बाराबंकी: पराली पर शोध कर उसे किसानों के लिए उपयोगी बनाने में जुटी बाराबंकी की रहने वाली डॉ. पल्लवी अग्रवाल अब खट्टे फलों के उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ाने पर शोध करेंगी. उनको अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने रिसर्च करने के लिए बुलाया है. बायोसाइन्सेस विषय से पीएचडी डॉ. पल्लवी, दो वर्ष अमेरिका में रहकर खट्टे फलों खासकर संतरे पर शोध करेंगी और नई वेरायटी विकसित करेंगी, ताकि खट्टे फलों की गुणवत्ता बनी रहे. फिर वापस अपने देश आकर उस वैराइटी की खेती को प्रोत्साहित करेंगी.
दरअसल, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देशों ने महसूस किया कि उनके देशों में पाए जाने वाले खट्टे फलों में किसी बीमारी के चलते उत्पादकता कम हो रही है, जिसके चलते उत्पादकों को काफी घाटा हो रहा है. वर्ष 2011 में गेट (GATE) और वर्ष 2012 में CSIR-UGC NET क्वालीफाई डॉ. पल्लवी का मानना है कि हमारे देश के नागपुर में संतरों के उत्पादन में भी असर पड़ रहा है.
डॉ. पल्लवी वर्तमान में लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पतिक शोध संस्थान में बतौर प्रोजेक्ट इन्वेस्टिगेटर का काम कर रही हैं. वर्ष 2020 से उन्होंने पराली पर काम करना शुरू किया था. उन्होंने पराली पीसकर उसमें गोबर और ट्राइकोडर्मा मिलाकर उनकी गोलियां बनाने का प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसे उन्होंने "हाइग्रोस्कोपिक पिलेट"(Hygroscopic pellets) नाम दिया है. इसके लिए उन्होंने बाराबंकी के कई गांवों में जाकर खेतों में डालकर परीक्षण किया.
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इस हाइग्रोस्कोपिक पिलेट को किसान ऑर्गेनिक खाद के रूप में प्रयोग करके न केवल अच्छी उपज पा सकते हैं, बल्कि इससे खेतों में सूखे की स्थिति से भी निजात मिलेगी. इससे सबसे बड़ा फायदा ये रहेगा कि किसान पराली जलाने से बच जाएंगे और पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होगा. इस पराली से हाइग्रोस्कोपिक पिलेट बनाकर किसान इसे बाजार में भी बेच सकेंगे.
डॉ. पल्लवी का ये प्रोजेक्ट करीब-करीब पूरा हो चुका है. जल्द ही वे इसे पेटेंट भी कराएंगी. फिलहाल उन्होंने डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से इसे इसी स्टेज पर रोक देने की गुजारिश की है. शुक्रवार को डॉ. पल्लवी अग्रवाल अमेरिका जा रही हैं.
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