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Drug Deal From Dark Web : डार्क वेब के जरिए हो रहा ड्रग डील का कारोबार, ऐसे करते हैं 'खेल'

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Published : Jan 18, 2023, 12:49 PM IST

यूपी माफिया के लिए बड़ा ड्रग डील (Drug Deal From Dark Web) का सेंटर बन चुका है. ड्रग माफिया मेडिसिन मार्केट से दवाइयां खरीदकर विदेश भेजते हैं. ये काला कारोबार डार्क वेब से चलता है. हाल ही यूपी एसटीएफ ने आरोपियों को गिरफ्तार कर कई खुलासे किए थे.

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लखनऊ : नेपाल, म्यांमार व बांग्लादेश के ड्रग माफिया के लिए उत्तर प्रदेश ड्रग डील का बड़ा सेंटर बन चुका है. कॉल सेंटर की आड़ में डार्क वेब के जरिए अमेरिका व इंग्लैंड समेत कई यूरोपीय देशों तक ड्रग पहुंचाया जा रहा है. इस डील में क्रिप्टो करेंसी से लेन देन किया जा रहा है, हालांकि यूपी एसटीएफ व एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स मिलकर डार्क वेब के जाल को तोड़ने के लिए अलग-अलग ऑपरेशन कर रही है. इससे जुड़े कई गैंग को पकड़ने में सफलता भी मिली है, हालांकि अब तक इन्हें ऑपरेट करने वाले सरगना की तलाश में एजेंसियां जुटी हुई हैं. आइये जानते हैं कि आखिर कैसे डार्क वेब के जरिए चल रहा है ड्रग डील का धंधा?

बीते दिनों यूपी एसटीएफ ने लखनऊ से यासिर जमील समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया था. ये लोग डार्क वेब के जरिये नशीली दवाओं का धंधा करते थे. पहले तस्करों से सस्ते दाम में प्रतिबंधित दवाएं खरीदते और फिर 10 गुना रकम में यूएसए समेत यूरोपीय देशों में बेच देते थे. यही नहीं अक्टूबर 2022 को गोंडा पुलिस ने ऐसे ही एक और गिरोह के सदस्यों अब्दुल हादी, अब्दुल बारी व विशाल श्रीवास्तव को गिरफ्तार किया था. ये तीनों डार्क वेब व VoIP के जरिये ड्रग की खरीद फरोख्त कर रहे थे. आरोपियों ने बताया था कि "मेफेड्रोन की डिमांड मुंबई, यूपी, एमपी व उत्तराखंड समेत बड़े शहरों में तेजी से बढ़ी है. इसीलिए यूपी में ही ऑनलाइन ड्रग की सप्लाई करने का गिरोह तैयार किया था." सितंबर 2022 को यूपी एसटीएफ ने लखनऊ के आलमबाग इलाके से शाहबाज खान, आरिज एजाज़, गौतम लामा, शारिब एजाज, जावेद खान और सऊद अली को गिरफ्तार किया था. इनके पास से यूके और अमेरिका में प्रतिबंधित दवाइयां (ट्रामेफ-पी, स्पास्मो प्रोक्सीवोन प्लस आदि) मिली थीं, जांच में सामने आया कि ये आरोपी यूरोपीय देशों से ऑर्डर लेते थे.

पुलिस ने किया था खुलासा
पुलिस ने किया था खुलासा




यूपी एटीएस के एसएसपी विशाल विक्रम सिंह बताते हैं कि "ड्रग तस्करी के लिए अलग-अलग एजेंसियां सख्ती बरत रही हैं. समुद्रों, हवाई व बॉर्डर के रूट पर एजेंसियों की पैनी रहने पर तस्करों ने इंटरनेट पर डार्क वेब के जरिए तस्करी करने का तरीका अपना लिया है. यूपी में छोटे-बड़े ड्रग तस्कर डार्क वेब के जरिए ऑनलाइन काम कर रहे हैं. इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है." एसएसपी ने बताया कि "डार्क वेब पर सभी तरह के ड्रग्स आपको एक ही जगह मिल जाते हैं." उन्होंने बताया कि "जांच एजेंसी से बचने के लिए डार्क वेब पर सभी खरीदारी क्रिप्टो करेंसी से होती है. अगर डीलर रुपये या डॉलर में ट्रांजेक्शन करेंगे तो इससे उनकी पहचान सामने आ सकती है इसलिए वो सिर्फ केवल क्रिप्टो करेंसी का ही इस्तेमाल करते हैं."


यूपी एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स के डीआईजी अब्दुल हमीद के मुताबिक "डार्क वेब एक ऐसी जगह है, जहां हथियार व ड्रग की बिक्री और टेरर फंडिंग जैसे गैरकानूनी काम होते हैं. ऑनलाइन ड्रग की खरीद फरोख्त करने वालों से निपटने के लिए एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स व साइबर क्राइम संयुक्त रूप से काम कर रही है. हमारी टीम इस पूरे नेक्सस को जल्द ही खत्म कर देगी."

