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लखनऊ: इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल के मसौदे पर बिजली इंजीनियरों ने जताया रोष - electrical engineers anger over electricity ammendment bill

ऊर्जा मंत्रालय की ओर से लाए गए इलेक्ट्रीसिटी अमेंडमेंट बिल का बिजलीकर्मियों ने विरोध किया है. उनका कहना है कि यह बिल किसी भी तरह से उपभोक्ताओं के लिए सही नहीं है. साथ ही उन्होंने इस मसौदे को निराशाजनक बताया है.

इलेक्ट्रीसिटी अमेण्डमेंट बिल का विरोध
इलेक्ट्रीसिटी अमेण्डमेंट बिल का विरोध
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Published : Apr 21, 2020, 5:53 AM IST

लखनऊ: ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की ओर से विद्युत वितरण के निजीकरण के लिए इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल का मसौदा जारी करने के समय पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि जब सारा राष्ट्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एकजुट होकर कोरोना वायरस से लड़ रहा है तब निजीकरण का बिल लाने से बिजलीकर्मियों में भारी रोष व्याप्त हो रहा है.

ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि देश के 15 लाख बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियंताओं ने पिछले दिनों पांच अप्रैल को लाइट बन्दी के दौरान जिस कुशलता से बिजली ग्रिड का संचालन किया और 31,000 मेगावाट से अधिक के लोड का जर्क लगने के बावजूद ग्रिड का संतुलन बनाये रखा वह बिजली ग्रिड के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ बन गया है. ऐसे समय केंद्रीय विद्युत् मंत्रालय की ओर से निजीकरण का मसौदा जारी करना सचमुच निराशाजनक है.

इस पर विचार के लिए केंद्र से मांगा समय
केंद्रीय विद्युत् मंत्री आरके सिंह को पत्र भेजकर फेडरेशन ने कहा है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 में संशोधन करने के लिए 17 अप्रैल को जारी इलेक्ट्रीसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 के मसौदे पर राज्यों और स्टेक होल्डरों को 21 दिन में कमेन्ट देने का समय दिया गया है. इसे वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कम से कम 30 सितम्बर या स्थिति सामान्य होने तक बढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि बिजली का नया एक्ट बनाने के लिए जारी ड्राफ्ट पर वर्तमान स्थिति में बिजली इंजीनियर और कर्मचारी न अपनी बैठक कर सकते हैं और न ही लीगल विशेषज्ञों से कोई राय ले सकते हैं.

प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की मांग
ग्लोबल आपदा की इस कठिन घड़ी में जब सब एकजुट होकर कोरोना का मुकाबला कर रहे हैं, तब इस बिल को ठंडे बस्ते में डालना ही राष्ट्रहित में है. फेडरेशन ने प्रधानमंत्री से इसमें प्रभावी हस्तक्षेप करने की मांग की है, जिससे इस बिल को स्थिति सामान्य होने तक रोके रखा जाए. फेडरेशन ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी अपील की है कि वे केंद्रीय ऊर्जा मंत्री से बिल स्थगित करने की मांग करें.

उपभोक्ताओं के हित में नहीं है बिल
शैलेंद्र दुबे का कहना है कि इलेक्ट्रीसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 में बिजली वितरण का निजीकरण करने के लिए डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी और फ्रेन्चाइजी को वितरण सौंपने की बात है, जो जनहित में नहीं है. फ्रेन्चाइजी का प्रयोग पूरे देश में विफल हो गया है. बेहतर परिणाम न दे पाने के कारण लगभग सभी फ्रेंचाइजी करार रद्द कर दिए गए हैं.

उत्तर प्रदेश में भी आगरा में टोरेंट पावर कंपनी की लूट चल रही है और कंपनी करार की कई शर्तों का उल्लंघन कर रही है. सीएजी ने भी टोरेंट कंपनी पर घपले के आरोप लगाए हैं. इसके अलावा बिल में सब्सिडी और क्रॉस सब्सिडी समाप्त करने की बात है, जिससे उपभोक्ता का टैरिफ बढ़ेगी. यह बिल किसी भी तरह से जनता के हित में नहीं है.

इसे भी पढ़ें- कानपुर: मदरसे में पढ़ने वाले 6 बच्चे मिले कोरोना पॉजिटिव, इलाके को किया गया सील

लखनऊ: ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की ओर से विद्युत वितरण के निजीकरण के लिए इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल का मसौदा जारी करने के समय पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि जब सारा राष्ट्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एकजुट होकर कोरोना वायरस से लड़ रहा है तब निजीकरण का बिल लाने से बिजलीकर्मियों में भारी रोष व्याप्त हो रहा है.

ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि देश के 15 लाख बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियंताओं ने पिछले दिनों पांच अप्रैल को लाइट बन्दी के दौरान जिस कुशलता से बिजली ग्रिड का संचालन किया और 31,000 मेगावाट से अधिक के लोड का जर्क लगने के बावजूद ग्रिड का संतुलन बनाये रखा वह बिजली ग्रिड के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ बन गया है. ऐसे समय केंद्रीय विद्युत् मंत्रालय की ओर से निजीकरण का मसौदा जारी करना सचमुच निराशाजनक है.

इस पर विचार के लिए केंद्र से मांगा समय
केंद्रीय विद्युत् मंत्री आरके सिंह को पत्र भेजकर फेडरेशन ने कहा है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 में संशोधन करने के लिए 17 अप्रैल को जारी इलेक्ट्रीसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 के मसौदे पर राज्यों और स्टेक होल्डरों को 21 दिन में कमेन्ट देने का समय दिया गया है. इसे वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कम से कम 30 सितम्बर या स्थिति सामान्य होने तक बढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि बिजली का नया एक्ट बनाने के लिए जारी ड्राफ्ट पर वर्तमान स्थिति में बिजली इंजीनियर और कर्मचारी न अपनी बैठक कर सकते हैं और न ही लीगल विशेषज्ञों से कोई राय ले सकते हैं.

प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की मांग
ग्लोबल आपदा की इस कठिन घड़ी में जब सब एकजुट होकर कोरोना का मुकाबला कर रहे हैं, तब इस बिल को ठंडे बस्ते में डालना ही राष्ट्रहित में है. फेडरेशन ने प्रधानमंत्री से इसमें प्रभावी हस्तक्षेप करने की मांग की है, जिससे इस बिल को स्थिति सामान्य होने तक रोके रखा जाए. फेडरेशन ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी अपील की है कि वे केंद्रीय ऊर्जा मंत्री से बिल स्थगित करने की मांग करें.

उपभोक्ताओं के हित में नहीं है बिल
शैलेंद्र दुबे का कहना है कि इलेक्ट्रीसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 में बिजली वितरण का निजीकरण करने के लिए डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी और फ्रेन्चाइजी को वितरण सौंपने की बात है, जो जनहित में नहीं है. फ्रेन्चाइजी का प्रयोग पूरे देश में विफल हो गया है. बेहतर परिणाम न दे पाने के कारण लगभग सभी फ्रेंचाइजी करार रद्द कर दिए गए हैं.

उत्तर प्रदेश में भी आगरा में टोरेंट पावर कंपनी की लूट चल रही है और कंपनी करार की कई शर्तों का उल्लंघन कर रही है. सीएजी ने भी टोरेंट कंपनी पर घपले के आरोप लगाए हैं. इसके अलावा बिल में सब्सिडी और क्रॉस सब्सिडी समाप्त करने की बात है, जिससे उपभोक्ता का टैरिफ बढ़ेगी. यह बिल किसी भी तरह से जनता के हित में नहीं है.

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