरफ से यह बताया गया कि कितने पिछड़े वर्ग के प्रत्याशियों, कितने ब्राह्मण, कितने दलितों और मुसलमानों को इस सूची में जगह मिली है. जातिगत राजनीति उत्तर प्रदेश में पहले ही मजबूत है. बड़े-बड़े राजनीतिक दल इन्हीं जातीय समीकरणों पर चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में पार्टी को जातिगत समीकरणों में फंसने की वजह अपनी पॉलिटिक्स (विकास के मुद्दे : जिसका नारा देकर आम आदमी पार्टी यूपी में आई है) पर काम करना चाहिए.
वरिष्ठ आर्य समाजी और किसान राजनीति के विश्लेषक देवेंद्र पाल वर्मा कहते हैं कि आम आदमी पार्टी (AAP) ने फ्री बिजली जैसे मुद्दों के साथ ही पंजाब और हरियाणा में भी चुनाव लड़ी, लेकिन उसका प्रभाव काफी हद तक सीमित ही रहा. किसानों को फ्री बिजली जैसी बात कहकर भी वह हरियाणा और पंजाब के किसान को अपनी ओर नहीं कर पाए. यूपी में स्थिति तो और भी अलग है. एक तो इनका जमीन पर कोई मजबूत जनाधार नहीं है. सिर्फ चुनाव के दौरान इनकी उपस्थिति देखने को मिल रही है. ऐसे में जनता के लिए भी इनकी बातों पर भरोसा कर पाना बहुत मुश्किल है. उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी (AAP) की मौजूदगी भाजपा सरकार से ज्यादा सपा, बसपा और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने वाली है. भाजपा सरकार से नाराजगी के चलते जो वोटर छिटकने लगा था, उसके लिए आम आदमी पार्टी (AAP) एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर कर सामने आई है.
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क्या है हकीकत
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) में मतदाताओं को रिझाने के लिए आम आदमी पार्टी (AAP) ने मुफ्त और सस्ती बिजली देने का वादा तो कर दिया है, लेकिन वादों को हकीकत में बदलना न बिजली कंपनियों के लिए आसान होगा और न ही सरकार के लिए. कारण यह है कि सूबे की बिजली कंपनियां 1 लाख करोड़ रुपये के घाटे में चल रही हैं. केवल किसानों को 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने के लिए ही सरकार को अपने खजाने से तकरीबन 35 हजार करोड़ रुपये देने होंगे.