आरोपी
आरोपी




साइबर एक्सपर्ट व यूपी पुलिस के साइबर सलाहकार राहुल मिश्रा के मुताबिक "आम तौर पर हम लोग इंटरनेट का महज 10 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल करते हैं, जिसे सरफेस वेब कहते हैं. बाकी का 90% हिस्सा डार्क वेब कहलाता है. डार्क वेब का इस्तेमाल करने के लिए एक विशेष ब्राउजर की जरूरत होती है. यह इतना खतरनाक होता है कि वीपीएन जैसे टूल्स के साथ लोकेशन बदलकर डार्क वेब पर किसी भी अति गोपनीय चीजों का सौदा किया जा सकता है. इसी तरह डार्क वेब के जरिए इंटरनेशनल से लेकर भारत में ऑनलाइन ड्रग ढूंढने वालों की लिस्ट तैयार की जाती है और फिर संपर्क होने के बाद डील फाइनल होती है. डार्क वेब में डील का भुगतान क्रिप्टो करेंसी में ही होता है."


सूत्रों की मानें तो यूपी में ऑनलाइन ड्रग की सप्लाई के अलावा सड़क व रेलमार्ग से भी जमकर अवैध मादक पदार्थों की सप्लाई होती है. इसमें हेरोइन म्यांमार, बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, असम, दिमापुर व गुवाहाटी के रास्ते होकर ड्रग पैडलर यूपी ला रहे हैं. इसी तरह अफीम झारखंड के पलामू, चतरा से होते हुए पटना से वाराणसी आती है और यहां से ट्रेन और सड़क के रास्ते बरेली, बदायूं, अलीगढ़ और दिल्ली तक सप्लाई होती है. चरस नेपाल के बढ़नी, सनौली और बीरगंज बॉर्डर से बिहार, यूपी, हरियाणा, दिल्ली व पंजाब पहुंचती है. गांजा उड़ीसा भवानी, नाल्को, सोनपुर बरगढ़ की पहाड़ियों में सबसे ज्यादा प्रोडक्शन गांजा का होता है. यहां से बिहार छत्तीसगढ़ के रास्ते पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहुंचाया जाता है. बीते एक साल के दौरान यूपी में 75361.8 किलो गांजा, 25.7 किलो हेरोइन, 27.18 किलो मार्फीन, 735.06 किलो चरस, 398.8 किलो अफीम, 9829 किलो अवैध स्मैक, 4452.9 किलो डोडा पोस्ता व 1.9 किलो कोकीन बरामद की गई.

यह भी पढ़ें : वसीम बरेलवी का दिल्ली में हुआ ऑपरेशन, हापुड़ में हादसे के दौरान हुए थे घायल

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लखनऊ : नेपाल, म्यांमार व बांग्लादेश के ड्रग माफिया के लिए उत्तर प्रदेश ड्रग डील का बड़ा सेंटर बन चुका है. कॉल सेंटर की आड़ में डार्क वेब के जरिए अमेरिका व इंग्लैंड समेत कई यूरोपीय देशों तक ड्रग पहुंचाया जा रहा है. इस डील में क्रिप्टो करेंसी से लेन देन किया जा रहा है, हालांकि यूपी एसटीएफ व एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स मिलकर डार्क वेब के जाल को तोड़ने के लिए अलग-अलग ऑपरेशन कर रही है. इससे जुड़े कई गैंग को पकड़ने में सफलता भी मिली है, हालांकि अब तक इन्हें ऑपरेट करने वाले सरगना की तलाश में एजेंसियां जुटी हुई हैं. आइये जानते हैं कि आखिर कैसे डार्क वेब के जरिए चल रहा है ड्रग डील का धंधा?

बीते दिनों यूपी एसटीएफ ने लखनऊ से यासिर जमील समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया था. ये लोग डार्क वेब के जरिये नशीली दवाओं का धंधा करते थे. पहले तस्करों से सस्ते दाम में प्रतिबंधित दवाएं खरीदते और फिर 10 गुना रकम में यूएसए समेत यूरोपीय देशों में बेच देते थे. यही नहीं अक्टूबर 2022 को गोंडा पुलिस ने ऐसे ही एक और गिरोह के सदस्यों अब्दुल हादी, अब्दुल बारी व विशाल श्रीवास्तव को गिरफ्तार किया था. ये तीनों डार्क वेब व VoIP के जरिये ड्रग की खरीद फरोख्त कर रहे थे. आरोपियों ने बताया था कि "मेफेड्रोन की डिमांड मुंबई, यूपी, एमपी व उत्तराखंड समेत बड़े शहरों में तेजी से बढ़ी है. इसीलिए यूपी में ही ऑनलाइन ड्रग की सप्लाई करने का गिरोह तैयार किया था." सितंबर 2022 को यूपी एसटीएफ ने लखनऊ के आलमबाग इलाके से शाहबाज खान, आरिज एजाज़, गौतम लामा, शारिब एजाज, जावेद खान और सऊद अली को गिरफ्तार किया था. इनके पास से यूके और अमेरिका में प्रतिबंधित दवाइयां (ट्रामेफ-पी, स्पास्मो प्रोक्सीवोन प्लस आदि) मिली थीं, जांच में सामने आया कि ये आरोपी यूरोपीय देशों से ऑर्डर लेते थे.

