लखनऊ. बिजली विभाग में काम करने वाले कर्मियों के लिए बिजली की लाइनें जानलेवा साबित हो रही हैं. आए दिन प्रदेश में बिजली के करंट से बिजलिकर्मियों की मौत हो रही है, वहीं कोई न कोई हर रोज घायल हो रहा है. यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि लाइन पर काम करते समय उनके पास सुरक्षा उपकरण ही नहीं होते हैं. बिजली विभाग दावा करता है कि सभी को सेफ्टी किट मुहैया कराई गई है.
वहीं बिजलीकर्मियों का कहना है कि सेफ्टी किट मिलती ही नहीं है. ऐसे में मजबूरन काम करना पड़ता है. किसी की मौत हो जाने पर बिजली विभाग की तरफ से इलाज तो मिल जाता है लेकिन मुआवजा मिलता ही नहीं है. ऐसे तमाम उदाहरण है जिसमें बिजली कर्मियों की जान चली गई और परिवार घुट-घुटकर मर रहा है.
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन बिजली की लाइनों पर काम करने के लिए कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरणों से लैस होने का दावा करता है, लेकिन आए दिन लाइनों पर काम करते समय हो रही कर्मचारियों के मौतें विभाग के इस दावे को खोखला साबित कर रही हैं. शायद ही ऐसा कोई दिन जाता हो जब प्रदेश के किसी न किसी इलाके में किसी कर्मचारी की मौत की वजह बिजली न बनती हो. बिना सुरक्षा उपकरण के सहारे ही कर्मचारियों से काम लिया जाता है. असुरक्षित होते हुए भी बेरोजगारी का दंश न झेलना पड़े. इसलिए कर्मचारी काम करते हैं. सुरक्षा किट न होने के कारण उन्हें हर पल जान जोखिम में डालने का खतरा मोल लेना पड़ता है.
पढ़ेंः यूपी में एक रुपये प्रति यूनिट महंगी हो सकती है बिजली?
सालों से नहीं दी गई सुरक्षा किट
बिजली विभाग में संविदाकर्मी की भर्ती के समय बाकायदा ठेकेदार यह शपथ पत्र देता है कि कर्मचारियों को सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी, फिर जब कर्मचारी की मौत हो जाती है तो सामने आता है कि बिजली के खंभे पर काम करते समय कर्मचारी के पास सुरक्षा उपकरण थे ही नहीं. खंभे पर काम करते समय बिजली का करंट लगता है और कर्मचारी घायल हो जाता है तो विभाग की तरफ से उसका इलाज तो कराया जाता है लेकिन जब मौत हो जाती है तो मुआवजा देने में भरपूर आनाकानी की जाती है. समय पर परिवार को पैसा तक नहीं मिलता है. बिजलीकर्मियों का कहना है कि विभाग को सुरक्षा मानकों का ध्यान रखना चाहिए, लेकिन ऐसा होता ही नहीं है. बिना किट के एक सीढ़ी, रस्सी और प्लास के सहारे काम कर रहे हैं.
इन जिलों में ज्यादा घटनाएं
लखनऊ, उन्नाव, बाराबंकी, अंबेडकर नगर, फैजाबाद, बलरामपुर, गोंडा, हरदोई, अमेठी, श्रावस्ती, बहराइच और बलरामपुर ऐसे जिले हैं, जहां बिजली का करंट लगने से 175 से ज्यादा घटनाएं हुईं, जिसमें 80 फीसदी से ज्यादा कर्मचारियों की सुरक्षा उपकरण के अभाव में मौत हो गई. बिजली की सबसे ज्यादा घटनाएं उन्नाव और हरदोई क्षेत्र में हुईं. इन इलाकों में लगभग 72 संविदा कर्मियों की मौतें हो चुकी हैं, वहीं लखनऊ में भी पिछले एक माह में ही 10 से ज्यादा ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसमें सुरक्षा उपकरण के अभाव में संविदा कर्मी को बुरी तरह चोटे आईं और वे घायल हुए.
पढ़ेंः यूपी में एक रुपये प्रति यूनिट महंगी हो सकती है बिजली?
ये हैं सेफ्टी के मानक
- पोल पर चढ़ते समय प्लास्टिक का जूता पहनें.
- हाथ में प्लास्टिक के दस्ताने हों.
- कमर में रस्सी की बेल्ट होना चाहिए.
- सिर पर हेलमेट होना चाहिए.
- कार्य करते समय शटडाउन जरूर लिया जाना चाहिए .
