लखनऊ: ड्रग माफिया ने उत्तर प्रदेश में नशे का समान बेचने का नया तरीका इजाद कर लिया है. अब सड़क, हवाई, रेल व जल मार्ग से नहीं, बल्कि वेब के जरिये नशे का सौदा हो रहा है. ऐसे में अब यूपी एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स (ANTF) ने इन माफिया से निपटने के लिए नई रणनीति बनाई है. इसके तहत नारकोटिक्स व साइबर क्राइम ने मिल कर टीम बनाई है. यह टीम ऑनलाइन ड्रग की खरीद फरोख्त (online drug buying) करने वालों को चिन्हित कर उनके नेक्सस को तोड़ेगी.
मौजूद समय ड्रग माफिया के लिए उत्तर प्रदेश ड्रग की खरीद फोरख्त का हॉट स्पॉट बन चुका है. हाल में लखनऊ व गोंडा से पकड़े गए गैंग के सदस्यों से हुई पूछताछ के बाद ड्रग माफिया के नए बिजनेस पैटर्न से पर्दा उठा है. सितंबर 2022 को यूपी एसटीएफ ने लखनऊ के आलमबाग इलाके से शाहबाज खान, आरिज एजाज़, गौतम लामा, शारिब एजाज, जावेद खान और सऊद अली को गिरफ्तार किया था. इनके पास से यूके और अमेरिका में प्रतिबंधित दवाइयां (ट्रामेफ-पी, स्पास्मो प्रोक्सीवोन प्लस आदि) मिली थीं. जांच में सामने आया कि ये आरोपी यूरोपीय देशों से ऑर्डर लेते थे. अक्टूबर 2022 को गोंडा पुलिस ने ऐसे ही एक और गिरोह के सदस्यों अब्दुल हादी,अब्दुल बारी व विशाल श्रीवास्तव को गिरफ्तार किया था. ये तीनों डार्क वेब व VoIP के जरिये ड्रग्स की खरीद फरोख्त कर रहे थे. आरोपियों ने बताया था कि मेफेड्रोन की डिमांड मुंबई, यूपी, एमपी व उत्तराखंड समेत बड़े शहरों में तेजी से बढ़ी है. इसीलिए यूपी में ही ऑनलाइन ड्रग्स की सप्लाई करने का गिरोह तैयार किया था.
यूपी एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स के डीआईजी अब्दुल हमीद (UP Anti Narcotics Task Force DIG Abdul Hameed) बताते हैं कि डार्क वेब एक ऐसी जगह है, जहां हथियार व ड्रग्स की बिक्री और टेरर फंडिंग जैसे गैरकानूनी काम होते हैं. टास्क फोर्स को बने अभी कुछ दिन ही हुए हैं. हमारे सामने बड़ी चुनौतियां हैं. ऑनलाइन ड्रग की खरीद फरोख्त करने वालों से निपटने के लिए एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स व साइबर क्राइम संयुक्त रूप से काम कर रही है. हमारी टीम इस पूरे नेक्सस को जल्द ही खत्म कर देगी.
साइबर एक्सपर्ट व यूपी पुलिस के साइबर सलाहकार राहुल मिश्रा (Cyber Expert and Cyber Advisor of UP Police Rahul Mishra) के मुताबिक आम तौर पर हम लोग इंटरनेट का महज 10 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल करते हैं, जिसे सरफेस वेब कहते हैं. बाकी का 90% हिस्सा डार्क वेब कहलाता है. डार्क वेब का इस्तेमाल करने के लिए एक विशेष ब्राउजर की जरूरत होती है. यह इतना खतरनाक होता है कि वीपीएन जैसे टूल्स के साथ लोकेशन बदलकर डार्क वेब पर किसी भी अति गोपनीय चीजों का सौदा किया जा सकता है. इसी तरह डार्क वेब के जरिए इंटरनेशनल से लेकर भारत में ऑनलाइन ड्रग ढूंढने वालों की लिस्ट तैयार की जाती हैं और फिर संपर्क होने के बाद डील फाइनल होती है. डार्क वेब में डील का भुगतान क्रिप्टो करेंसी में ही होता है.
यह भी पढ़ें : बीच सड़क पर ग्रेजुएशन छात्रों के दो गुटों में जमकर मारपीट, वीडियो वायरल
कहां से आता है मादक पदार्थ (narcotics) : यूपी में ऑनलाइन ड्रग्स की सप्लाई के अलावा सड़क व रेल मार्ग से भी जम कर अवैध मादक पदार्थों की सप्लाई होती है। इसमें हेरोइन म्यांमार, बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, असम, दिमापुर व गुवाहाटी के रास्ते होकर ड्रग पैडलर यूपी के रहे हैं. इसी तरह अफीम झारखंड के पलामू, चतरा से होते हुए पटना से वाराणसी आती है और यहां से ट्रेन और सड़क के रास्ते बरेली, बदायूं, अलीगढ़ और दिल्ली तक सप्लाई होती है. चरस नेपाल के बढ़नी, सनौली और बीरगंज बॉर्डर से बिहार, यूपी, हरियाणा, दिल्ली व पंजाब पहुंचती है. गांजा उड़ीसा भवानी, नाल्को, सोनपुर बरगढ़ की पहाड़ियों में सबसे ज्यादा प्रोडक्शन गांजा का होता है. यहां से बिहार छत्तीसगढ़ के रास्ते पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहुंचाया जाता है. बीते छह महीनों में यूपी में 13 किलो हेरोइन, 42,900 किलो गांजा, 300 ग्राम कोकीन, 85 किलो समैक, 14 किलो सिन्थेटिक नारकोटिक्स व 650 किलो चरस बरामद किया गया है.
यह भी पढ़ें : सीएम योगी कैबिनेट बैठक आज, मिल सकती है कई प्रस्तावों को मंजूरी