पुलिस ने किया था खुलासा
पुलिस ने किया था खुलासा




यूपी एटीएस के एसएसपी विशाल विक्रम सिंह बताते हैं कि "ड्रग तस्करी के लिए अलग-अलग एजेंसियां सख्ती बरत रही हैं. समुद्रों, हवाई व बॉर्डर के रूट पर एजेंसियों की पैनी रहने पर तस्करों ने इंटरनेट पर डार्क वेब के जरिए तस्करी करने का तरीका अपना लिया है. यूपी में छोटे-बड़े ड्रग तस्कर डार्क वेब के जरिए ऑनलाइन काम कर रहे हैं. इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है." एसएसपी ने बताया कि "डार्क वेब पर सभी तरह के ड्रग्स आपको एक ही जगह मिल जाते हैं." उन्होंने बताया कि "जांच एजेंसी से बचने के लिए डार्क वेब पर सभी खरीदारी क्रिप्टो करेंसी से होती है. अगर डीलर रुपये या डॉलर में ट्रांजेक्शन करेंगे तो इससे उनकी पहचान सामने आ सकती है इसलिए वो सिर्फ केवल क्रिप्टो करेंसी का ही इस्तेमाल करते हैं."


यूपी एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स के डीआईजी अब्दुल हमीद के मुताबिक "डार्क वेब एक ऐसी जगह है, जहां हथियार व ड्रग की बिक्री और टेरर फंडिंग जैसे गैरकानूनी काम होते हैं. ऑनलाइन ड्रग की खरीद फरोख्त करने वालों से निपटने के लिए एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स व साइबर क्राइम संयुक्त रूप से काम कर रही है. हमारी टीम इस पूरे नेक्सस को जल्द ही खत्म कर देगी."

आरोपी
आरोपी




साइबर एक्सपर्ट व यूपी पुलिस के साइबर सलाहकार राहुल मिश्रा के मुताबिक "आम तौर पर हम लोग इंटरनेट का महज 10 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल करते हैं, जिसे सरफेस वेब कहते हैं. बाकी का 90% हिस्सा डार्क वेब कहलाता है. डार्क वेब का इस्तेमाल करने के लिए एक विशेष ब्राउजर की जरूरत होती है. यह इतना खतरनाक होता है कि वीपीएन जैसे टूल्स के साथ लोकेशन बदलकर डार्क वेब पर किसी भी अति गोपनीय चीजों का सौदा किया जा सकता है. इसी तरह डार्क वेब के जरिए इंटरनेशनल से लेकर भारत में ऑनलाइन ड्रग ढूंढने वालों की लिस्ट तैयार की जाती है और फिर संपर्क होने के बाद डील फाइनल होती है. डार्क वेब में डील का भुगतान क्रिप्टो करेंसी में ही होता है."


सूत्रों की मानें तो यूपी में ऑनलाइन ड्रग की सप्लाई के अलावा सड़क व रेलमार्ग से भी जमकर अवैध मादक पदार्थों की सप्लाई होती है. इसमें हेरोइन म्यांमार, बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, असम, दिमापुर व गुवाहाटी के रास्ते होकर ड्रग पैडलर यूपी ला रहे हैं. इसी तरह अफीम झारखंड के पलामू, चतरा से होते हुए पटना से वाराणसी आती है और यहां से ट्रेन और सड़क के रास्ते बरेली, बदायूं, अलीगढ़ और दिल्ली तक सप्लाई होती है. चरस नेपाल के बढ़नी, सनौली और बीरगंज बॉर्डर से बिहार, यूपी, हरियाणा, दिल्ली व पंजाब पहुंचती है. गांजा उड़ीसा भवानी, नाल्को, सोनपुर बरगढ़ की पहाड़ियों में सबसे ज्यादा प्रोडक्शन गांजा का होता है. यहां से बिहार छत्तीसगढ़ के रास्ते पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहुंचाया जाता है. बीते एक साल के दौरान यूपी में 75361.8 किलो गांजा, 25.7 किलो हेरोइन, 27.18 किलो मार्फीन, 735.06 किलो चरस, 398.8 किलो अफीम, 9829 किलो अवैध स्मैक, 4452.9 किलो डोडा पोस्ता व 1.9 किलो कोकीन बरामद की गई.

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