- प्लास अच्छे ब्रांड का ही होना चाहिए.
- सीढ़ी लकड़ी की ही होनी चाहिए..
सेफ्टी किट में होते हैं सुरक्षा के ये उपकरण
एक सेफ्टी किट में सुरक्षा के कई उपकरण होते हैं. किसी कर्मचारी को करंट न लगे या खंभों पर चढ़ने के दौरान वह पूरी तरह से सुरक्षित रहे, खंभों से गिरे नहीं, इसके लिए एक सेफ्टी किट में सेफ्टी बेल्ट, हेलमेट, चेन (दो या तीन लाइन के तारों की शार्टिंग के लिए), प्लास, ग्लव्स, जूता, यूनिफार्म होते हैं.
प्रदेश अध्यक्ष मो. खालिद ने बताया कि सेफ्टी किट की मांग बहुत पहले से उन्होंने कर रखी है. पूरे प्रदेश में रोजाना दो से तीन ऐसी घटनाएं होती हैं उसमें एक व्यक्ति लगभग रोज खत्म हो रहा है. किसी का हाथ कटता है किसी का पैर कटता है. बिजली विभाग कहता है मैं सुरक्षा उपकरण दे रहा हूं, लेकिन किसी भी कर्मचारी के पास पूरे सुरक्षा उपकरण उपलब्ध ही नहीं हैं. सिर्फ कागजों पर ही सुरक्षा उपकरण उपलब्ध रहते हैं. बस दिखावे के लिए किट बांटते हुए फोटो अधिकारियों को भेज दी जाती है.
पीड़िता आरती वर्मा के पति खुर्रामपुर उपकेंद्र पर तैनात हैं. कुछ दिन पहले बिजली लाइन पर काम करते हुए उन्हें करंट लगा जिससे हाथ काटने की नौबत आ गई और पैर जल गए. अब वे अपाहिज हो गए हैं. आरती वर्मा का कहना है कि बिजली विभाग ने कोई मदद नहीं की. अपने पति का इलाज कराने के लिए मैंने गहने और जेवर तक बेच दिए हैं.
पढ़ेंः यूपी में एक रुपये प्रति यूनिट महंगी हो सकती है बिजली?
प्रांतीय मंत्री देवेंद्र पांडेय ने बताया कि सेफ्टी किट की फोटो भेजकर अधिकारियों को बताया जाता है कि सेफ्टी किट वितरित की गई है, लेकिन ऐसा कहीं होता नहीं है. अपट्रान उपकेंद्र पर सिर्फ एक सीढ़ी है. अब एक सीढ़ी है और पांच टीम हैं तो कौन सी टीम सीढ़ी से काम करेगी. यानी कर्मचारियों को खंभे पर बिना सीढ़ी के चढ़ना पड़ता है. बहुत से बिजलीघरों पर सीढ़ी है ही नहीं. ज्यादातर सीढ़ियां टूटी हुई हैं, इनसे खतरा है. सुरक्षा उपकरण के नाम पर न अर्थ चैन दिया गया है न जूते दिए गए हैं. हैंड ग्लव्स तक कर्मचारियों के सड़ गए हैं. हेलमेट नहीं दिए गए. तमाम ऐसी चीजें हैं जो कर्मचारियों को दी ही नहीं जा रही हैं, लेकिन कागजों में या फोटो में सब कुछ सभी को वितरित किया गया है.
मुख्य अभियंता विपिन जैन ने बताया कि सेफ्टी किट कांट्रैक्टर्स को उपलब्ध करानी होती है उनकी जिम्मेदारी है. उनकी जानकारी में सेफ्टी किट का मामला है. कांट्रैक्टर्स को बुलाया गया है. अब यह तो मैं नहीं कहूंगा कि सबके पास सुरक्षा उपकरण है कि नहीं, लेकिन यह तय है कि एक समय सभी को यह किट वितरित जरूर की गई थी. ईएसआई अस्पताल से सभी के इलाज की व्यवस्था होती है. सभी को कार्ड उपलब्ध कराए गए हैं. उनके परिवार वाले जो भी होते हैं उनके भी इलाज की पूरी व्यवस्था है. अगर इस तरह की कोई घटनाएं होती हैं तो इलाज की मुफ्त व्यवस्था बिजली विभाग की तरफ से उपलब्ध होती है. अगर दुर्घटना में किसी की मौत हो जाती है तो नियमानुसार उन्हें मुआवजा देने का भी प्रावधान है.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप